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दर्शन

PRAMAN: Pratyaksh [Perception]

July 25, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

न्याय दर्शन को एक ऐसी शाखा के रूप में स्वीकारा जाता है जो भारतीय तर्कशास्त्र की रीढ़ कही जाती है। वर्तमान समय में इसे प्रमाण शास्त्र के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है इसके अनुसार मुख्यतः प्रमाणों की संख्या चार मानी जाती है – प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द। नवन्याय में इसकी विशद व्याख्याएं देखने को मिलती हैं। इसमें कालान्तर में परिवर्तन, परिवर्धन और संशोधन भी देखने को मिले। आपके NET के पाठ्यक्रम में अर्थापत्ति और अनुपलब्धि को भी प्रमाण में शामिल किया गया है। इसका विस्तृत आकाश है और उसमें से केवल प्रत्यक्ष के बारे में उसके प्रकारों के बारे में यहाँ अध्ययन करेंगे।

Pratyaksh Praman  / प्रत्यक्ष प्रमाण / Perception –

प्रत्यक्ष प्रमाण के लक्षण को उपस्थित करते हुए न्याय दर्शन में उल्लेख है –

‘इन्द्रयार्थसन्निकर्षोत्पन्नं ज्ञानमव्यपदेशमव्यभिचारि व्यव्सायात्मकं प्रत्यक्षम्‘।

इससे आशय है इन्द्रिय और पदार्थ के संयोग से जो अव्यपदेश्य अर्थात अकथनीय, अव्यभिचारि अर्थात संशय विपर्यादि दोषों से रहित, व्यवसयात्मक अर्थात निश्चयात्मक ज्ञान उत्पन्न होता है उसे प्रत्यक्ष कहा जाता है।

वस्तु के साथ इन्द्रिय का संयोग होने से जो ज्ञान प्राप्त होता है ये मानते हैं कि इन्द्रियजन्य ज्ञान ही प्रत्यक्ष है। प्रत्यक्ष को छोड़कर सभी प्रमाण पूर्व-ज्ञान पर आश्रित रहते हैं।

प्रत्यक्ष के भेद / Types of Perception –           प्रत्यक्ष का वर्गीकरण विविध प्रकार से किया  सकता है। प्रथम दृष्टिकोण से दो भागों में प्रत्यक्ष को विभाजित किया जा सकता है।

1 –  लौकिक प्रत्यक्ष  (Ordinary Perception)

2 – अलौकिक प्रत्यक्ष (Extra Ordinary Perception)

1 – लौकिक प्रत्यक्ष (Ordinary Perception) –

जब सामान्य रूप से इन्द्रिय और उसके विषय का सन्निकर्ष (संयोग ) होता है और इस प्रकार जो अनुभव  प्राप्त होता है उसे लौकिक प्रत्यक्ष कहा जाता है। लौकिक प्रत्यक्ष को भी दो भागों में विभक्त किया जा सकता है

i – वाह्य (External)

ii – आन्तर (Internal)

i – वाह्य (External) – वाह्य इन्द्रियों द्वारा यह साध्य है

ii – आन्तर (Internal) – इसे आन्तरिक अर्थात मन द्वारा साध्य माना गया है

 लौकिक प्रत्यक्ष को नव्य न्याय में जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है उस आधार पर तीन भागों में विभक्त कर समझ सकते हैं।

(A ) – निर्विकल्प प्रत्यक्ष (Indeterminate Perception)

(B) – सविकल्प प्रत्यक्ष (Determinate Perception)

(C) – प्रत्यभिज्ञा ( Credentials)

(A ) – निर्विकल्प प्रत्यक्ष (Indeterminate Perception) – पदार्थ और इन्द्रिय के संयोग के तुरन्त बाद वस्तु का जो यत्किञ्चित ज्ञान हमें प्राप्त होता है इसमें नामजात्यादि नहीं आता। यह केवल वास्तु मात्र का ज्ञान है। यथा अन्धकारयुक्त कक्ष में एक मेज पर कोई गोल सी वस्तु रखी है हमें उसकी सत्ता का बोध हो और यह पता न चले कि वह सन्तरा है या अमरुद अथवा सेब है तो इसे निर्विकल्प प्रत्यक्ष कहा जाएगा।

(B) – सविकल्प प्रत्यक्ष (Determinate Perception) – निर्विकल्प प्रत्यक्ष में नामजात्यादि की योजना कर लेने पर वह सविकल्प प्रत्यक्ष हो जाएगा। जैसे अन्धकारयुक्त कक्ष में एक मेज पर कोई गोल सी वस्तु रखी है हमें उसकी सत्ता का बोध हो और यह पता न चले कि वह सन्तरा है या अमरुद अथवा सेब है तो इसे निर्विकल्प प्रत्यक्ष कहा जाएगा। अगले ही क्षण यदि हमें यह पता चले की वह सन्तरा है तो यह सविकल्प प्रत्यक्ष कहलायेगा। नाम ,जाति, गुणों का आभास निर्विकल्प प्रत्यक्ष  को सविकल्प बना देता है।

(C) – प्रत्यभिज्ञा ( Credentials) – प्रत्यभिज्ञा से आशय है पहले से देखे हुए को पहचानना। इस प्रत्यक्ष में किसी वस्तु, चेहरे आदि को देखने पर हमें यह लगता है कि इसे पहले भी कहीं देखा है और जब हम उस आभास के आधार पर कहते हैं इसे मैंने अमुक शहर में उस स्थान पर देखा था तो इस गुण धर्म को प्रत्यभिज्ञा प्रमाण कहा जाएगा। 

2 – अलौकिक प्रत्यक्ष (Extra Ordinary Perception) –

जिस प्रकार लौकिक प्रत्यक्ष का अध्ययन दो वर्गों में विभाजित करके किया गया उसी तरह अलौकिक प्रत्यक्ष के तीन भेद हैं –

i – सामान्य लक्षण

ii – ज्ञान लक्षण

iii – योगज

i – सामान्य लक्षण –

 अनुमान साहचर्य या व्याप्ति के सम्बन्ध पर खड़ा होता है और इस साहचर्य ज्ञान हमें प्रत्यक्ष के आधार पर होता है यही प्रत्यक्ष ज्ञान सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष है। यथा मनुष्य मरण शील है लेकिन मनुष्य की मरण के साथ व्याप्ति अपने अस्तित्व के लिए उसके प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधरित रहेगी। इसे ही सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष कहेंगे।

ii – ज्ञान लक्षण –

 यह ज्ञान पूर्वाभास के कारण होता है एक के ज्ञान के साथ ही जब दूसरा भी अनायास उठ खड़ा हो तो यह ज्ञान लक्षण प्रत्यक्ष कहलाता है जैसे चन्दन देखने के साथ उसकी खुशबू का आभास। वास्तव में बार बार विविध अनुभव का अभ्यास से हमारी इन्द्रियाँ पृथक पृथक प्राप्त ज्ञानों का युगपत ही प्रकट करने लगती हैं। जैसे। पानी -तरल , बर्फ -ठण्डा, अग्नि -गरम, पत्थर -ठोस आदि  

iii – योगज –

इस प्रकार का ज्ञान योगियों को प्रत्यक्ष योग शक्ति के द्वारा होता है। योगियों को भूत ,भविष्य व विविध पदार्थों का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त हो जाता है जो ज्ञान बिना इन्द्रिय और अर्थ के सन्निकर्ष से प्राप्त हो वह अलौकिक ज्ञान ही है इस लिए इसे अलौकिक की श्रेणी में रखा गया है।

 योगियों को दो प्रकार का कह सकते हैं। 1 -युक्त योगी , 2 – युञ्जान

उक्त योगियों को अपने योगाभयास के बल से देश व काल से व्यवहित पदार्थों के ज्ञानार्जन की सामर्थ्य होती है जिन्हे सर्वदा सर्व प्रकारक ज्ञान उपलब्ध रहता है युक्त योगी कहलाते हैं और जो चिन्तन द्वारा ज्ञान उपलब्ध करते हैं युञ्जान योगी कहलाते हैं।  

            उक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि प्रमाणों की दुनियाँ में प्रत्यक्ष प्रमाण क्या है इसे वर्गीकृत करके इसके प्रकारों को किस प्रकार सरलता से समझा जा सकता है। मुझे लगता है बोर्ड पर किया वर्गीकरण इसका समुचित प्रतिनिधित्व कर रहा है।

    

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काव्य

लक्ष्य पर पूरा समर्पण …

July 21, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आचार्य कहता नहीं कि मैं भी रुकना जानता हूँ,

क्योंकि अपने शिष्य का, हर एक  सपना जानता हूँ। 

उसके सपनों में है शामिल हैं उसकी आशाएं सभी,

उसकी आशाओं  में गहरा, रंग  भरना जानता हूँ।

ये बता सकता नहीं,  कि थकना कहते है किसे

लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।1।

हर चमक से दूर रहकर, मैं सिमटना जानता हूँ,

एक कछुए की तरह मैं खुद को ढकना जानता हूँ।

मेरे बच्चों को  लगे ना  इस  जमाने की हवा,

विष भरी हर एक हवा को मैं कुचलना जानता हूँ।  

ये बता सकता नहीं,  कि थकना कहते है किसे

लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।2।

इस जहाँ की गन्दगी से और फिसलन से बचा

लेके जाना है जहाँ पर, मैं वह रस्ता जानता हूँ।

पाश्चात्य की कोशिश है ये, अपनी लय में ले बहा 

कच्चे मन पे शिष्य के सद्कर्म लिखना जानता हूँ।

ये बता सकता नहीं,  कि थकना कहते है किसे

लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।3।

संस्कृति के पतन से,  मूल्य इन्सानी बचा

योग है परिवार का जो, मैं बताना जानता हूँ।

देखकर सारी विकृतियाँ मैं भी घायल हो गया

 की कहाँ गलती जहाँ ने, ये दिखाना जानता हूँ।

ये बता सकता नहीं,  कि थकना कहते है किसे

लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।4।

छा रहा परिवार – वादी, भाव अब नेतृत्व में

मैं जहाँ की स्वार्थपरता लूट फितरत जानता हूँ।

बच्चों के अरमान पर जो छा रहीं हैं अब घटा

उस घटा को मैं हटाकर साफ़ करना जानता हूँ।

ये बता सकता नहीं,  कि थकना कहते है किसे

लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।5।

क्यों बनी जालिम परिस्थिति क्या है उलझन आपकी

कौन है निर्दोष कितना, मैं यह सब कुछ जानता हूँ।

मोड़ कर गर्दन कलम की, दिग्भ्रमित जिसने किया

काली स्याही फेंकने का, सारा चक्कर जानता हूँ।

ये बता सकता नहीं,  कि थकना कहते है किसे

लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।6।

स्वार्थ परता का दहन हो, हो सृजित निष्ठा का मन

श्रम का प्रतिफल मैं युवा को यूँ  दिलाना जानता हूँ।

स्वार्थ की भट्टी बुझाकर सम्मान श्रम को मिल सके

श्रम कणों का मूल्य हो क्या ‘नाथ’ हूँ यह जानता हूँ।  

ये बता सकता नहीं,  कि थकना कहते है किसे

लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।7।

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वाह जिन्दगी !

याद फिर से आ गई है।

July 6, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है।

बचपने में साथ रहकर साथ पढ़ते

यादों की बारात फिर से आ गई है।

उस समय हमसब बहुत मदमस्त रहते

वह याद धुँधली सी जेहन पर छा गई है।

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।1।

याद है तुमको कि हम आपस में लड़ते

लड़ झगड़ कर मिलन बेला आ गई है।

मिलन बिछुड़न बन गया है ताप सहते

बन तपन जलवाष्प बारिश आ गयी है।

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।2।

मौसमों की मार को चुपचाप सहते,

याद गुजरे मौसमों की आ  गई  है।

खेल बचपन में जो खेले गिरते पड़ते

उन सभी की याद क्यूँ  कर आ गई है।

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।3।

गरमियों के मौसमों में लू को सहते

उन दिनों की याद भी पथरा गई है।

आज बारिश देखकर फिर याद बन के 

कोई बदली जिस्म जाँ पर छा गई है।  

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।4।

बचपने में, साथ में जब पेंग भरते

झूले, चितवन यादें फिर से छा गई हैं।

गात पर बिन रंग के जो रंग दिखते

वही रंगत अब असर दिखला गई है।

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।5।

आज अरसा हो गया बादल को बनते

याद की सिहरन नयन बरसा गई है।

जिन्दगी की शाम में ये क्या हैं लखते

क्यों तुम्हारी याद फिर से भा गई है ?

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।6।   

काश हरियाली में तुम ये देख सकते

अब बिखरी जुल्फों में सफेदी आ गई है।

फिर भी रहे हैं हम तुम्हे ख़्वाबों में तकते

प्यास जन्मों की लबों पर आ गई है।   

आज सावन के समय में नयन छलके

लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।7।

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शिक्षा

TEACHER AS AN AGENT OF CHANGE AND LIFE SKILLS TRAINER.

July 2, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


परिवर्तन के एजेंट और जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक

जीवन की यात्रा शैशव से शुरू होकर बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था के पायदान पर पैर रखते हुए बढ़ती है लेकिन जीवन पर्यन्त माँ – बाप के अतिरिक्त एक और जो हमारी खुशी में आनन्दित होने वाला व्यक्तित्व होता है वह जिसे दुनियाँ शिक्षक के रूप में जानती है। शिक्षक यूँ तो बहुत सी भूमिकाओं का निर्वहन करता है लेकिन यहाँ शीर्षक के अनुरूप हम उसके दो रूपों की चर्चा करेंगे।

परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of teacher as an agent of change –

परिवर्तन के एजेंट के रूप में परिवर्तन का प्रमुख अभिकर्त्ता शिक्षक इस लिए है क्योंकि मान बाप जिन गुणों को अपने बच्चे में अधूरा छोड़ देते हैं उसकी पूर्णता का गुरुत्तर दायित्व शिक्षक द्वारा निर्वाहित होता है। टूटे फूटे अक्षरों से धारा प्रवाहित सम्प्रेषण के साथ बालक विश्लेषण और संश्लेषण की शक्ति से युक्त होता है। जीवन पर्यन्त विविध परिवर्तनों के मूल में कहीं नींव  ईंट के मानिन्द शिक्षक को नकारा नहीं जा सकता। इसीलिये अरस्तु(Aristotle ) ने कहा –

“जन्म देने वालों से अच्छी शिक्षा देने वालों को अधिक सम्मान दिया जाना चाहिए; क्योंकि उन्होंने तो बस जन्म दिया है ,पर उन्होंने जीना सिखाया है।”

“Those who give good education should be given more respect than those who give birth; Because they have just given birth, but they have taught how to live.”

जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक से आशय / Meaning of Teacher as Life Skills Trainer-

जीवन में बहुत कुछ अधिगमित किया जाता है और व्यवहार में परिवर्तन, आदत का बनना, कार्य कुशलता की वृद्धि परिणाम होता है प्रशिक्षण का। इस प्रशिक्षण क्रिया  को सम्पन्न करने का गुरुत्तर दायित्व है गुरुवर का। यहॉं जीवन कौशल प्रशिक्षक आशय जीवन काल में उपयोगी कौशलों के प्रशिक्षण प्रदाता से है . स्कूल, समाज और जेण्डर सुग्राह्यता में यह प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करता है। इसीलिये श्रद्धेय  अब्दुल कलाम (Abdul Kalam) जी ने कहा –

 “If a country is to be corruption free and become a nation of beautiful minds, I strongly feel there are three key societal members who can make a difference. They are the father, the mother and the teacher.”

“अगर किसी देश को भ्रष्टाचार – मुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो, मेरा दृढ़तापूर्वक  मानना  है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं. पिता, माता और गुरु.”

परिवर्तन के एजेंट के रूप में शिक्षक / Teachers as an Agent of Change –

शिक्षक मार्ग दर्शक, परामर्श दाता, नेतृत्व कर्त्ता और सुविधा प्रदाता के रूप में तो परिवर्तन का वाहक बनता ही है इसके अलावा भी निम्न कारक उसे परिवर्तन के अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करते हैं। –

1 – भाषा बोध / Language Comprehension

2 – अधिगम स्तर समायोजन / Learning Level Adjustment

3 – व्यवहार परिवर्तन / Behavior Change

4 – समय के साथ ताल मेल / Rhythm matching with time

5 – लिंग भेद के प्रति सम्यक दृष्टिकोण विकास / Development of proper attitude towards gender discrimination

6 – सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास / Development of positive attitude

7 – समस्या समाधान योग्यता / Problem solving ability

8 – व्यक्तित्व परिवर्तक / Personality changer

9 – मानसिक, बौद्धिक उत्थान / Mental, Intellectual development

10 – सर्वांगीण विकास / All round development

11 – प्रेरणा प्रदाता / Inspiration provider

विलियम आर्थर वार्ड (William Arthur Ward) ने कितने सुन्दर ढंग से समझाया

‘’The mediocre teacher tells. The good teacher explains. The superior teacher demonstrates. The great teacher inspires.”

‘‘एक औसत दर्जे का शिक्षक बताता है. एक अच्छा शिक्षक समझाता है. एक बेहतर शिक्षक कर के दिखाता है.एक महान शिक्षक प्रेरित करता है.”

जीवन कौशल प्रशिक्षक के रूप में शिक्षक / Teacher as Life Skills Trainer –

जीवन में उत्तरोत्तर विकास के सोपानों से अपने विद्यार्थी को जोड़ने हेतु शिक्षक विविध कौशलों में पारंगत कर स्थिति से समायोजन करना चाहता है। कुछ कौशलों को इस प्रकार क्रम दया जा सकता है –

01 – व्यावसायिक दक्षता कौशल / Professional competence skills

02 – सृजनात्मक कौशल / Creative skill

03 – जागरूकता कौशल / Awareness skill

04 – प्रभावी सम्प्रेषण कौशल / Effective communication skill

05 – समस्या समाधान कौशल / Problem solving skill

06 – निर्णयन कौशल / Decision making skills

07 – संवेग नियन्त्रण कौशल / Emotion control skills

08 – तनाव नियन्त्रण कौशल / Stress management skills

09 – समायोजन कौशल / Adjustment skills

10 – परानुभूति कौशल /Empathic skill

इनके अतिरिक्त विविध कौशलों की आवश्यकता समय सापेक्ष होती है अध्यापक चेतना से युक्त प्राणी है और आवश्यकतानुसार निर्णय लेने में सक्षम है।

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