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वाह जिन्दगी !

शुभ रात्रि है शिव रात्रि /SHUBHRATRI HEA SHIVRATRI.

February 28, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

इस प्रकृति की जितनी भी सुखद सी धारणाएं हैं, 

सभी शिव को समर्पित हैं सभी में शिव समाए हैं। 

सभी मंगल विचारों की, लड़ी ये मति बनाती है,

बुद्धि जुड़ती है तब शुभ से,जब उत्तम भावनाएं हैं।

शुभ रात्रि है शिव रात्रि, नव चिन्तन की दशाएँ हैं।1।

बहुत से भेद रच डाले, अब विविध सी वर्जनाएं हैं,

धैर्य धारण, प्रबल क्षमता, जो  नन्दी ने दिखाए हैं,

उसी आलोक में क्षमता सृजन पथ को बनाती है।

चलो छोड़ो संकीर्णताएं ये सब तम की विमाएँ हैं।

शुभ रात्रि है शिव रात्रि, नव चिन्तन की दशाएँ हैं।2।

शिव के संग पार्वती होना, पुरुष प्रकृति कलाएं हैं,

जन्मेजय संग गणेश शोभित सृजन की भंगिमाएं हैं,

शक्ति संग हो शिव की पूजा सुखद संयोग लाती है।

शुभता घर में प्रश्रय पाती, सुखद सब कल्पनाएं हैं। 

शुभ रात्रि है शिव रात्रि, नव चिन्तन की दशाएँ हैं।3।

सुख – दुःख का आना जाना मनस की ही दशाएं हैं,

शक्ति शिव में, शिव शक्ति में अद्भुत सी छटाएं हैं,

पर्वतमाला कैलाश की, परिस्थिति विषम दर्शाती है।

विषमता में आनन्द दर्शन प्रभु की प्रत्यक्ष शिक्षाएं हैं।  

शुभ रात्रि है, शिव रात्रि, नव चिन्तन की दशाएँ हैं।4।

सुख में दुःख, दुःख में सुख, दिनरात सी धारणाएं हैं,

काल रात्रि के चिन्तन से, समदृष्टा भाव जग आए हैं,

महा काल स्वागत करना शिव रात्रि हमें सिखाती है,

चाहे जो भी अब आये जाए, सम दृष्टा हेतु कलाएं हैं।          

शुभ रात्रि है शिव रात्रि, नव चिन्तन की दशाएँ हैं ।5।

केदार,नागेश्चल,वैद्य नाथ,त्रयम्बकेश्वर में जो छटाएँ हैं,

मल्लिकार्जुन, भीम शंकर,सोम,विश्वनाथ सी कृपाएं हैं

ओंकारेश्वर, घृष्णेश्वर शक्ति, नाथ जो दिशा दिखाती है

महाकालेश्वर, रामेश्वर सब प्रभु की विशद कलाएं हैं।        

शुभ रात्रि है, शिव रात्रि, नव चिन्तन की दशाएँ हैं ।6।

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वाह जिन्दगी !

दर्पण दिखलाने निकला हूँ ।

February 26, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आँख बन्दकर शासन का गुणगान नहीं लिख सकता हूँ

मैं घायल हूँ, रसिक अधर मुस्कान नहीं लिख सकता हूँ

जिसने राष्ट्र को पीड़ा दी, गुणगान नहीं लिख सकता हूँ

गाँवों शहरों चौराहों को शमशान नहीं लिख सकता हूँ ।1। 

मक्कारों, जल्लादों का गुण गान नहीं लिख सकता हूँ,

भारत के महा गद्दारों को खुद्दार नहीं लिख सकता हूँ।

मेरा भारत मुश्किल में है, श्रृंगार नहीं लिख सकता हूँ,

लाचारी भूख गरीबी की दरकार नहीं लिख सकता हूँ ।2।

भ्रष्टाचारों, बेईमानों को सरताज  नहीं लिख सकता हूँ,

भारतीय जनमानस  को मुहताज नहीं लिख सकता हूँ।

जनअंगों के तस्कर को ऋतुराज नहीं लिख सकता हूँ,

क्रूर बदमाशों, गुण्डों को सरदार नहीं लिख सकता हूँ ।3।

मैं तो बस भारत वालों को इतना ही बताने निकला हूँ,

स्वाभिमान गहन न सो जाए मैं उसे जगाने निकला हूँ।

भारत माँ की पीड़ा क्या, बस यह दिखलाने निकला हूँ,

इस देश के सोये लालों को हर तरह जगाने निकला हूँ ।4 ।

नकली धर्म के ठेकेदारों का मैं सच जतलाने निकला हूँ,

लहू का रंग एक ही है यह सत – रस बरसाने निकला हूँ।

लड़ना भिड़ना पागलपन है, यह राज बताने निकला हूँ,

आओ सब मिलकर प्रगति करें ये भाव जगाने निकला हूँ।5।

और, और की चाह बढ़ रही, मैं उसे हटाने निकला हूँ,

नक़ल की अन्धी दौड़, न दौड़ो, ये समझाने निकला हूँ।

भारत की पुरानी गरिमा से, परिचय करवाने निकला हूँ,

मूल्य खोए खोया क्या ‘नाथ’ दर्पण दिखलाने निकला हूँ ।6।

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काव्य

बोलो बम बम बम

February 24, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बोलो बम बम बम

आओ दिन भर करें बस पावन करम,

धीरे – धीरे बढ़ाएं हम शान्ति कदम,

गाएं हम सब मिल शिव शक्ति भजन,

शिव का डमरू बजेगा डम डम डम।

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम ।1।

बेल पत्री, जल, धतूरे से हो आचमन,

शुद्ध रहता है तन शुद्ध रहता है मन,

धीरे धीरे शिवालय को बढ़ते कदम,

कभी तुम बोलो बम कभी बोलें  हम।

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम ।2।

कभी बजेगा मृदंग, कभी बजे सरगम,

हम शिव को भेजेंगे भूल सारे ही गम,

अब अलख जगेगी,  ना लगाएंगे दम,

जी हाँ जीवन से मिटेगा अब सारा तम।   

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।3।

ऊँ नमः शिवाय शुभशुभ ध्वनि गुञ्जन,

सब कर देगा, तन – मन – धन पावन,

करूणानिधि की, करुणा का चलन,

अब सिद्ध करेगा, अपने सारे जतन। 

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।4।

इस जग से मिटा दो प्रभु सब क्रन्दन

सब गाएं खुशी में, खूब होकर मगन

गंगा तट से करेंगे अब शिव दरशन

और ढोल बजेगा भइया ढम ढम ढम। 

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।5।

करें हम झांझ,  मजीरे संग सब नर्तन

विश्व नाथ,  के दर्शन को बढ़ते कदम

इस ‘नाथ’ को लगी है लौ, यह हर दम

बस शिव का मनन, शिव का चिन्तन  

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।6।

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शिक्षा

शैक्षिक समाजशास्त्रऔर शिक्षा का समाजशास्त्र (Educational Sociology and Sociology of Education)

February 22, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

शैक्षिक समाजशास्त्र का अर्थ एवम् परिभाषा( Meaning and Definition of Educational Sociology)-

समाजशास्त्र में मानव और समाज को प्रमुखता दी जाती है जबकि मानव,शिक्षा,समाज और इनके तत्सम्बन्धी अंग शैक्षिक समाजशास्त्र की विषय वस्तु हैं। वस्तुतः शैक्षिक समाज शास्त्र, समाजशास्त्र की ही एक शाखा है जिसमें समाज का शिक्षा पर प्रभाव, सामाजिक सम्बन्धों और इसके विभिन्न पहलुओं का वैज्ञानिक और सुव्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। प्रसिद्द समाजशास्त्री जार्ज पैनी महोदय का विचार है –

” By Educational Sociology we mean the science which describes and explains the institution, social groups and social process, that is the social relationships in which on through which the individual gains and organised his experiences.”

”शैक्षिक समाज विज्ञान से हमारा अभिप्राय उस विज्ञान से है, जो संस्थाओं, सामाजिक समूहों और सामाजिक प्रक्रियाओं का, अर्थात उन सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन और व्याख्या करता है, जिनमें या जिनके द्वारा व्यक्ति अपने अनुभवों को प्राप्त और संगठित करता है।”

ब्राउन महोदय के अनुसार –

“Educational Sociology is the study of the interaction of individual and his cultural environment.”

“शैक्षिक समाजशास्त्र व्यक्ति तथा उसके सांस्कृतिक वातावरण के बीच होने वाली अन्तः क्रिया का अध्ययन है।”

गुड महोदय के अनुसार –

”Educational Sociology is the scientific study of how people live in social groups, especially including the study of education that in obtained by the living in the social groups and education that is headed by the members to live efficiently in social groups.”

”शैक्षिक समाजशास्त्र इस बात का वैज्ञानिक अध्ययन करता है की व्यक्ति सामाजिक समूहों में किस प्रकार रहते हैं, वे कैसी शिक्षा प्राप्त करते हैं तथा इन सामाजिक समूहों में कुशलता पूर्वक रहने के लिए उनको किस प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता होती है।”

कार्टर महोदय के अनुसार –

”Educational Sociology is the study of these phases of Sociology that are of significance for educative process, especially the study of those that point to valuable programme to learning and control of learning process.”

”शैक्षिक समाजशास्त्र, समाज शास्त्र के उन तत्वों का अध्ययन करता हैं जिनका शैक्षिक प्रक्रिया में महत्त्व है और विशेष रूप से उनका अध्ययन करता है जो सीखने की महत्त्वपूर्ण योजना और सीखने की क्रिया के नियन्त्रण की ओर संकेत करते हैं।”

शिक्षा का समाजशास्त्र (Sociology of Education)-

विकीपीडिया(Wikipedia) के अनुसार

”The Sociology of Education is the study of how public institutions and individual experiences affect education and its outcomes. It is mostly concerned with the public schooling systems of modern industrial societies, including the expansion of higher further, adult and higher education.”

“शिक्षा का समाजशास्त्र इस बात का अध्ययन है कि सार्वजनिक संस्थान और व्यक्तिगत अनुभव शिक्षा और उसके परिणामों को कैसे प्रभावित करते हैं। यह ज्यादातर आधुनिक औद्योगिक समाजों की सार्वजनिक स्कूली शिक्षा प्रणाली से सम्बन्धित हैं जिसमें आगे उच्च, वयस्क और सतत शिक्षा का विस्तार शामिल है।”

शेनेका एम विलियम्स ( Sheneka M Williams) के अनुसार

The Sociology of Education refers to how individuals’ experiences shape the way they interact with schooling. More specifically, the sociology of education examines the ways in which individuals’ experiences affect their educational achievement and outcomes.”

”शिक्षा का समाजशास्त्र यह बताता है की कैसे व्यक्तियों के अनुभव स्कूली शिक्षा के साथ बातचीत करने के तरीके को आकार देते हैं। अधिक विशेष रूप से, शिक्षा का समाजशास्त्र उन तरीकों की जाँच करता है जिसमें व्यक्तियों के अनुभव उनकी शैक्षिक उपलब्धि और परिणामों को प्रभावित करते हैं।”

ओटावे महोदय के अनुसार –

”The sociology of education may be defined briefly as a study of the relation bitween education and society.”

”शिक्षा के समाज विज्ञान की परिभाषा संक्षिप्त रूप में शिक्षा और समाज के सम्बन्धों के अध्ययन के रूप में की जा सकती है।”

अर्थात शिक्षा का समाज शास्त्र ,समाज शास्त्रीय समस्याओं के निर्वहन में शिक्षा के योगदान पर ध्यान केन्द्रित करता है।

शिक्षा के समाजशास्त्र और शैक्षिक समाजशास्त्र में अन्तर {Difference between Sociology of Education and Educational Sociology} –

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण के उपरान्त किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पूर्व यह विवेचन करना परमावश्यक है की शिक्षा की समाजशास्त्रीय समस्याओं के निवारण में क्या भूमिका है समाज के धर्म, समाज की संस्कृति और स्वरुप से संयुक्त समस्याओं के निदान में शिक्षा का कहाँ तक प्रयोग हो सकता है शिक्षा की इस भूमिका का अध्ययन शिक्षा का समाजशास्त्र (Sociology of Education) कहा जाता है।

शैक्षिक समाज शास्त्र, शिक्षा को समाजशास्त्रीय धरातल पर विवेचित कर यह देखने का प्रयास करता है की शिक्षा के क्षेत्र में उठने वाली समस्याओं के समाजशास्त्रीय समाधान क्या हैं अर्थात समाज शास्त्र के शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन ज्ञान की जिस शाखा में किया जाता है उसे शैक्षिक समाजशास्त्र(Educational Sociology) कहते हैं।

शिक्षा के समाज शास्त्र की आवश्यकता, उपयोगिता व महत्त्व (Need, Utility and Importance of Sociology of Education) –

1 – सामाजिक उदग्र व क्षैतिज गतिशीलता में शिक्षा के प्रभाव का अध्ययन

2 – सामाजिक सम्प्रत्यय स्पष्टीकरण में शिक्षा की भूमिका

3 – शिक्षा की प्रकृति और स्वरुप का समाज पर प्रभाव का अध्ययन

4 – सामाजिक मन्तव्यों के निर्धारण में सहायक

5- विभिन्न सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन

6 – समाज की सामंजस्य शीलता की वृद्धि में सहायक

7 – सामाजिक अनुशासन स्थापन में सहयोग

8 – जातिभेद, छुआ छूत आदि भावना से निजात में सहायक 

9 – सामाज में वाद प्रतिवाद और सम्वाद, भाव बोध जगाने में सहायक

वास्तव में शिक्षा का समाज शास्त्र और शैक्षिक समाज शास्त्र आपस में इतने गुत्थमगुत्था हैं की इन्हे एक सिक्के के दो पहलू कहा जा सकता है ये अन्योन्याश्रित हैं। इसीलिए इतने समय बाद यह नया प्रत्यय आपके पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता को समझा गया। यद्यपि इन सूक्ष्मताओं को शिक्षा शास्त्र के शिक्षार्थी  नाते जानना आवश्यक है। ध्यान यह रखना है की शिक्षा का समाज शास्त्र, समाज की समस्यायों के निदान में शिक्षा की भूमिका का अध्ययन सुनिश्चित करता है।

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Uncategorized•वाह जिन्दगी !

संस्थान सही हाथों में है। 

February 17, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

गर संस्था खुद परिवार बने, संस्थान सही हाथों में है।

छल और प्रपञ्च से दूर रहे,  संस्थान सही हाथों में है।

यह सच है, दुनिया वाले, पथ में कण्टक बिछवायेंगे।

गर उन सबसे बच के निकले, संस्थान सही हाथों में है। ।1।

मानवीय मूल्य का ख्याल रखे, संस्थान सही हाथों में है।

यदि भूल के भी भटकाव न हो, संस्थान सही हाथों में है।

जब हम दायित्व निर्वहन कर, संस्था को उन्नत बनाएंगे। 

कर्म को उचित सम्मान मिले, संस्थान सही हाथों में है। ।2।

जब दिन प्रतिदिन परवान चढ़े, संस्थान सही हाथों में है।

जब वह समाज की दिशा गढ़े, संस्थान सही हाथों में है।

हमसब समाज संग मिलकर के यह करतब दिखलाएंगे।

जब सभी कर्त्तव्य निर्वहन करें, संस्थान सही हाथों में है। ।3।

सब भेद – भाव को भूल चलें, संस्थान सही हाथों में है।

ना जातिवाद को प्रश्रय मिले, संस्थान सही हाथों में है।

आवाहन और सौगन्ध यही हिलमिल समरसता लाएँगे।

पावन परिवार का साथ मिले, संस्थान सही हाथों में है। ।4।

चापलूसी को न जगह मिले, संस्थान सही हाथों में है।

मर्यादा रीति और नीति बढे ,संस्थान सही हाथों में है।   

संस्था की मान प्रतिष्ठा हित नित कदम उठाए जाएंगे।

संस्था को नवसम्मान मिले , संस्थान सही हाथों में है। ।5।

हो वादों का अम्बार नहीं, संस्थान सही हाथों में है।

निष्ठा को उसका मूल्य मिले,संस्थान सही हाथों में है।   

निष्ठा, लगन, उत्साह सहित पथ प्रशस्त कर जाएंगे।

स्वप्नों का नाथ किला न ढहे, संस्थान सही हाथों में है।।6।

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वाह जिन्दगी !

जीवन की समस्याओं का समाधान(Solution of life’s problems)

February 15, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

समस्या = आवश्यकता – साधन

जब हमारी आवश्यकताओं की अधिकता हो और साधन ओछे पड़ जाएँ तो जन्म होता है समस्या का।

ऐसा कोई नहीं, जिसे समस्याओं का सामना न करना पड़ा हो। हर एक की समस्या का स्तर उसकी आवश्यकता के अनुसार भिन्न भिन्न होता है लेकिन हम सबको समस्या से जूझना चाहिए और पलायनवादिता से बचना चाहिए।

यहाँ समस्या को धराशाई करने के आठ उपाय आपकी नज़र हैं –

1 – जिन्दादिली – जिन्दादिली का यह गुण समस्या के प्रभाव में आश्चर्यजनक कमी लाता है वास्तव में हमें हमारी समस्या हमारे डर के कारण बड़ी दिखती है उतनी बड़ी होती नहीं। लाखों लोग उससे विषम परिस्थिति में आनन्द से जी रहे हैं। कारण है उनकी जिन्दादिली, किसी ने ठीक ही कहा है –

 जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।

2 – मौन – मौन एक अद्भुत जादुई शब्द है और इसका प्रयोग हमें असीमित ऊर्जा से भर देता है। याद रखें हम स्वयम् ऊर्जा के अजस्र स्रोत हैं, जब हम शान्त चित्त होकर समस्या समाधान का प्रयास, चिन्तन मनन और आत्मिक शक्ति के आधार पर करते हैं तो समस्या छू मन्तर हो जाती है। मौन से हम सारी शक्ति अन्तः केन्द्रित कर लेते हैं और समस्या का निदान हो जाता है। 

3 – मानसिक शक्ति – मानस की शक्ति ही आत्म विश्वास का आधार हुआ करती है याद रखें समस्या है तो समाधान है। मानस की शक्ति ने पहाड़ में से रास्ते बनाये हैं, दुर्गम क्षेत्र विजित किए हैं आपकी मानसिक शक्ति आपके मानस का वह उत्थान कर सकती है की समस्या का पूर्ण विलोपन हो जाए। मानस की शक्ति स्वयम् पर ऐसा विश्वास जगाती है की हम मौत के मुँह से जिन्दगी छीन लेते हैं।

4 – आध्यात्मिक अवलम्बन – हमारे सबके अपने अपने ईष्ट हैं जो हमारी परम शक्ति के द्योतक हैं। इन पर दृढ़ विश्वास अद्भुत उल्लासमई जीवन शक्ति प्रदान करता है और असम्भव को सम्भव कर देता है, आवश्यकता है अपने ईष्ट पर दृढ़ विश्वास की। वे करुणा निधान हैं और अहैतुकी कृपा करने वाले हैं। सङ्कल्प लीजिए विकल्प मत छोड़िए। समस्या भाग जाएगी।

5 – लगन – लगन या धुन का पक्का व्यक्ति वह कर गुजरता है जिसे तमाम साधन सम्पन्न व्यक्ति भी नहीं कर पाते। आज के तमाम आविष्कार, चाहे आकाश में उड़ने की बात हो या समुद्र के अन्दर यात्रा की, लगन ने ही रास्ता बनाया है। ध्येय निर्धारित कर उसे पाने की लगन व्यक्ति के व्यक्तित्व में वह निखार लाती है जिसे कोई कृत्रिम साधन नहीं दे सकता। लगन की इस शक्ति के आगे समस्या दम तोड़ देती है।

6 – संयम – संयम या धैर्य वह महत्व पूर्ण गुण है जो हमें हारने नहीं देता और चीख चीख कर कहता है एक प्रयास और। विवेकानन्द जी ने धैर्य की ताक़त को महसूस करते हुए कहा – “उठो …… जागो ….. और तब तक मत रुको ; जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।”

7 – निरन्तर संघर्ष शीलता – हमेशा संघर्ष को तैयार रहें। ईश्वर को धन्यवाद कहें और निरन्तर प्रयास को अपना स्वभाव बना लें। मन्थन की निरन्तरता दूध से घी और समन्दर से अमृत निकाल सकती है। छोटी छोटी समस्या तिनके के मानिन्द कब उड़ गईं पता तब चलेगा जब लोग कहेंगे कि जीवट हो तो उस निरन्तर संघर्ष शील व्यक्ति जैसा।

  8 – समस्या समाधान का विश्वास – समस्या के समाधान का हमें पूर्ण विश्वास होना चाहिए। याद रखें समस्या  समाधान का कोई न कोई रास्ता होता अवश्य है। सम्यक योजना बनाएं। ठीक ही कहा गया है कि –

रास्ता किस जगह नहीं होता

सिर्फ हमको पता नहीं होता।

छोड़ दें डरकर रास्ता ही हम

यह  कोई रास्ता नहीं होता ।

            अन्त में समस्त मानवता का आवाहन है कि पूर्ण क्षमता से समस्या का सामना करें आप अवश्यमेव विजित होंगे। शोणित के ज्वार को दिशा देतीं अनाम पंक्तियाँ –

आरम्भ जब जो कुछ किया, हमने उसे पूरा किया।

था जो असम्भव भी उसे सम्भव हुआ दिखला दिया।

कहना हमारा बस यही था,  विघ्न और विराम से।

कर के हटेंगे, हम कि अब, मर के हटेंगे काम से।

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वाह जिन्दगी !

शुभ पर्व मनाते हैं।

February 14, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आज है चौदह फरवरी का दिन

सब विविध तरह से मनाते हैं।

पच्चीसवीं सालगिरह शादी की

नव खुशियों से जुड़ जाते हैं।

आओ आओ

गरिमा संग ये शुभ पर्व मनाते हैं ।1।

विगत दिनों के साक्षी गत दिन

किस्से सब याद दिलाते हैं।

वह अजब घड़ी थी परीक्षा की

हम क्षण सब याद दिलाते हैं।

आओ आओ

गरिमा संग ये शुभ पर्व मनाते हैं ।2।

शिशु किलकारियों के वे दिन

हमको सब याद दिलाते हैं।

खुशियाँ शुभ युगल आरती की

अनुराग सहित हम गाते हैं।

आओ आओ

गरिमा संग ये शुभ पर्व मनाते हैं ।3।

बच्चों साथ परिश्रम के दिन

सब प्रतिपल याद आते हैं।

गुजर गई घड़ी दीक्षा की

अक्षत संग रोली लगाते हैं।

आओ आओ

गरिमा संग ये शुभ पर्व मनाते हैं ।4।

खट्टे मीठे अनुभव के वे दिन

कुछ ना कुछ हमें सिखाते हैं।

सम्बन्धों की महिमा गरिमा की

स्नेहमयी शपथ दिलवाते हैं 

आओ आओ

गरिमा संग ये शुभ पर्व मनाते हैं ।5।

नई नई चुनौतियों के वे दिन

सम्बन्ध सु-मधुर बनाते हैं।

स्वागत विविध परीक्षा की

‘नाथ’ मर्यादित रीति बताते हैं। 

आओ आओ

गरिमा संग ये शुभ पर्व मनाते हैं ।6।

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दर्शन

प्रयोजनवाद (Pragmatism) 

February 11, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

प्रयोजनवाद को फलक वाद,नैमेत्तिक वाद, व्यवहार वाद आदि नामों से जाना जाता है पाश्चात्य दर्शन की उस विचार धारा को प्रयोजनवाद के नाम से जानते हैं जो मानव के मात्र व्यावहारिक पक्ष पर विचार करती है इसे आँग्ल भाषा में प्रैग्मेटिज्म (Pragmatism) कहा जाता है। यह ग्रीक भाषा के प्रेग्मा (Pragma) अथवा प्रेग्मेटिकोस (Pragmaticos) शब्द से बना है। इसका अर्थ व्यावहारिकता से होता है इसलिए इसे प्रैग्मेटिज्म (Pragmatism) कहते हैं।

प्रयोजन वाद की मीमांसाएँ –

प्रयोजनवादियों का मानव और सृष्टि के सम्बन्ध में जो चिन्तन है उसे समझने हेतु उसकी तत्त्व मीमांसा (Metaphysics), ज्ञान व तर्क मीमांसा ( Episteomology and Logic) तथा मूल्य आचार मीमांसा (Axiology and Ethics) को जानना परम आवश्यक है इसलिए पहले हम उक्त मीमांसाओं को विवेचित करेंगे।

(a) – तत्त्व मीमांसा (Meta Physics)- प्रयोजनवाद का तात्विक विवेचन यह तथ्य स्पष्ट करता है की सत्य निर्धारण की स्थिति में रहता है कोइ पूर्व निर्धारित सत्य नहीं हो सकता,यह परिवर्तनशील होता है। इसे मानवतावादी प्रयोजनवाद (Humanistic Pragmatism) कहते हैं कुछ प्रयोजनवादी उसे ही सत्य स्वीकारते हैं जो प्रयोग की कसौटी पर खरा उतरे इसे प्रयोगवादी प्रयोजन वाद(Experimental  Pragmatism) कहा जाता है कुछ प्रयोजनवादी ऐसे भी हैं जो अनुभव को प्रमाण मानते हैं अनुभव सिद्ध ज्ञान का आधार ले ये कहते हैं कि तथ्य आधारित सत्यता भाषा भिन्न होने पर भी सामान परिणाम देती है इसलिए अलग अलग भाषा होने पर भाषा पर नहीं बल्कि परिणाम पर ध्यान दिया जाना चाहिए इसे नाम रूपी प्रयोजनवाद ( Nominalistic  Pragmatism) कहा जाता है।

प्रयोजनवादियों का एक समूह केवल उसी को सत्य स्वीकारता है जो मानव की जीव वैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं इन्हें जीव विज्ञानी प्रयोजनवाद (Biological Pragmatism) का समर्थक कहा जाता है। कार्य साधन सम्बन्ध के आधार पर तात्विक विवेचना इसे साधनवाद, नैमित्तिकवाद कहने में नहीं हिचकिचाती। डीवी का उपकरण वाद (Instrumentalism) प्राणी को उपकरण मानने के कारण चर्चा में रहा।

(b) – ज्ञान व तर्क मीमांसा (Episteomology and Logic) – इनके अनुसार ज्ञान ज्ञान के लिए नहीं है बल्कि यह सुख पूर्वक जीवन जीने का आधार है जीवन को सुखमय बनाने वाले साधन के रूप में ये ज्ञान को स्वीकारते हैं सामाजिक गतिविधियों में क्रिया कर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है ज्ञान और कर्म की इन्द्रियाँ ही वह माध्यम हैं जो ज्ञान, मस्तिष्क, बुद्धि का आधार हैं।

(c) –मूल्य व आचार मीमांसा (Axiology and Ethics) – चूँकि ये सत्य को शाश्वत मानते ही नहीं इसलिए कोई पूर्व निर्धारित मूल्य या आचरण सार्व कालिक हो ही नहीं सकता। यह मानते हैं कि बच्चों में सामजिक कुशलता का गुण विकसित कर हर परिस्थिति में उसकी जीविकोपार्जन क्षमता, समायोजन क्षमता, समाधान क्षमता को निरन्तर परिमार्जनशीलता से जोड़े रखना चाहते हैं जिससे परिस्थिति अनुसार मूल्य व आचरण नया रूप धारण कर सके।

प्रयोजनवाद की परिभाषाएं (Defenitions of Pragmatism) – प्रयोजनवाद के विविध रूप हैं इसी कारण परिभाषाओं में भी इसी विविधता के दर्शन होते हैं कुछ परिभाषाएं दृष्टव्य हैं जेम्स बी. प्रेट (James B Prett) के शब्दों में –

 ”Pragmatism offer as a theory of meaning, a theory of truth of knowledge and theory of reality.”

”प्रयोजनवाद हमें अर्थ का सिद्धान्त, सत्यता का सिद्धान्त, ज्ञान का सिद्धान्त एवं वास्तविकता का सिद्धान्त प्रदान करता है।”

रॉस (Ross) महोदय कहते हैं। –   

”Pragmatism is essentially a humanistic philosophy maintaining that man creates his own values in course of activity, that reality is still in making and awaits its part of the completion from the future. -Ross

”प्रयोजनवाद निश्चित रूप से एक मानवतावादी दार्शनिक विचारधारा है इसकी यह मान्यता है की मनुष्य कार्य करने के दौरान अपने मूल्यों का स्वयं निर्माण करता है, सत्य अभी निर्माण की अवस्था में है जिसके शेष भागों की पूर्ति भविष्य में होगी।”

प्रयोजनवाद के बारे में विलियम जेम्स (William James) महोदय कहते हैं। –

”Pragmatism is a temper of mind, an attitude, it is also a theory of the nature of ideas and truth and finally, it is a theory about reality.”

फलकवाद मस्तिष्क का एक स्वभाव है, एक अभिवृत्ति है यह विचार और सत्य की प्रकृति का सिद्धान्त है और अन्ततः यह वास्तविकता के बारे में सत्यता का सिद्धान्त है।”

रमन बिहारी लाल ने प्रयोजन वाद की कई विचार धाराओं को समाहित करते हुए  इस प्रकार पारिभाषित किया –

” प्रयोजन वाद पाश्चात्य दर्शन की वह विचारधारा है जो इस ब्रह्माण्ड को विभिन्न तत्वों और क्रियाओं का परिणाम मानती है और यह मानती है कि भौतिक संसार ही सत्य है और इसके अतिरिक्त कोई आध्यात्मिक संसार नहीं है।” 

प्रयोजनवाद और  शिक्षा(Pragmatism and Education ) –

प्रयोजनवाद का शिक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ा इस वाद के प्रमुख दार्शनिकों में विलियम जेम्स, जॉन डीवी, किल पैट्रिक, मिलर आदि का नाम आता है इसके प्रभाव ने शिक्षा के उद्देश्यों व इसके अंगों पर परिवर्तनकारी छाप छोड़ी है। जिन्हें इस प्रकार अधिगमित किया जा सकता है।

प्रयोजनवाद के मूल सिद्धान्त (Fundamental Principles of Pragmatism) –

1- ब्रह्माण्ड अनेक तत्त्वों व क्रियाओं का फल

2 – भौतिक जगत मात्र का अस्तित्व

3 – पदार्थजन्य क्रियाशील तत्त्व आत्मा

4 – सहज सामाजिक प्रक्रिया का सोपान मानव विकास

5 – सांसारिक सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव 

6 – सुखपूर्वक जीवन यापन मानव उद्देश्य 

7 – सुखपूर्वक जीवन यापन व सामाजिक विकास परस्पर निर्भर                                                                   

8 – सामाजिक विकास का आधार सामाजिक कुशलता

9 – राज्य एक सामाजिक संस्था

प्रयोजनवाद और  शिक्षा के उद्देश्य (Pragmatism and Aims of Education ) –

प्रयोजनवादी शिक्षा के निश्चित उद्देश्यों को ही स्वीकार नहीं करते पर्यावरण व मूल्य निरन्तर परिवर्तित हो रहे हैं इस आधार पर डीवी महोदय कहते हैं –

”शिक्षा के अपने में कोई उद्देश्य नहीं होते, उद्देश्य तो व्यक्तियों के होते हैं और व्यक्तियों के उद्देश्यों में बड़ी भिन्नता होती है, जैसे जैसे व्यक्तियों का विकास होता जाता है उनके उद्देश्य भी बदलते जाते हैं।”

यह शिक्षा के उद्देश्यों की जगह शिक्षा से बालकों की योग्यताओं में निम्न अभिवृद्धि की आशा करते हैं। –

1 – सामाजिक वातावरण व पर्यावरण से अनुकूलन

2 – गतिशीलता

3 – सामाजिक कुशलता

4 – लोकतान्त्रिक अभिवृत्ति 

प्रयोजनवाद और पाठ्यक्रम (Pragmatism and Curriculum)- ये उद्देश्यों की तरह स्पष्ट विषय विभाजन की जगह पाठ्यक्रम हेतु उन सिद्धांतों को बढ़ावा देना चाहते हैं जो इनके अनुसार बालक हेतु आवश्यक हैं ये कहते हैं समयानुसार सिद्धांतों के अनुसार विषयों की आवश्यकता होगी। इनके अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण हेतु निम्न सिद्धांतों का अवलम्बन लेना होगा।

1 – उपयोगिता का सिद्धान्त (Principle of Utility)

जेम्स महोदय ने कहा है –

”It is true because it is useful.”–William James

”किसी वस्तु की सत्यता उसकी उपयोगिता के आधार पर निर्धारित की जा सकती है।”

2 – रूचि का सिद्धान्त (Principle of Interest)

3 – अनुभव का सिद्धान्त (Principle of Experience)

”विद्यालय समुदाय का अंग है। इसलिए यदि ये क्रियाएं समुदाय की क्रियायों का रूप ग्रहण कर लेंगी तो ये बालक में नैतिक गुणों और पहल कदमी तथा स्वतन्त्रता के दृष्टिकोणों का विकास करेंगी। साथ ही ये उसे नागरिकता का प्रक्षिशण देंगी और उसके आत्मानुशासन को ऊँचा उठाएंगी।”

4 – एकीकरण का सिद्धान्त (Principle of Integration)

5 – सत्य की परिवर्तनशील प्रकृति (Nature of truth is changeable)

”The truth of an idea is not a stagnant property inherent in it, truth happens to an idea.”-William James

जेम्स महोदय के अनुसार –

”सत्य कोई पूर्ण निश्चित एवम् अनन्त सिद्धान्त नहीं, प्रत्युत वह सदा निर्माण की अवस्था में रहता है।”

जेम्स महोदय पुनः कहते हैं –

”सत्य किसी विचार का स्थाई गुण धर्म नहीं है। वह तो अकस्मात् विचार में निर्वासित होता है।”

6 – क्रिया प्रमुख, ज्ञान द्वित्तीयक (Action main, Knowledge Secondary)

प्रयोजनवाद और शिक्षण विधियां (Pragmatism and Methods of Teaching) –

ये सीखने हेतु किसी शिक्षण विधि का समर्थन करने की जगह व्यावहारिक विधियों के चयन हेतु प्रेरित करते हैं।

रॉस महोदय कहते हैं –

”यह (प्रयोजनवाद) हमें चेतावनी देता है की हम प्राचीन और घिसीपिटी विचार क्रियाओं को अपने शैक्षिक व्यवहार में प्रमुख स्थान न दें और नई दिशाओं में कदम बढ़ाते हुए अपनी विधियों में नए प्रयोग करें।”

  • – उद्देश्य पूर्ण शिक्षण विधि(Purposive Process of Learning) –

ये चाहते हैं कि अध्यापक ऐसी विधि का अनुसरण करे जिससे बालक अपनी इच्छा रूचि और प्रवृत्ति के अनुसार अपने आप ज्ञान लब्ध करे।

रॉस के शब्दों में – ”सीखने की प्रक्रिया उद्देश्य पूर्ण होनी चाहिए।”

  • – क्रिया विधि से सीखना  (Learning by Doing ) –

प्रयोजनवादी बालक को रटाने की जगह क्रिया द्वारा सीखने पर बल देते हैं ‘करके सीखना’ से आशय मात्र ‘व्यावहारिक कार्य’ को तरजीह देना नहीं है बल्कि उसे ऐसा बनाना है जो हर परिस्थिति से तारतम्य बना सके।

  • – प्रोजेक्ट विधि (Project Method) –

प्रोजेक्ट पद्धति, समस्या समाधान पद्धति, स्वक्रिया पद्धति, स्व अनुभव पद्धति,सह सम्बन्ध पद्धति, परीक्षण पद्धति ,प्रयोग पद्धति पर इन्होंने विशेष ध्यान केन्द्रित किया। इन्हें प्रोजेक्ट पद्धति का जनक कहा जाता है जिसमें उक्त सभी विधि तो सम्मिलित हैं ही साथ में निम्न तथ्य समाहित करने पर जोर दिया।

1 – बालक की रूचि के अनुसार शिक्षा प्रदान की जाए।

2 – ज्ञान प्राप्ति हेतु स्वतन्त्रता प्रदान की जाए।

3 – वैयक्तिक भिन्नता का ध्यान रखा जाए।

4 – सामाजिक भावना का विकास किया जाए।

5 – बालकों के शब्दों से अधिक कार्यों पर ध्यान दिया जाए।

प्रयोजनवाद और अध्यापक (Pragmatism and Teacher) –

प्रयोजनवादियों का मानना है कि शिक्षक बालक को समाजोन्मुख करने वाला प्रमुख व्यक्ति है समाज के प्रतिनिधि के रूप में उसे निरीक्षण करने सहयोग देने व बालक को उत्साहित मात्र कराने का अधिकार है उस पर अपने विचार लादने का नहीं। शिक्षक को अपनी परिष्कृत बुद्धि परिमार्जित व्यक्तित्व द्वारा बालकों के ज्ञान तथा समाज हेतु तैयारी के आधार पर बालकों की सहायता करनी चाहिए।

प्रयोजनवाद और अनुशासन (Pragmatism and Discipline) –

डीवी व अन्य प्रयोजनवादी अनुशासन को प्रजातान्त्रिक ढंग से स्व अनुशासन, रूचि व सहयोग पर आधारित करना चाहते हैं।

हैरोल्ड जी 0 शैन ने डीवी से प्रभावित होकर कहा –

”जहाँ तक अनुशासन का सवाल है, डीवी के मानदण्ड उच्च श्रेणी के थे आवश्यकता हो तो अध्यापकों पर कठोर नियन्त्रण रखने से लेकर, छात्रों की परिपक़्वता के साथ आत्मानुशासन के महत्त्व को स्वीकारने तक।”

प्रयोजनवाद और विद्यालय (Pragmatism and School) –

प्रयोजनवादी विद्यालय को समाज के लघु रूप में स्वीकारते हैं और विद्यालयों में शिल्पों पर बल देकर शिक्षा को जीविकोपार्जन हेतु उपयोगी बनाना चाहते हैं।

डीवी ने कहा – ” विद्यालय अपनी चहारदीवारी के बाहर से बहुत कुछ समाज की प्रतिच्छाया है।”

ये जीवन के सर्वोत्तम ढंग को सिखाना चाहते हैं।

डीवी ने कहा – ” विद्यालय सामाजिक प्रयोगों की प्रयोगशाला होनी चाहिए, जिससे बालक एक दूसरे के साथ रहकर जीवन यापन के सर्वोत्तम ढंगों को सीख सकें।”

प्रयोजनवाद का मूल्यांकन (Estimate of Pragmatism) – मूल्याङ्कन हेतु आवश्यक हे कि इसके गुण दोषों का अध्ययन किया जाए।

प्रयोजनवाद के गुण  (Merits of Pragmatism) –

1 – बाल केन्द्रित शिक्षा

2 – क्रिया आधारित शिक्षा

3 – लोकतन्त्रीय शिक्षा

4 – सामाजिक व्यवहारिक शिक्षा

5 – प्रोजेक्ट पद्धति का प्रयोग

6 – शिक्षा में सकारात्मक परिवर्तन

7 – विचारों को व्यवहार के अधीन लाना –

रस्क महोदय ने कहा –

”प्रयोजनवाद का वह रूप जिसने अपना सर्वाधिक प्रभाव डाला है, यह है की उसने शिक्षा के क्षेत्र में विचारों को व्यवहारों के अधीन कर दिया है।”

प्रयोजनवाद के दोष   (Demerits of Pragmatism) –

1 – सत्य सम्बन्धी धारणा अनुचित

2 – आध्यात्मिकता को तिलाञ्जलि  

3 – उपयोगिता निर्णयन दुष्कर

4 – निश्चित उद्देश्य का अभाव

5 – पाठ योजना बनाना कठिन

6 – बुद्धि के महत्त्व में कमी

7 – सांस्कृतिक अवमूल्यन

8 – अतीत की उपेक्षा

9 – एकत्व वाद के सापेक्ष बहुवाद पर अधिक बल

उपरोक्त विवेचन में भले ही दोष, गुण की तुलना में अधिक दिखते हों लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किय जा सकता कि इसने शिक्षा जगत में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं। रस्क (Rusk) महोदय ने कहा –

”It is merely a stage in the development of a new Idealism that will do full justice of reality, reconcile the practical and the spiritual values, and result in a culture which is the flower of efficiency.”

”प्रयोजनवाद, नवीन आदर्श वाद के विकास में एक चरण मात्र है। यह नवीन आदर्शवाद ऐसा होगा, जो सदैव जीवन की वास्तविकता का ध्यान रखेगा और व्यावहारिक और आध्यात्मिक मूल्यों का समन्वय करेगा। इसके साथ ही, यह ऐसी संस्कृति का निर्माण करेगा, जो कुशलता का पुष्प होती है।”

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दर्शन

IDEALISM/आदर्शवाद या प्रत्यय वाद या विचार वाद

February 7, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

Meaning and definition

अर्थ एवम् परिभाषा –

शब्द ‘आदर्शवाद ‘ आंग्ल भाषा के ‘Idealism’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है प्लेटो के विचारवादी सिद्धान्त से ही शब्द ‘Idealism’ की उत्पत्ति हुई है जिससे आशय है की अन्तिम सत्ता विचारों की ही है इसलिए इसे विचारवाद या प्रत्यय वाद भी कहते हैं।  ‘Idea -ism’  में ‘l’ उच्चारण की सुविधा हेतु जोड़ा गया। वास्तविक शब्द  Idea-ism ही है।

आदर्शवादी धारणा भौतिक जगत की तुलना में आध्यात्मिक जगत को महत्त्व पूर्ण मानती है इस धारणा  के अनुसार भौतिक जगत नाशवान व असत्य है और आध्यात्मिक जगत सत्य है जैसा कि डी ० एम ० दत्ता जी ने कहा –

” Idealism holds that ultimate reality is spiritual.”

“आदर्शवाद वह सिद्धान्त है जो अन्तिम सत्ता आध्यात्मिक मानता है। “

आदर्शवादी संसार का उत्पादक कारण मन या आत्मा को मानते हैं जैसा कि J.S. Ross  महोदय ने कहा –

“Idealistic philosophy takes many and varied forms, but the postulate underlying all that mind or spirit is the essential world stuff, that the true reality is of a mental character.”

“आदर्शवाद के बहुत से और विविध रूप हैं परन्तु सबका आधारभूत तत्व यह है कि संसार का उत्पादक कारण मन या आत्मा है और मानसिक स्वरूप ही वास्तविक सत्य है।”

आदर्शवादी मानता है कि स्थाई तत्त्व की प्रकृति मानसिक है पहले विचार आता है और उसकी अभिव्यक्ति से सृजन होता है। Herman H. Horne  के अनुसार –

”  Idealism is the conclusion that the universe is an expression of intelligence and will, that the enduring substance of the world is of the nature of mind that the material is explained by the mental.”

“आदर्शवाद का सार है कि ब्रह्माण्ड बुद्धि एवम् इच्छा की अभिव्यक्ति है विश्व के स्थाई तत्व की प्रकृति मानसिक है और भौतिकता की व्याख्या बुद्धि द्वारा की जाती है ।”

Fundamental principles of Idealism

आदर्शवाद के प्रमुख सिद्धान्त –

or

Basic assumptions of Idealism

शिक्षा की मूलभूत अवधारणाएं –

  • जड़ प्रकृति की अपेक्षा मनुष्य को महत्त्व

Rusk महोदय के अनुसार –

” The spiritual and cultural environment is an environment of man’s own making, It is a product of man’s creative activity.”

” इस आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक वातावरण का निर्माण स्वयं मनुष्य ने किया है अर्थात समस्त नैतिक तथा आध्यात्मिक वातावरण समस्त मनुष्यों की रचनात्मक क्रियाओं का फल है। “ 

२ – भौतिक से अधिक आध्यात्मिक जगत को महत्त्व –          

आदर्शवादी विचारकों ने स्वीकार किया की आध्यात्मिक जगत ही अधिक महत्त्व पूर्ण है इसीलिये भौतकवादी व्यवस्था का स्थान गौड़ है।

३ – वस्तु की अपेक्षा विचार को महत्त्व – विचार की महत्ता स्वीकारते हुए प्लेटो महोदय ने कहा –

“विचार अन्तिम एवम् सार्वभौमिक महत्तव वाले होते हैं यही वे परमाणु हैं जिनसे विश्व को रूप प्राप्त होता है। ये वे आदर्श अथवा प्रतिमान हैं जिनके द्वारा उचित की परीक्षा की जाती है। ये विचार अन्तिम एवम् अपरिवर्तनीय हैं। ”

४ -आध्यात्मिक मूल्यों में आस्था – हैंडरसन महोदय ने अपने विचारों को इस प्रकार अभिव्यक्ति किया –

“Idealism emphasis the spiritual side of man because to the idealist spiritual values are the most important aspects of man and life.”

 “आदर्शवाद मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष पर बल देता है क्योंकि आदर्शवादियों के लिए आध्यात्मिक मूल्य जीवन के तथा मनुष्य के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। ”

५ -व्यक्तित्व के विकास पर बल – आदर्श वादी स्वीकारते हैं कि आध्यात्मिक पूर्णता की प्राप्ति से व्यक्तित्व का विकास होता है जैसा कि रॉस महोदय ने कहा-

” The aim of Education especially associated with Idealism is the exaltation of personality or self.”-J. S. Ross

” आदर्श वाद से विशेष रूप से सम्बन्धित शिक्षा का उद्देश्य है -व्यक्तित्व का उत्कर्ष अथवा आत्मानुभूति। ”

६ – विभिन्नता में एकता का सिद्धान्त-

विभिन्नता (विविधता ) ———————-एकता (चेतन तत्त्व, ईश्वर, एक शक्ति )

यह केन्द्रीय शक्ति संसार के सभी प्राणियों को एकता के सूत्र में आबद्ध करती है।   

७ -ब्रह्माण्ड मानव मस्तिष्क में निहित –

ब्रुवेकर  ( Brubacher  )-

 “The idealists point out that it is a mind that is central in understanding the world.”

                                 “आदर्श वादियों का कहना है कि संसार को समझने के लिए मस्तिष्क सर्वोपरि है।”

आदर्शवादी विचार को शाश्व

त मानते हैं उदाहरण के लिए कार आज है कल नष्ट हो सकती है परन्तु कार का विचार नष्ट नहीं हो सकता है।

आदर्शवाद व शिक्षा के उद्देश्य(Idealism and its aim) –

1-व्यक्तित्व का उत्कर्ष या आत्मानुभूति –रॉस – ”आदर्शवाद से विशेष रूप से सम्बन्धित शिक्षा का उद्देश्य है – व्यक्तित्व का उत्कर्ष या आत्मानुभूति ;अर्थात आत्मा की सर्वोत्तम शक्तियों या क्षमताओं को वास्तविक रूप देना ।”

2-सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि –

रस्क -”शिक्षा को मानव जाति को इस योग्य बनाना चाहिए कि वह अपनी संस्कृति की सहायता से आध्यात्मिक जगत में अधिक से अधिक पूर्णता से प्रवेश कर सकें और आध्यात्मिक जगत की सीमाओं का विस्तार कर सकें।”

3-मूल्यों व आदर्शों की स्थापना –

रस्क -”आदर्श या मूल्य तीन हैं –

1- मानसिक- जो ज्ञात हैं।

2 – भावात्मक- जिनका अनुभव किया जाता है।

3 -सांस्कृतिक- जिनका संकल्प किया जाता है।

4 – पवित्र जीवन की प्राप्ति – फ्रोबेल महोदय ने कहा –

“शिक्षा का उद्देश्य भक्तिपूर्ण, पवित्र तथा कलंक रहित जीवन की प्राप्ति है। शिक्षा को मनुष्य का पथ प्रदर्शन इस प्रकार करना चाहिए कि उसे अपने आप का ,प्रकृति का सामना करने का और ईश्वर से एकता स्थापित करने का स्पष्ट ज्ञान हो जाए।

  5 – आध्यात्मिक  चेतना का विकास –

आदर्शवादियों  विश्वास है कि जब मनुष्य अपने प्राकृतिक ‘स्व’ एवम् सामाजिक ‘स्व’ से ऊपर उठकर अपने बौद्धिक ‘स्व’ से नियन्त्रित होने लगता है तो यह यात्रा अन्ततः आध्यात्मिक ‘स्व’ के क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है।

6 – नैतिक एवम् चारित्रिक विकास –

आदर्शवादी दार्शनिकों का स्पष्ट मत है कि शिक्षा के द्वारा मानव का चारित्रिक व नैतिक उत्थान हो जिससे वह राष्ट्रोत्थान हेतु तत्पर हो प्लेटो,हीगल व फिक्टे भी श्रेष्ठ नागरिकों के निर्माण उद्देश्य रूप में स्वीकार करते हैं।

7 –  शारीरिक विकास –

आदर्श वादी शिक्षा द्वारा हृष्ट पुष्ट व्यक्ति तैयार कर स्व रक्षार्थ व राष्ट्र रक्षार्थ उनका उपयोग निस्वार्थ करना चाहते हैं। वे शारीरिक से मानसिक व आध्यात्मिक उद्देश्य लब्धि सुनिश्चित करना चाहते हैं।

8 –  सत्यम् शिवम् सुंदरम् की प्राप्ति –

 ये विश्वात्मा से तादात्म्य हेतु सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् की मानव मन में स्थापना चाहते हैं यद्यपि ये पृथक सत्ताएं नहीं हैं सत्ता एक है वही सत्यम् है वही  शिवम् है वही सुंदरम् है। सब इसी में निहित है।

Idealism and Curriculum

आदर्शवाद और पाठ्यक्रम –

आदर्शवादी मानव के मानसिक, शारीरिक,बौद्धिक,सांस्कृतिक,सामाजिक,नैतिक,चारित्रिक व आध्यात्मिक प्रगति पर बल देते हैं और इस हेतु पाठ्यक्रम में साहित्य, भाषा,नीति शास्त्र और अध्यात्म शास्त्र पर विशेष बल देते हैं।

प्लेटो ने पाठ्यक्रम से मानव मूल्यों का पोषण चाहा इसीलिये सत्यम् हेतु भाषा, साहित्य, गणित, भूगोल ,विज्ञान,इतिहास, शिवम् हेतु नैतिक शास्त्र,धर्म शास्त्र अध्यात्म शास्त्र और सुन्दरम् को आचरण में लाने के लिए कला,कविता,नृत्य आदि का पाठ्यक्रम में समावेशन चाहा।  

जर्मन आदर्शवादी हर्बर्ट भाषा,साहित्य,संगीत व कला को प्रमुख व विज्ञान को गौड़ स्थान प्रदान करते थे।

इंग्लैण्ड के आदर्शवादी नन महोदय शरीर विज्ञान, समाज शास्त्र,धर्म, नीति शास्त्र,साहित्य,कला,संगीत, इतिहास,भूगोल,गणित,विज्ञान को उचित समझते थे।  

Idealism and Methods of Teaching

आदर्शवाद और शिक्षण की विधियाँ –

आदर्शवाद में शिक्षण उद्देश्य स्पष्ट व निश्चित हैं इसलिए उद्देश्य प्राप्ति को प्रमुख मानकर बालक की रूचि व योग्यता के अनुसार शिक्षण विधि विकसित व प्रयुक्त करना चाहते हैं बटलर ने कहा भी है –

“Idealists consider themselves creators and determiners of methods not devotees of some one method.”

 ”आदर्शवादी अपने को किसी एक विधि का भक्त न मानकर विधियों का निर्माण व निश्चय करने वाला मानते हैं।”

कुछ आदर्शवादियों द्वारा प्रयुक्त विधियों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं –

सुकरात – वाद विवाद, व्याख्यान, प्रश्नोत्तर

प्लेटो  –    प्रश्नोत्तर, संवाद

अरस्तु –   आगमन विधि,निगमन विधि

हीगल  –   तर्क विधि

पेस्टालोजी – अभ्यास एवं आवृत्ति विधि

हर्बर्ट    –   अनुदेशन विधि

फ्रोबेल  – खेल विधि 

Idealism and Discipline

आदर्शवाद और अनुशासन –

आदर्शवादी अनुशासन को अत्याधिक महत्तव प्रदान करते हैं लेकिन यह अनुशासन दमनात्मक न होकर आत्म अनुशासन होना चाहिए जो समर्पण भाव पर आधारित हो न की स्वातन्त्रय  आधारित। थॉमस व लैंग के अनुसार –

”Freedom is the cry of naturalists while discipline is that of Idealists.”

“प्रकृतिवादियों का नैरा स्वतन्त्रता है जबकि आदर्शवादियों का नैरा अनुशासन है। ”

एक अन्य विचारक फ्रोबेल अनुशासन स्थापन में प्रेम व सहानुभूति की आवश्यकता महसूस करते हुए कहते हैं –

”Control over the child is to be exercised through a knowledge of his interests and by expression of love and sympathy.”

”बालक की रूचि का ज्ञान प्राप्त करके तथा प्रेम और सहानुभूति प्रकट करके उस पर नियन्त्रण किया जाना चाहिए।”

आदर्शवादी मानते हैं कि अनुशासन में रहकर ही आत्मानुभूति जैसा विहिश्त आध्यात्मिक उद्देश्य प्राप्त हो सकता है।

Idealism and Teacher

आदर्शवाद और शिक्षक –

आदर्शवादी शिक्षक को गरिमामयी गौरवपूर्ण स्थान प्रदत्त करते हैं इनकी दृष्टि में बालक के आध्यात्मिक विकास में शिक्षक महत्त्वपूर्ण कारक है क्योंकि वह आध्यात्मिक गुणों का वह प्रकाश पुंज है जो आध्यात्मिक वातावरण का सृजन कर सकता है। वह माली की भाँती है जो मनमोहिनी छटा के सृजन में महत्तानपूर्ण भूमिका अभिनीत करता है शिक्षक के महत्तव को दर्शाते हुए Ross कहते हैं –

”The naturalist may be content with briars but the idealist wants fine roses, so the educator by his efforts assists the educand who is developing according to the laws of his nature to attain levels that would otherwise be denied to him.”

”एक प्रकृतिवादी केवल काँटों को देखकर ही सन्तुष्ट हो सकता है परन्तु आदर्शवादी सुन्दर गुलाब का पुष्प देखना चाहता है इसलिए शिक्षक अपने प्रयासों से बालक को, जो अपनी प्रकृति के नियमों के अनुसार विकसित होता है उस उच्चता तक पहुँचाने में सहायता देता है जहां तक वह स्वयं नहीं पहुँच सकता।”

Idealism and Child 

आदर्शवाद और बालक –

आदर्शवादी बालक को मन व शरीर दोनों मानते हैं जिसमें मन को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं उनके अनुसार अनुभव का केन्द्र मष्तिस्क नहीं आत्मा है और इस दृष्टि से सब बच्चे सामान हैं व पूर्णता की अनुभूति के योग्य हैं लेकिन ज्ञान को आत्मा ( बोध स्तर ) तक पहुंचाने में शरीर की इन्द्रियाँ कार्य करती हैं और इनकी क्षमता की भिन्नता अन्तर का कारण है।

जर्मन शिक्षा शास्त्री पेस्टालॉजी ने सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक भिन्नता के आधार पर शिक्षा का विधान दिया उनके शिष्य हर्बर्ट व फ्रोबेल ने इसे मूर्त रूप दिया।

Evaluation of Idealism as educational philosophy

शिक्षा दर्शन के रूप में आदर्शवाद का मूल्यांकन –

विश्व के महान दार्शनिक सुकरात,प्लेटो, बर्कले, लाइबनित्स,फिख्टे,शॉपेन हॉवर, हीगल, कार्लायल, एमर्सन, ग्रीन, ब्रैडले, टेलर, पेस्टालॉजी, हर्बर्ट, फ्रोबेल, आदि पाश्चात्य विचारकों की विचारधारा में कुछ अन्तर अवश्य है लेकिन ये सभी परम सत्य में अखण्ड विश्वास रखते थे यह विचारधारा भारतीय विचारधारा के सबसे निकट है गन दोषों के आधार पर इसका मूल्याँकन इस प्रकार किया जा सकता है – 

Merits of Idealism (आदर्शवाद के गुण)-

1- सर्वोत्कृष्ट मूल्यों की स्थापना

2 – चारित्रिक विकास

3 – सशक्त व्यक्तित्व का गठन

4 – शिक्षक को गौरवपूर्ण स्थान

5 – आत्म अनुशासन की भावना

6- विद्यालय को सामाजिक संस्था का स्थान

7 – रचनात्मक शक्ति का विकास

8 – निश्चित उद्देश्य 

Demerits of Idealism (आदर्शवाद की कमियाँ) –

1 – अध्यात्म पर अधिक बल

2 – केवल भविष्य से सम्बन्ध

3 – बौद्धिकता को आवश्यकता से अधिक महत्तव

4 – बालक को गौण स्थान

5 – अंतिम ध्येय पर सम्पूर्ण ध्यान

6 – वैज्ञानिक विषयों को कम महत्त्व

7 – शाश्वत आदर्श की परिकल्पना विवादास्पद         

आदर्शवाद के गुण दोषों का मन्थन करने पर हमें गुणों का पलड़ा ही भारी महसूस होता है इस विचारधारा ने सबसे दीर्घ अवधि तक अपनी छाप छोड़ी है व मानव को सच्चे अर्थों में मानव बनने में योग दिया है इसमें मानसिक, नैतिक, सांस्कृतिक व धार्मिक शक्तियों को बल मिला है।रस्क कहते हैं –

“These powers lie beyond the range of the positive sciences-biological and even psychological, they raise problems which only philosophy can hope to solve and make the only satisfactory basis of education a philosophical one.” 

“ये शक्तियाँ जीव विज्ञान तथा मनोविज्ञान जैसे वास्तविक विज्ञानों की सीमा से परे हैं ये शक्तियाँ ऐसी समस्याओं को प्रस्तुत करती हैं जिनको केवल दर्शन ही सुलझा सकता है इस प्रकार केवल यही शक्तियाँ शिक्षा के संतोषजनक आधार अर्थात दार्शनिक आधार को निर्मित करती हैं।” 

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काव्य

बताएं अपने देश का……………….?

by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

धर्म के नाम पर यह धन्धा अजीब है,

झगड़ा किसी का हो मरता गरीब है,

दंगा कोई भी हो, मुद्दा भी कोई हो,

अच्छाइयों हेतु मुकम्मल सलीब है।

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।1।

दुनियाँ को नापना है पुरानी जरीब है,

 ये याद है रखना, दुनियाँ रकीब है,

चंगा कोई भी हो मुर्दा भी कोई हो,

आज के इस दौर में पैसा हबीब है।

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।2।

जाति, मजहब, कौम का जो मुरीद है,

वह जानता नहीं कि सबका वहीद है,

मजहब कोई हो व वतन भी कोई हो,

गिरता जो शीश सीमा पे वो शहीद है।       

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।3।

कैसे कहूँ की देश मेरा अब गरीब है,

जेहन हैं इस में ऐसे, मंगल करीब है,

धन्धा कोई हो, चाहे उत्पाद कोई हो,

विकसित हैं जो राष्ट्र वे अपने मुरीद हैं।    

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।4।

उत्साह से लबरेज है, जनता गरीब है,

वो जाने अच्छी तरह उसका वहीद है,

खुद पे भरोसा हो अपनों का साथ हो,

वो देश बढ़ेगा जरूर ये तय नसीब है।  

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।5।

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