Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य
  • शिक्षा
  • दर्शन
  • वाह जिन्दगी !
  • शोध
  • काव्य
  • बाल संसार
  • About
    • About the Author
    • About Education Aacharya
  • Contact

शिक्षा
दर्शन
वाह जिन्दगी !
शोध
काव्य
बाल संसार
About
    About the Author
    About Education Aacharya
Contact
Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य
  • शिक्षा
  • दर्शन
  • वाह जिन्दगी !
  • शोध
  • काव्य
  • बाल संसार
  • About
    • About the Author
    • About Education Aacharya
  • Contact
काव्य

आधुनिकता की कमाई है ।

March 22, 2023 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

अरे ये क्या है ?

ये कैसी रुलाई है।

ये कैसी है मार

पकी फसलों ने खाई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।1।

प्रकृति की सहज तन्द्रा

मानव ने भगाई है।

छीना है जो प्रकृति का

विपदा उससे ही आई है। 

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।2।

जब भी चाहा विस्फोट किया

जब चाहा खाई बनाई है।

पृथ्वी के अन्तस्तल में

खलबली सी मचाई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।3।

बेहिसाब जल स्रोतों का

दोहन कर करी कमाई है।

असंख्य घाव करे छाती पर

पर दी न कोई दवाई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।4।

लगता है प्रकृति निधि पर

विपदा ये नई सी आई है।

बरसात से प्राप्त जलनिधि भी

ना वापस लौटाई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।5।

जल निधि में जहर की

अजब मात्रा बढ़ाई है।

कहते हो अम्लीय वर्षा

ये हमने ही कराई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।6।

मौसम में परिवर्तन की

भारी कीमत चुकाई है।

लगता है इन्ही वजहों से

बे मौसम बारिश आई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है।7।

ग्लोबल वार्मिंग ने

दी हमको यही दुहाई है।

जो बोओगे सो काटोगे

यह नीति सदा चल आई है।  

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।8।

पूर्व योजना की शक्ति

क्यूँ कर हमने गँवाई है।

जड़ प्राकृतिक विपदा की

क्यूँ समझ हमें न आई है।

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है ।9।

आवश्यक है आधुनिकता भी

पर लगाम क्यों गँवाई है।

कहीं कौमा, कहीं अल्प विराम

की रीति क्यों भुलाई है। 

लगता है यही सच है।

आधुनिकता की कमाई है।10।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

परीक्षा रूपी उत्सव को………………

July 24, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

खिलखिलाकर, मुस्कुराकर, हँस दिखाना चाहिए,

सारा परि आवरण ही, खुशग़वार बनाना चाहिए,

परीक्षा बोझ नहीं है, व्यवहार से दिखाना चाहिए,

धैर्य युक्त, दृढ़ लगन से व्यवहार निभाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।1।

पाठ्यक्रम को समयबद्ध सहज निपटाना चाहिए,

आज का कार्य, कल ऊपर नहीं टिकाना चाहिए,

समय कम है, पढ़ना अधिक न घबराना चाहिए,   

यथा सम्भव अधिगम कर विश्वास जगाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।2।

विगत वर्षों के प्रश्नपत्रों को पुनः दोहराना चाहिए,

रटना पर्याप्त नहीं अतः चिन्तन में लाना चाहिए,

गर सम्भव है तो अन्य को वह समझाना चाहिए,  

जो ज्ञाननिधि है पास, सब ही बाँट आना  चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।3।

स्वच्छ, निर्मल मन से परीक्षा कक्ष जाना चाहिए,

पावन आचरण, शुचिता से कर्म निभाना चाहिए,

कर्म को युग-धर्म बना व्यवहार में लाना चाहिए,

स्व आदर्श, स्थापन कर जग को दिखाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।4।

अस्तित्व रक्षा, ज्ञान इच्छा सामञ्जस्य बैठाना चाहिए,

अवसाद सी नकारात्मकता जड़ से मिटाना चाहिए,

महाराणा, लक्ष्मीबाई, शिवाजी मन में छाना चाहिए,

कण्टकाकीर्ण पथ से दिव्य ज्ञानमार्ग बनाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।5।

अभाव में प्रभाव का प्रत्यक्षीकरण कराना चाहिए,

पूर्ण मनोयोग व जीवट से तन-मन लगाना चाहिए,

स्मरण कर स्व ईष्ट का लक्ष्यहित लगजाना चाहिए,

आत्म विश्वास से परीक्षा में ‘नाथ’ पार पाना चाहिए।

परीक्षा रूपी उत्सव को महोत्सव बनाना चाहिए ।6।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

कृष्णा तेरी गीता लानी पड़ेगी ।

June 21, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जन जन की वाणी बनानी पड़ेगी

उपद्रवियों कीमत चुकानी पड़ेगी

योगधर्म बताने से कुछ भी न होगा

लौ योग की फिर जलानी पड़ेगी।

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।1।

उन्हें उनकी क्षमता बतानी पड़ेगी

स्वयं, शौर्य  क्षमता बढ़ानी पड़ेगी

मात्र सिद्धान्तों से कुछ भी न होगा

असल क्षमता अपनी दिखानी पड़ेगी।

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।2।

राष्ट्रद्रोही को गलती बतानी पड़ेगी

कीमत संसाधनों की चुकानी पड़ेगी,

प्रेमसद्भाव मार्ग से कुछ भी न होगा

माँ भवानी, बलि अब चढ़ानी पड़ेगी

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।3।

प्रेममुरली कलयुग में छिपानी पड़ेगी

शास्त्र संग शस्त्रभाषा सिखानी पड़ेगी,

प्रेम – पेंगें बढ़ाने से कुछ भी न होगा

निज क्षमता सुदर्शन बढ़ानी पड़ेगी

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।4।

जो बोलें कृष्ण गीता जलानी पड़ेगी

निश्चित उन्हें, मुँह की खानी पड़ेगी,

चेहरे बदलने  से कुछ भी न होगा

धुल भारत भूमि की चटानी पड़ेगी।

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।5।

सच सच है, सच्चाई बतानी  पड़ेगी

सूरत इतिहास की धीरे धीरे दिखेगी,

गलती, छिपाने से कुछ भी न होगा

राष्ट्रवादी भूमिका निभानी पड़ेगी।

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।6।

भारत को गरिमा वह पानी पड़ेगी

अमृत है पयनिधि, पिलानी पड़ेगी

बचने छिपने से अब कुछ न होगा

सार्थकता ‘नाथ’ गीता बतानी पड़ेगी। 

कृष्णा  तेरी गीता  लानी पड़ेगी

घर घर तक जाकर सुनानी पड़ेगी ।7।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

वन्दन हो जाता है ।

May 14, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


जब प्रारब्ध के फलने से

शिशु आगमन हो जाता है।

मात पिता के चिन्तन से

कर्मों का वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है  । 1 ।

केवल एक हाथ के चलने से

वह तो थप्पड़ हो जाता है।

क्रोध संचरण हो मन से

प्रेम विघटन हो जाता है ।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 2 ।

अँगुष्ठ अंगुलियाँ कसने से

मुष्टिका स्वरुप हो जाता है।

क्रोध धधकता नेत्रों से

प्रेम भाव भी खो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 3 ।

इन हाथों के टकराने से

ताली का चलन हो जाता है।

यह ताली बजती जब लय से

भावों का वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 4 ।

दाएं बांयें इन हाथों से

कुछ नाम पुकारे जाते हैं।

उनकी कर्त्तव्य निपुणता से

कहने का चलन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 5 ।

यह हस्त छुलें जब चरणों से

सुब कुछ पावन हो जाता है।

शक्ति मिलती उन चरणों से

आशीष वरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 6 ।

जब हाथ जुड़ उठें श्रद्धा से

दुआ का मन हो जाता है।

पावस विचार उठते मन से

पावन आचरण हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 7 ।

जब हाथ बढ़ें कुछ लम्बे से

तब आलिङ्गन हो जाता है।

जय माल युक्त इन हाथों से

वर वधु मिलन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 8 ।

इन हाथों के स्पर्शों से

मृदुता संचरण हो जाता है।

श्रद्धा और नमन के भावों से

बस अभिनन्दन हो जाता है।

दोनों हाथों के जुड़ने से

देखो वन्दन हो जाता है । 9 ।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

मातृ दिवस(Mother’s Day)

May 7, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

यह अद्भुत संयोग – सुखद है

माँ की ममता याद दिलाने का। 

हाँ उऋण नहीं हो सकता जन है

उस करुणा रस के बरसाने का।

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।1।

सम्मान सुनो एक मात्र शब्द है,

भावों को वसन पहनाने का।

यह प्रयत्न है सफल उतना ही,

जैसे सूर्य को दीप दिखाने का। 

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।2।

बचपन की स्मृतियाँ क्षीण हैं

कारण तेरे जग में आने का।

आज दीखता जो तन मन है ,

प्रमाण है तेरे कष्ट उठाने का।

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।3।

जो सर्वस्व हँसकर खो देती है,

सर्व त्याग माँ रूप ले लेती है।

खो निस्वार्थ नहीं कुछ लेने का

माँ कृत्यों से सिद्ध कर देती है।

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।4।

कष्ट उठा बच्चे को सुख दे देती है 

जीवन में  वो खुशियाँ  बरसा देती है

न चाह सम्मान निधि को पाने का

माँ भाव जड़ को चेतन कर देती है।

मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।5।

वह धरती के सर्वगुण ले लेती है

ममता,दया,क्षमा गुण धर लेती है।

नहीं चाहती बदले में कुछ लेने का

माँ नाम जीवन में सार्थक कर देती है         

            मातृ दिवस एक मात्र दिवस है

माँ का ऋण याद दिलाने का ।6।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

ऐ भारत में रहने वालो……….

May 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मेरी कलम आज देती है,

ऐ नव पीढ़ी यह सन्देश।

यदि आपस में बैर करोगे,

कैसे बढ़ पाएगा देश।  

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।1।

जंग कभी नहीं देती है,

मधुमय याद मंगल सन्देश।

खुद का कैसे अस्तित्व रखोगे,

आज पूछता तुमसे देश।     

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।2।

पूजा कभी नहीं देती है,

प्रतिष्ठानों का लूट आदेश।

दुश्मन को कैसे खोजोगे,

निष्क्रिय रह खोकर आवेश।       

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।3।

संस्कृति कभी नहीं देती है,                     

मिथ्या तुष्टिकरण सन्देश।

निज स्वार्थों को याद रखोगे,

नहीं बचेगा कुछ अवशेष।        

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।4।

धरती कभी नहीं देती है,

निज लहू बहाने का आदेश।

तुम जी कर भी क्या कर लोगे,

नहीं बचा यदि प्यारा देश।        

ऐ भारत में रहने वालो,

सजग रहो गढ़ो नवपरिवेश ।5।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं

April 18, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बूढ़े तोते को कुछ भी रटाते रहो,

ये फितरत है उसकी रटेगा नहीं ।

राजे दिल यूँ कितने छिपाते रहो

मेरा दावा है हमसे छिपेगा नहीं ।

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।1।

तुम पानी पर बरछी चलाते रहो,

वो रवानी है उसमें फटेगा नहीं।

तुम तो चेहरे पे चेहरे लगाते रहो,

जो सच है वो हमसे छिपेगा नहीं। 

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।2।

हम लिखते रहें तुम मिटाते रहो,

सच तो सच है फिर भी मिटेगा नहीं।

हम जलाते रहें तुम बुझाते रहो,

भोर का सूर्य है अब छिपेगा नहीं।   

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।3।

चाहे कितने भी काँटे बिछाते रहो,

काफिला प्यार का अब रुकेगा नहीं।

अमन की बस्तियाँ तुम जलाते रहो,

ज्वार संचेतना का रुकेगा नहीं ।    

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।4।

तुम दामन को दागी बनाते रहो,

यह सिलसिला अब टिकेगा नहीं।

तुम सदा घाव पर घाव लगाते रहे,

इम्तिहाँ हो गई अब सहेगा नहीं।  

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं ।5।

मधुर रिश्तों का राग ‘नाथ’ गाते रहे,

अब जाकर के समझे फबेगा नहीं।

मीठी बातों से उसे समझाते रहे

भूत लातों का है,वो समझेगा नहीं।      

तुम सदा वैर के गुल खिलाते रहे,

नया भारत है अब ये सहेगा नहीं।6। 

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

बोलो बम बम बम

February 24, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

बोलो बम बम बम

आओ दिन भर करें बस पावन करम,

धीरे – धीरे बढ़ाएं हम शान्ति कदम,

गाएं हम सब मिल शिव शक्ति भजन,

शिव का डमरू बजेगा डम डम डम।

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम ।1।

बेल पत्री, जल, धतूरे से हो आचमन,

शुद्ध रहता है तन शुद्ध रहता है मन,

धीरे धीरे शिवालय को बढ़ते कदम,

कभी तुम बोलो बम कभी बोलें  हम।

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम ।2।

कभी बजेगा मृदंग, कभी बजे सरगम,

हम शिव को भेजेंगे भूल सारे ही गम,

अब अलख जगेगी,  ना लगाएंगे दम,

जी हाँ जीवन से मिटेगा अब सारा तम।   

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।3।

ऊँ नमः शिवाय शुभशुभ ध्वनि गुञ्जन,

सब कर देगा, तन – मन – धन पावन,

करूणानिधि की, करुणा का चलन,

अब सिद्ध करेगा, अपने सारे जतन। 

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।4।

इस जग से मिटा दो प्रभु सब क्रन्दन

सब गाएं खुशी में, खूब होकर मगन

गंगा तट से करेंगे अब शिव दरशन

और ढोल बजेगा भइया ढम ढम ढम। 

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।5।

करें हम झांझ,  मजीरे संग सब नर्तन

विश्व नाथ,  के दर्शन को बढ़ते कदम

इस ‘नाथ’ को लगी है लौ, यह हर दम

बस शिव का मनन, शिव का चिन्तन  

हम चले हाँ चले करते शिव को नमन

बोलो बम बम बम,बोलो बम बम बम।6।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

बताएं अपने देश का……………….?

February 7, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

धर्म के नाम पर यह धन्धा अजीब है,

झगड़ा किसी का हो मरता गरीब है,

दंगा कोई भी हो, मुद्दा भी कोई हो,

अच्छाइयों हेतु मुकम्मल सलीब है।

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।1।

दुनियाँ को नापना है पुरानी जरीब है,

 ये याद है रखना, दुनियाँ रकीब है,

चंगा कोई भी हो मुर्दा भी कोई हो,

आज के इस दौर में पैसा हबीब है।

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।2।

जाति, मजहब, कौम का जो मुरीद है,

वह जानता नहीं कि सबका वहीद है,

मजहब कोई हो व वतन भी कोई हो,

गिरता जो शीश सीमा पे वो शहीद है।       

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।3।

कैसे कहूँ की देश मेरा अब गरीब है,

जेहन हैं इस में ऐसे, मंगल करीब है,

धन्धा कोई हो, चाहे उत्पाद कोई हो,

विकसित हैं जो राष्ट्र वे अपने मुरीद हैं।    

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।4।

उत्साह से लबरेज है, जनता गरीब है,

वो जाने अच्छी तरह उसका वहीद है,

खुद पे भरोसा हो अपनों का साथ हो,

वो देश बढ़ेगा जरूर ये तय नसीब है।  

बताएं अपने देश का क्या नसीब है ? ।5।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

हे ऋतुराज तुम्हारी प्यारी ……………………….

February 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

माँ शारदे श्रद्धा सहित पूजन सुमन चुन लाया हूँ।

बसन्त पञ्चमी विशिष्ट शुभ हो प्यार सारा लाया हूँ।

स्वागत है अकिञ्चन द्वारा समस्त आगत लाया हूँ।  

शिरोमणि ज्ञान की देवी सब ही पिपासा लाया हूँ।

हे ऋतुराज तुम्हारी प्यारी प्रकृति को पढ़ आया हूँ ।1।

हे बसन्त मैं शीतऋतु की विदा करा कर आया हूँ।

नई कोपलें झांकेंगी अब विश्वास जगाकर आया हूँ।

सरसों फूलेगी खुश होकर राज बताकर आया हूँ।

धरा पर शुभ ही शुभ होगा ये जतला कर आया हूँ। 

हे ऋतुराज तुम्हारी प्यारी प्रकृति को पढ़ आया हूँ ।2।

रंग बिरंगे फूल खिलेंगे वन माली से कह आया हूँ।

शीतल मन्द बयार चलेगी यह वादा कर आया हूँ।

आम्र वृक्ष को मञ्जरियों की आशा से भर आया हूँ।

फूलों के मादकता किस्से, भँवरों से कह आया हूँ।  

हे ऋतुराज तुम्हारी प्यारी प्रकृति को पढ़ आया हूँ ।3।

रँगीला मौसम आएगा उल्लास भरा दिल लाया हूँ।

मधुवन फिर से चहकेंगे ये प्रेम पगा स्वर लाया हूँ।

प्रकृति नव श्रृंगार करेगी, आस जगाकर आया हूँ।

नयनाभिराम छटा निखरेगी, टेसू से कह आया हूँ।   

हे ऋतुराज तुम्हारी प्यारी प्रकृति को पढ़ आया हूँ ।4।

धरती सारी धानी होगी ये स्वप्न सँजोकर लाया हूँ।

चेहरे दमकेंगे कृषकों के ये चाह जगाकर लाया हूँ।

दामन महकेगा पृथ्वी का साज सजा कर आया हूँ।

मस्ती का मौसम गाएगा गीत मैं लिखकर लाया हूँ।   

हे ऋतुराज तुम्हारी प्यारी प्रकृति को पढ़ आया हूँ।5।

मधुरस फिरसे बरसे जग में यही कामना लाया हूँ।

हे खग तुम सब खूब नाचना मोरों से कह आया हूँ।

मेघ तुम भी छिटपुट आना दृश्य अजब ले आया हूँ।

जिन्दादिली संग रहने वाले, ‘नाथ’ सभी ढंग लाया हूँ।      

हे ऋतुराज तुम्हारी प्यारी प्रकृति को पढ़ आया हूँ ।6।

Share:
Reading time: 1 min
Page 1 of 101234»10...Last »

Recent Posts

  • आधुनिकता की कमाई है ।
  • CONCEPT AND CHARACTERISTICS OF CULTURE
  • यह सब रस्ते के पत्थर हैं.
  • FUNCTIONS OF EDUCATION शिक्षा के कार्य
  • Globalization / वैश्वीकरण)

My Facebook Page

https://www.facebook.com/EducationAacharya-2120400304839186/

Archives

  • March 2023
  • January 2023
  • December 2022
  • November 2022
  • October 2022
  • September 2022
  • August 2022
  • July 2022
  • June 2022
  • May 2022
  • April 2022
  • March 2022
  • February 2022
  • January 2022
  • December 2021
  • November 2021
  • January 2021
  • November 2020
  • October 2020
  • September 2020
  • August 2020
  • July 2020
  • June 2020
  • May 2020
  • April 2020
  • March 2020
  • February 2020
  • January 2020
  • December 2019
  • November 2019
  • October 2019
  • September 2019
  • August 2019
  • July 2019
  • June 2019
  • May 2019
  • April 2019
  • March 2019
  • February 2019
  • January 2019
  • December 2018
  • November 2018
  • October 2018
  • September 2018
  • August 2018
  • July 2018

Categories

  • Uncategorized
  • काव्य
  • दर्शन
  • बाल संसार
  • वाह जिन्दगी !
  • शिक्षा
  • शोध

© 2017 copyright PREMIUMCODING // All rights reserved
Lavander was made with love by Premiumcoding