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काव्य

नव वर्ष में नव- आशा का सञ्चार हो गया।[NAV VARSH M NAV AASHA KA SANCHAR HO GAYA.

December 31, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

लगता है मुकद्दर सिर ओढ़ कर सो गया,

तक़दीर की चाभी  गिर गयी, वो रो गया।

बारबार असफल हो मन उदास हो गया,

हारा जब  हिम्मत, घोर अवसाद हो गया।

 

जब मेरे जानिब सघन अन्धकार हो गया,

कौन अपना है, इसका अहसास हो गया,

जब मेरे हर सिम्त प्यारा उजाला हो गया,

किसने किया उजाला कोई माँ कह गया।

 

संघर्ष,लगन,हिम्मत द्वारा प्रकाश हो गया,

भाग्यफल, मुकद्दर से बड़ा, कर्म हो गया।

सफलता का अम्बार, सुखद अश्रु दे गया,

कुछ ऐसा हुआ गज़ब समस्त गम ले गया।

 

संघर्षों का ताना बाना इक रास्ता दे गया,

तू नहीं खुद के लिए यह इशारा कर गया।

जाते जाते कर्म क्षेत्र, वृहताकार कर गया,

अपने उन्नत सपनों को साकार कर गया।

 

जो एक बुलबुला था, वो हनुमान हो गया,

प्राकृतिक सशक्ति का, अनुमान हो गया।

ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का, परम ज्ञान हो गया,

मानो आत्मा परमात्मा, प्रतिमान हो गया।

 

क्या है असली जिन्दगी यह भान हो गया,

परमपिता से सम्बन्धों का संज्ञान हो गया।

सच्ची हवन समिधा की,पहिचान हो गया,

अध्यात्म की महत्ता का सद्ग्यान हो गया।

 

नव वर्ष में नव- आशा का सञ्चार हो गया,

आशाजनित विश्वास से अवसाद खो गया।

रात का होता प्रभात, आत्मबल कह गया,

आत्महीनता दुष्प्रभाव, जीवट से खो गया।

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वाह जिन्दगी !

लगता है उम्र का  दिसम्बर आ रहा है। LAGTA H UMR KA DECEMBER AA RAHA H.

December 29, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

देखो,देखो नवजात शिशु स्वप्न में मुस्कुरा रहा है,

लगता है सोते अबोध को कोई लोरी सुना रहा है,

कोई शिशु जन्म की खुशी मंगल- गीत गा रहा है,

परिवार को मिला नवीन वारिस समझ आ रहा है

 

जन्म की जनवरी है, नव मासूम खिलखिला रहा है,

पढ़ने को जिन्दगी का अध्याय विद्यालय जा रहा है,

सहपाठियों संग जीवन का राग,विकास पा रहा है।

जीवन  है खुशियों का खेल, यह समझ आ रहा है।

 

समय द्रुतगामी पंख लगा कर उड़ता ही जा रहा है,

अल्हड़ सा जीवनरस का आनन्द बढ़ता जा रहा है,

संगी साथी संग खेल बचपन का आनन्द आ रहा है,

जीवन तरंग का अद्भुत, कौतूहल नज़र आ रहा है

 

लड़कपन अब किशोरावस्था में बदलता जा रहा है

जीवन का नवीन राग मदमस्त नव फाग गा रहा है,

नशा मस्ती का, युवाओं के सिर पर चढ़ा जा रहा है,

नव यौवन संग चिर यौवन का भ्रम साथ आ रहा है।

 

आ गया गर्म मौसम तपिश से कुछ सिखला रहा है,

जीवन यथार्थता का व्यावहारिक दर्शन करा रहा है,

खिलौने छीनकर जिम्मेदारियों का पाठ पढ़ा रहा है,

बदला बदला सा जीवनसार का मन्जर नज़र रहा है।

 

जिन्दगी का व्यावहारिक  यथार्थ, समझ आ रहा है,

जिम्मेदारियों का अजबबोझ है बढ़ता ही जा रहा है,

प्रातः,दोपहर,शाम मध्य जीवन ढलता ही जा रहा है,

दायित्वबोध की अकुलाहट में मन उलझ जा रहा है।

 

जीवन की कैनवास पर, अनुभव का रंग आ रहा है,

अनुभव की प्राप्ति में समस्त जीवन खपा जा रहा है,

घरपरिवार की जिम्मेदारी में अध्यात्म खो जा रहा है,

समस्याओं के अन्धड़ में जीवनमूल्य उड़ा जा रहा है।

 

चेहरे पर झुर्रियाँ बालों में, सफेद सा रंग आ रहा है,

ना चाहते हुए भी दवाओं पर खर्च बढ़ता जा रहा है,

दाँतों की हुई विदाई चश्मे का नवनम्बर आ रहा है,

अब तो यह, लगता है उम्र का दिसम्बर आ रहा है।

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काव्य

मुक्ति का सच्चा उपाय अष्टांग मार्ग दे जाता है।[Mukti Ka Sachha Upay Ashtang Marg De Jata Hea.]

December 14, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

सुनो सुनो ये प्राण हमें सच्चे पथ पर ले जाता है,

तन, मन सौन्दर्य का उत्तम  परिचय दे जाता है,

मज्जा, रुधिर व हड्डी का तन उपक्रम से नाता है,

आसक्ति से तन जुड़ना मन में भ्रम ले आता है ।

मुक्ति का सच्चा उपाय अष्टांग मार्ग दे जाता है ।1।

 लाखों नसनाड़ियों से खिंचता तन का खाका है,

कंकाल तंत्र संग यह, साधन के रूप में आता है,

सदवैचारिक आलम्बन सर्वोत्तम पथ दे जाता है,

दुष्कर्म भाव पूर्णिमा को अमावस में ले जाता है।

मुक्ति का सच्चा उपाय अष्टांग मार्ग दे जाता है ।2।

ज्ञात नहीं नव पल कब क्या सन्देश दे जाता है,

ये पल विश्लेषण में सुख दुःख सब ले आता है,

दुःख सुख में समभाव रहो चेतनता में लाता है,

विषम  स्थिति सद्भाव, प्रगति चरण दे जाता है।

मुक्ति का सच्चा उपाय अष्टांग मार्ग दे जाता है ।3।

जीवन के काल खण्ड में, जड़ चेतन में  नाता है,

काल खण्ड पूर्ण करके, चेतन जड़ता दे जाता है,

जड़,चेतनता खेल आदि अन्त प्रभाव ले आता है,

मन, बुद्धि सीमावश तन माया प्रभाव में आता है।

मुक्ति का सच्चा उपाय अष्टांग मार्ग दे जाता है ।4।

माया भाव तम छंटना जाग्रत विवेक से आता है,

यम,नियम,आसन,प्राणायाम का बुद्ध से नाता है,

प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि सुपथ ले आता है,

इनपर उचित अमल करना सही मार्ग दे जाता है।

मुक्ति का सच्चा उपाय अष्टांग मार्ग दे जाता है ।5।           

 कार्मिक लेखा प्रभाव जीवन में रंग ले आता है,

मानवता से देवत्व पथ सारे विकार ले जाता है,

विकार विनष्टि क्रम मानस तम हर ले जाता है, 

अज्ञान नाथ यूँ मिट जाना मोक्ष मार्ग दे जाता है,

मुक्ति का सच्चा उपाय अष्टांग मार्ग दे जाता है ।6।

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काव्य

खूबसूरत रिश्ता बनाते हैं। (KHOOB SOORAT RISHTA BANAATE H.)

December 10, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जाने क्यों लोग वाणी की मर्यादा भूल जाते हैं।

जहाँ बोलना ना चाहिए वहीं पर बोल जाते हैं।

जिस मातापिता की गोद में खेलकर बड़े हुए।

मदान्ध हो के उनसे भीअपशब्द बोल जाते हैं।

 

कुछ नया गुर सीखने गुरुओं के पास जाते हैं।

बचपन के खेल संग बहुत कुछ सीख जाते हैं।

धीरे धीरे हम बच्चे, दुनियादारी सीख जाते हैं।

बुजुर्गों से छिपकर  कतरा के निकल जाते हैं।

 

केवल निज स्वार्थ के समीकरण याद आते हैं।

सत मूल्य सत्यम,शिवम,सुन्दरम भूल जाते हैं।

नवसम्बन्धों की धुनमें अपनों को भूल जाते हैं।

सम्बन्धों में छले जानेपर सुधबुध भूल जाते हैं।

 

कुछ अकल बढ़ने पर विद्यालय नहीं जाते हैं।

मारे,मारे फिरते हैं और सारा वक़्त बिताते हैं।

कुछ इनसेभी चारकदम आगे निकलजाते हैं।

कॉपी किताब वाले पैसों से गुलछर्रे उड़ाते हैं।

 

यह आदत बर्बादी के मुकाम तक लेजाती है।

व्यावहारिक कार्यों  में नाकामी हाथ आती है।

नकली यार,दोस्त,साथी सभी छिटक जाते हैं।

विगत कुकर्मों वश दिन में तारे नज़र आते हैं।

 

जो बालक किशोर वय में संभल नहीं पाते हैं।

मातापिता की नसीहतें जो समझ नहीं पाते हैं।

अकर्मण्यता की चक्की में पिसते चले जाते हैं।

जीवन की झंझावातों में, सदमार्ग नहीं पाते हैं।

 

नया दौर नवपीढ़ी को बहुत कुछ सिखाता है।

अहम् व वहम की, दलदल में फँसा जाता है।

द्वन्दों में उलझा, वक़्त गति से निकल जाता है।

अक्सर उठापटक में कुछ हाथ नहीं आता है।

 

भारत का इक वर्ग केवल, गाल ही बजाता है।

सी0एम0,पी0एम0को दिशाज्ञान टपकाता है।

जो असल जिन्दगी में  कुछ बन नहीं पाता है।

औकात सबकी देखता खुद की भूल जाता है।

 

खेल व खिलाड़ी कीआलोचना में लगे रहते हैं।

पसीना गिराया नहीं, विवेचना में लगे रहते हैं।

खुद के नयनों का कीचड़, तक निकलता नहीं,

सारी दुनियाँ की दिशा दिखाने में लगे रहते हैं।

 

इन सबसेअलग कुछ ऐेसेभी  बालक होते हैं।

देख कर तब्दीलियाँ कभी हैरान नहीं होते हैं।

विकराल स्थिति को हँस हँस के झेल जाते हैं।

बकबक नहीं करते कामकरके दिखाजाते हैं।

 

बालक पुरुषार्थवश परिस्थितियाँ जान जाते हैं।

तालमेल,यथाआवश्यक नीति पहचान जाते हैं।

गाल नहीं बजाते, सत्कर्म  आदर्श रख जाते हैं।

विषम स्थिति में सर्वोच्च,राष्ट्र नाम कर जाते हैं।

 

जुझारू बच्चे,अभाव में प्रभाव दिखा जाते हैं।

खुद प्रेरणा अवतार हो,कर के दिखा जाते हैं।

सूखी रोटी, गाँव, मिट्टी की ताकत दिखाते हैं।

समूची  दुनियाँ से, खूबसूरत रिश्ता बनाते हैं।

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काव्य

सच्चा लोकतन्त्र कब आएगा ?[SACHHA LOKTANTR KB AAYEGA]

December 8, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

हिन्दुस्तान की आवाम क्यों जाग नहीं पाती है,

यथोचित  स्वगरिमा को पहचान नहीं पाती है,

आत्म के उन्नयन का सत्पथ क्यों भूलजाती है,

अन्नदाता के हिस्से में, क्यों फाँसी ही आती है।

 

साक्ष्य साक्षी,देश सहिष्णुता की सजापाता है,

बाहर वाला अनजाना ससम्मान बस जाता है,

चन्द रोज रहकर अपनी शक्ति को बढ़ाता है,

अतिथि-देवो-भव नीति को,धूल में मिलाता है।

 

पार्टी कोई हो, शिक्षा से न्याय ना कर पाती है,

मुख्यतः शिक्षाविदों को,खूनी आँसू रुलाती हैं,

नेतृत्व शक्ति ही,शैक्षिक अवरोधक बनाती है,

सरकार कोई हो, इस दायित्व से कतराती है।

 

जनता की भीरुता ही कायर बना भटकाती है,

धर्म के ठेकेदारों का, वो खिलौना बनजाती है,

लोकपरलोक के झूठे,द्वन्दों में उलझ जाती है,

परेशान खस्ता जनता कुचक्र में फँस जाती है।

 

बरबादी प्रजा की,पटकथा लिख दी जाती है,

आपस के झगड़े में सारी प्रगति रुकजाती है,

सुविधा सम्पन्नों के, संभाषण में फँस जाती है,

खूनी पँजों में उलझ,सपरिवार छटपटाती है।

 

लोकतन्त्रीय अर्थीपर क्यों प्रजा सुलाई जाएगी ?

क्यों केवल आवाम ही, हवन के काम आएगी ?

कब सद्ज्ञान का सूर्य, परवान चढ़ाया जाएगा ?

अपने भारत में, सच्चा लोकतन्त्र कब आएगा ?

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काव्य

ऊर्ध्वगमन पथ राष्ट्र का आलोकित करना है।[Urdhvgaman Path Rashtr Ka Aalokit Karanaa Hea.] 

December 7, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

यदि मानव हो मानवता वाला काम करना है,

जीवन भर करना काम, ना विश्राम करना है,

जटिल स्थिति हों मन में, ना नैराश्य भरना है,

विषम परिस्थिति में खुदपर विश्वास करना है।

 

अवलम्बन को अखिलेश्वर का ध्यान करना है,

इक दूजे के सब कष्टों को मिल-जुल हरना है,

परिस्थिति कैसी भी हो, हम सबको लड़ना है,

हर रात का निश्चित  प्रभात विश्वास  करना है।

 

जीवन संघर्षों का रण, हर-पल याद रखना है,

प्रकृति प्रदत्त मस्तिष्क से सद्प्रयास करना है,

जीवन यापन नियत  सभी को काम करना है,

अथक परिश्रम लायक शरीर तैयार करना है।

 

ब्रह्म मुहूर्त में तज आलस प्राणायाम करना है,

सम्भव यदि हो सके उचित व्यायाम करना है,

जीवट का कर सद्प्रयोग   चेतनता  भरना है,

वन्दन कर स्व ईष्ट का निश्चित काम करना है।

 

यथोचित सुन्दरअवसर की पहचान करना है,

प्रतिस्पर्धा में निजक्षमता पर विश्वास करना है,

राष्ट्र वाद के सुपोषण हित उपयुक्त बनना है,

ना हो भारत अवमान जाग्रत प्रहरी बनना है।

 

बदलते समय अनुसार, कदम-ताल करना है,

निश्चित होंगे कामयाब सहज विश्वास भरना है,

प्रतिकूल परिस्थितियों  में ना हमको डरना है,

इकदूजे की बन प्रेरणा हमको जय करना है।

 

केवल कल्पना-लोक में ना विचरण करना है,

यथार्थ के धरातल पर दृढ़ अटलपग धरना है,

वेद और वैदिकता का सच्चाअर्थ समझना है,

उत्कृष्टता भारत की जगत में सिद्ध करना है।

 

गर इन्सां हो इन्सानियत का पोषण करना है,

इक दूजे  पर ना मिथ्या दोषारोपण करना है,

स्व राष्ट्र-ध्वज का शान से आरोहण करना है,

ऊर्ध्वगमन पथ राष्ट्र का आलोकित करना है।

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काव्य

उपयुक्त  रण नीति से हासिल मुकाम होता है।

December 1, 2018 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

मध्यमवर्ग की जिन्दगी पटरी से उतर जाती है,

जब भी उस परिवार में हारी- बीमारी आती है,

बालबच्चों को पढ़ाने में जिन्दगी गुजर जाती है,

वो तबभी पिसता है,जब करकी बारी आती है।

 

स्तर बनाने में सारी तनख्वाह ही खप जाती है,

बामुश्किल मेहनत प्रतिष्ठा रक्षण कर पाती  है,

त्यौहार में सब रहीसही कसर निकल जाती है,

कभी मन्दी, कभी बन्दी दूकान को हिलाती है।

 

शादी ब्याह का खर्चा कभी उस को डराता है,

बच्चे के लिए रिश्वत का, जुगाड़ न  हो पाता है,

रिश्तेदारियाँ संभालना, मुश्किल हुआ जाता है,

मंहगाई का  दुष्चक्र भी इस वर्ग को डराता है।

 

जिम्मेदारियों का वजन, आवा-गमन बढ़ाता है,

पैतृक कर्जों का बोझ, मुश्किल को  बढ़ाता है,

कहीं कहीं पारिवारिक  झगड़ा यह  कराता है,

इससे  कोर्ट- कचहरी पर  खर्चा  बढ़ जाता है।

 

अतिथिआगमन पर उत्साह नहीं दिख पाता है,

महीने का अन्तिम सप्ताह अँखियाँ दिखाता है,

पारस्परिक ईर्ष्या की गलत, भावना जगाता है,

फालतू का द्वन्द सबका, हित नहीं   कराता है।

 

प्रॉब्लम सॉल्विंग का अब अलग मजा आता है,

जीवट वाला व्यक्ति, समस्या से  भिड़ जाता है,

जीवन भर लड़तेलड़ते कर्म योगी बन जाता है,

कर्म  है सद रास्ता भली- भाँति समझ जाता है।

 

प्रमाद को हटाने से, सफल हर काम  होता है,

समस्या कोई  भी हो,निश्चित समाधान  होता है,

परम्परा अन्धानुकरण कारण नुकसान होता है,

उपयुक्त  रण नीति से हासिल मुकाम होता है।

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