Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य
  • शिक्षा
  • दर्शन
  • वाह जिन्दगी !
  • शोध
  • काव्य
  • बाल संसार
  • About
    • About the Author
    • About Education Aacharya
  • Contact

शिक्षा
दर्शन
वाह जिन्दगी !
शोध
काव्य
बाल संसार
About
    About the Author
    About Education Aacharya
Contact
Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य
  • शिक्षा
  • दर्शन
  • वाह जिन्दगी !
  • शोध
  • काव्य
  • बाल संसार
  • About
    • About the Author
    • About Education Aacharya
  • Contact
काव्य

मैं व्यथा हूँ [M VYATHA HUN]

October 31, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

 

मैं व्यथा हूँ ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

जब जब मैं मन में कोई अन्तर्द्वन्द उलझाता हूँ,

अपने जन्म  हेतु अनुकूलतम  अवसर पाता हूँ,

मन का चैन , तन का सुकून सब  खा  लेता हूँ,

जिसके मन में पलता हूँ उसी को डस लेता हूँ।।

 

मैं व्यथा हूँ ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

घोर अवसर-वादी हूँ, मस्तिष्क जकड़  लेता हूँ,

प्रगतिपथ पर बढ़नेवालों के पग पकड़ लेता हूँ,

सारे  प्रगतिशील  विचार सिरे से कुचल देता हूँ,

ज्ञान को अज्ञान के झंझावातों मेंजकड़ लेता हूँ।।

 

मैं व्यथा हूँ ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

व्यसन -वासना स्वार्थ से फलता- फूलता हूँ  मैं,

सरल अधकचरा औ  अन्धविश्वासी ढूंढता हूँ मैं,

उसी के रक्त से स्वयं को जी भर  सींचता हूँ मैं,

कल्पना,प्रगति,विकास उड़ानें  रद्द करता हूँ मैं।।

 

मैं व्यथा हूँ ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

जब किसी चेतन के सितारे गर्दिश  में लाता हूँ,

साजिशन उसका  हम-दर्द करीबी हो जाता हूँ,

उस  मस्तिष्क पर निज मकड़जाल फैलाता हूँ,

पुरानी  गलत यादों  को  कुरेद कर  जगाता हूँ।।

 

मैं व्यथा हूँ,

यानि अन्तर्मन की कलह कथा हूँ।

कभी- कभी मैं अपने अन्त को निश्चित पाता हूँ,

आत्मविश्वासी सहृदयी को जकड़ नहीं पाता हूँ,

सकारात्मक सोच  से  मैं, स्वयं बिखर जाता हूँ,

सद्ज्ञान  के आलोक में, मैं ठहर नहीं पाता हूँ।।

Share:
Reading time: 1 min
वाह जिन्दगी !

बुढ़ापा दिमाग की खिड़की से आता  है।/Budhapa Dimag kee Khidki se aata h.

October 30, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मानव मन अद्भुत है और सर्वाधिक सशक्त हैं विचार। पहले हमारे मन में किसी भी वस्तु, क्रिया, सिद्धान्त को वरण करने का विचार आता है। तत्पश्चात, हमारी चेष्ठा उसे हमसे सम्बद्ध कर देती है यहाँ तक कि हमारे शरीर पर हमारी सोच का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। यदि हम सकारात्मक सोच के हामी हैं तो व्यक्तित्व पर उसका प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।

हम अलग लोगों को अलग अलग मिजाज का देखते हैं यह स्वभाव मानव मन की तरंग दिशा से ही निर्धारित होता है। कुछ लोगों को युवावस्था में बुढ़ापे का और कुछ वयो वृद्धों को युवावस्था का आनन्द लेते देखा जा सकता है।

हमें जीवन पर्यन्त क्रियाशील रहने के लिए और शैथिल्य या बुढ़ापे में युवाओं जैसी ऊर्जा बनाये रखने हेतु व मस्तिष्क की जाग्रत स्थिति बनाये रखने के लिए निम्न तथ्यों पर ध्यानाकर्षण करना होगा।

महत्वपूर्ण तथ्य (Important Facts ):-

(1)- मस्तिष्क के वातायन में सकारात्मक विचारों के झोंके आने दें।

(2)- मस्तिष्क को आदेश दें कि हमेशा सक्रिय स्थिति बनाए रखे और समझें यह सम्भव है।

(3)- हल्का व्यायाम की निरन्तरता हमारी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए।

(4)- प्रतिदिन प्राणायाम अवश्य किया जाना चाहिए ।

(5)- प्रत्येक दिन खुश रहते हुए टहलने का समय अवश्य निकालना चाहिए इसके चमत्कारिक परिणाम होंगे।

(6)- सुपाच्य भोजन ,फल आदि लेकर पेट ठीक रखा जाना चाहिए,देर रात्रि में भोजन करने से बचें। सम्भव हो तो सूर्यास्त से पूर्व भोजन करें।

(7)- जल की पर्याप्त मात्रा का सेवन करें।

(8)- स्वच्छ वस्त्र धारण करें एवं स्वच्छ वातावरण में रहना सुनिश्चित करें ,नमी वाले स्थल पर रहने की जगह उस स्थान को वरीयता दें जहाँ धूप सुलभ हो।

(9)- आध्यात्मिक चिन्तन को दिनचर्या का अनिवार्य अंग बनाएं।

(10)- ‘कम बोलें ,खुश रहें ,खुश रहने दें.’ के सिद्धान्त का अनुपालन सुनिश्चित करें।

(11)- अपने से कम उम्र के लोगों से मिलें उनके अच्छे विचारों का स्वागत करें।

(12)- पर्याप्त नींद लेना सुनिश्चित करें।

उक्त तथ्यों से जब आपके जीवन का सम्बन्ध बन जाएगा तब आप अवश्य कह उठेंगे -वाह जिन्दगी।

Share:
Reading time: 1 min
वाह जिन्दगी !

माँ लक्ष्मी वन्दन करेंगे।/MA LAXMI VANDAN KARENGE.

October 26, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जिन्दगी मैंने चाहा कि एक भोज रखूँ,

मौत को तेरे प्रयोग का निमन्त्रण दे दूँ,

सब कुछ संसार का तेरी नज़र कर दूँ,

बुराइयों की,सब्जी होगीआमंत्रण दे दूँ।

 

मौत  तय दिन औ समय तुझे आना है,

मेरी ही मैं को आकर मुझसे चुराना है,

सभी पार्षदों व गणों को, साथ लाना है,

स्वागत है यम, आकर के  दिखाना  है।

 

बलशाली भारी बम से स्वागत कराएँगे,

बच्चा चोरों को  पीस, कालीन  बनाएंगे,

गरमगोश्त के चहेतों की, पुंगी बजायेंगे,

कभी राग मल्हार तो कभी भैरवी गाएंगे।

 

दावत में मानव के दुर्गुण परोसे जाएंगे,

लोभ, मोह,पाखण्ड की चटनी बनाएंगे,

दानवता,क्रतघ्नता का रायता खिलाएंगे,

हत्यावृत्ति जातिभेद के मसाले मिलाएंगे

 

यानी  रौनके बज़्म में,बहुत कुछ होगा,

विविध शस्त्रों-अस्त्रों  का जखीरा होगा,

बर्बादी का लहू, खिदमते इनायत होगा,

ऐ मौत तेरी औकात का परीक्षण होगा।

 

तुझे सारी बुराइयों को  निगल जाना है,

निगलना है औ, अच्छी तरह पचाना है,

गमन पूर्व दुर्गुणों का, मुखवास लेना है,

रक्त की अन्तिम बूँद से टीका होना है।

 

मेरे यम ये भोज, कितना अच्छा  होगा,

यह संसार खुशियों का गुलदस्ता होगा,

भेदकारी विभाजक दीवारें ढह जाएंगी,

विश्व प्रेमराग समरसता का गुच्छा होगा।

 

तब हम सब सच्चा प्रकाश पर्व मनाएंगे,

भारत वाले  प्रेम से खील बताशे खाएंगे,

भारत ही नहीं सारी पृथ्वी चन्दन करेंगे,

शारदे कृपा से, माँ लक्ष्मी वन्दन करेंगे।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

मेक इन इण्डिया /[MAKE IN INDIA]

October 25, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मैं अन्दर से ठोस होता जा रहा था,यानि अपनी लोच खोता जा रहा था,

मैं मज़बूर था, हँस नहीं सकता था,भारत के वो मूल्य खोता जा रहा था।

 

मैं मरा था कोई मुझे गुनगुना रहा था, मै धरा था स्वगीत मैं सुन पा रहा था,

अधर मौन थे बोल नहीं सकता था ,स्पन्दनहीन मूल्य-तौल न सकता था।

 

उन मूल्यों से  पाश्चात्य गढ़ रहा था, मैं अपंग था वो तेजी से  चल रहा था,

मैं जड़,अपने झगड़ों  में खोया था,उसका विकास देख मन मन रोया था।

 

पीछे रह गया बहुत कुछ खोया था,मेरे अहम् ने  ही विष- बीज बोया था,

जाँत-पाँत, ऊँच-नीच गढ़ डाला था,समरस उपवन को मसल डाला था।

 

एजुकेशन आचार्य मुझे जगा रहा था,झिंझोड़ कर गौरव-गीत सुना रहा था,

पुरातन कर्म आधारित वर्ण-व्यवस्था वाले,  सिद्धान्तों को  समझा रहा था।

 

जोश का नया ओज मेरे मृततन में,मानो घुल- कर अविरल समा रहा था,

युवा-शक्ति की असीम ऊर्जा ले मै,उच्चता-शिखर पर चढ़ा  जा रहा था।

 

दृढ़ था मैं नव- विश्वास आ रहा था, प्रगति का नया सा  नशा छा रहा था,

श्वाशों में बवण्डर बढ़ा जा रहा था, नवीन ऊँचाइयों  में उड़ा जा रहा था।

 

कलुष  हटा, मीत पास आ रहा था,बहुत शोर था, भारत गढ़ा जा रहा था,

अतीत-गौरव फिर घर आ रहा था,’मेक-इन-इण्डिया’ उजाला ला रहा था।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

सब के लिए आनन्द [ सर्वे भवन्तु सुखिनः ]

October 24, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जिसमें हो सुकून वही राह ढूँढते हैं,

जो भी हो पसन्द वो खुशबू सूँघते हैं,

सम्बन्धों की खैर तो छोड़िए ज़नाब,

वो हमें औ हम उन्हें कहाँ पूछते हैं ?

Continue reading

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

दिवाली गीत  [DIWALI GEET ]

October 23, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

प्रकाश का पावन- पर्व आया है ,

रंगोली  से  आँगन,  सजाया  है,

नफरतों के जलने से हुई रोशनी

उस रोशनी में प्रेम से नहाया है।

 

तम का यौवनदर्प तोड़ मुस्काया है,

अमावस को पूनम सा चमकाया है,

अँधेरा कायम  रहने  की सोच पर,

नव-चिन्तन का बज्राघात आया  है।

 

रजकणों ने मिलके दिया बनाया है,

जीवन-बाती तेल  यहाँ की माया है,

सम्बन्धों  के  खेलों  ने  भरमाया है,

ऐसा  लगता नया-उजाला आया है।

 

क्या मन ने तम का किया सफाया है,

या तो मन पर अन्धकार का साया है,

कर लो पावन सुन्दर- मौका आया है,

भरलो प्रकाश अवसर ने कहवाया है।

 

साफ हुआ घर मनका नम्बरआया है,

पूर्व मलिनताओं की लगती छाया  है ,

तजो कट्टरता पावस अवसर आया है,

नव- दीवाली, नव -सन्देशा  लाया है।

 

त्यौहारों का गुच्छ बना कर लाया है,

लक्ष्मी स्वागत करो, ये कहलाया है,

मन पर पड़े कहीं से काली छाया है,

आशा दीप चेतन ज्योति लेआया है।

 

 

चेतनता  का महा-दीप है, ईश्वर ही,

हर चेतन ने प्रकाश वहीं से पाया है,

माया के भ्रम ने हमको भरमाया है,

निज से वार्तालाप  नहीं हो पाया है।

 

 

जज्बातों का नया सा रेला आया है ,

भारत के हर गाँव में मेला लाया है,

जागो भारत, मौसम भी  हर्षाया है,

नवजगमग ने अन्तर्मन हुलसाया है।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

इतिहास में अमर होगे। ( Itihas m  amar hoge )

October 20, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सिर्फ रैली निकालने से नहीं होगा,

किया है काम तो खुद ही बोलेगा ,

तुम समाज तोड़ने का खेल खेलोगे,

इकदिन सिर पकड़ कर रो लोगे।

 

सच्चाई परतों से बाहर आती  है ,

झूठ की  बदबू भी सूँघी जाती  है।

आवाम  सरलता में मारी जाती है,

पता है कि,गलती तुमने क्या की  है।

 

कब  तलक उसे  यूँ ही  भरमाओगे,

याद रखो कि किए की सजा पाओगे।

धन- दौलत जो  भी  तुम   बनाओगे,

यहाँ से कुछ नही साथ ले जा पाओगे।

 

कर्म -फल    ही   साथ   तेरे    जाएंगे,

आँसू  रख  लो  तुम्हारे  काम  आएंगे।

पछता,पछताकर जब तुम इधर देखोगे,

अपने  दुष्कृत्यों के काले मञ्जर  देखोगे।

 

करोगे याद और हर बात याद आएगी,

तुम्हारे दुष्कर्मों से कौम  भी शर्माएगी ,

काश ये अपने  वंश में  न  पैदा होता ,

या कि मर जाता जब ही ये पैदा होता।

 

इसलिए काम नेक करने का ठेका ले लो,

बुरे  कर्मों  से   बुराई  से  तौबा  कर  लो ,

अच्छे कर्मों की गर दौलत तुम कमा लोगे,

स्वर्णिम अक्षर में  इतिहास में अमर होगे।

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

मानव मुस्कुराएगा।[Manav Muskurayega]

October 19, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

आज का आदमी जो जीवन जीता है,

क्यों लगता है कि वो  खोखला सा है।

वो हँसी, वो ठिठोली आज गुम सी है,

आज जिन्दगी ठहरी हुई नदी सी है।

 

नदी ठहरती है तोअस्तित्व खो देती है,

विगत  को  स्मरण  कर  रो  देती  है।

फोटो से वो आनन्द  नहीं मिलता  है ,

नहाने का झरने में जब वो झरता  है।

 

वाद्य  यंत्रों  के शोर में खुशी ढूंढते हैं,

गीत जो हैं नहीं उनमें संगीत ढूंढते हैं।

पूँजी वाले  सम्बन्धों  में मीत  ढूंढते  हैं,

दिखावटी दुनियाँ, सच्ची प्रीत ढूंढते हैं,

 

कह कर नहीं  कर  के दिखाना  होगा,

नागरिकों को खुद को  सुधारना होगा।

तब  सच्चाई  का  वह  आयाम  आएगा,

उदासी हारेगी और मानव मुस्कुराएगा।

Share:
Reading time: 1 min
वाह जिन्दगी !

महत्त्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में पलता है।

October 18, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments
जिन्दगी अनवरत यात्रा है उत्साह युक्त क्रमिक प्रयास इसे ‘वाह जिन्दगी’ बनाते हैं जबकि थके हारे ,अवसाद ग्रस्त लोगों के लिए ‘आह जिन्दगी’ हो जाती है।

Continue reading

Share:
Reading time: 1 min
काव्य

सद्ज्ञान चाहता हूँ। [Sadgyaan Chaahta hun]

October 16, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

उलझन में घिर गया हूँ, निदान चाहता हूँ।

घनघोर समस्या का, समाधान चाहता हूँ।

गन्दगी रोके वो,       पायदान चाहता हूँ।

देश को समझे,    वो कद्रदान चाहता हूँ।

 

साफ़-सुथरा छोटा सा मकान चाहता  हूँ।

बच्चे पढ़ें सचमुच, वो  मुकाम चाहता हूँ।

आवश्यक मूल-भूत ही सामान चाहता हूँ।

सादा-जीवन,  उच्च – विचार  चाहता हूँ।

 

खूब     श्रम  करके,  थकान  चाहता  हूँ।

कभी- कभी  घर में  मेहमान  चाहता हूँ।

नेक- नीयत  लगन औ  ईमान चाहता हूँ।

इन्सानों  की सूरत में  इन्सान  चाहता हूँ।

 

माता -पिता  सबका,  सम्मान चाहता  हूँ।

ऊर्जा की सकारात्मक पहचान चाहता हूँ।

सशक्त हो, समृद्ध हो, तेजस्वी हो भारत,

भारत की विश्व-भर  में पहचान चाहता हूँ।

 

जिन्दादिली से जिन्दगी के काम चाहता हूँ।

भारत में  गुणवत्ता  का सम्मान  चाहता हूँ।

युवाभारत में युवाओं को मिले जो रोजगार

आराम है हराम, यह  गुणगान  चाहता  हूँ।

 

अधिकार नहीं कर्त्तव्य निर्वाहन चाहता हूँ।

अनुशासन का  देश में  शासन चाहता हूँ।

भारतीयता का देश में आवाहनचाहता हूँ।

रावण को नही चाहता सद्ज्ञान चाहता हूँ।

Share:
Reading time: 1 min
Page 1 of 212»

Recent Posts

  • आधुनिकता की कमाई है ।
  • CONCEPT AND CHARACTERISTICS OF CULTURE
  • यह सब रस्ते के पत्थर हैं.
  • FUNCTIONS OF EDUCATION शिक्षा के कार्य
  • Globalization / वैश्वीकरण)

My Facebook Page

https://www.facebook.com/EducationAacharya-2120400304839186/

Archives

  • March 2023
  • January 2023
  • December 2022
  • November 2022
  • October 2022
  • September 2022
  • August 2022
  • July 2022
  • June 2022
  • May 2022
  • April 2022
  • March 2022
  • February 2022
  • January 2022
  • December 2021
  • November 2021
  • January 2021
  • November 2020
  • October 2020
  • September 2020
  • August 2020
  • July 2020
  • June 2020
  • May 2020
  • April 2020
  • March 2020
  • February 2020
  • January 2020
  • December 2019
  • November 2019
  • October 2019
  • September 2019
  • August 2019
  • July 2019
  • June 2019
  • May 2019
  • April 2019
  • March 2019
  • February 2019
  • January 2019
  • December 2018
  • November 2018
  • October 2018
  • September 2018
  • August 2018
  • July 2018

Categories

  • Uncategorized
  • काव्य
  • दर्शन
  • बाल संसार
  • वाह जिन्दगी !
  • शिक्षा
  • शोध

© 2017 copyright PREMIUMCODING // All rights reserved
Lavander was made with love by Premiumcoding