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शिक्षा

EDUCATION IN VEDIC PERIOD

October 28, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


वैदिक काल में शिक्षा

वैदिक शिक्षा से आशय / Meaning of Vedic education

वैदिक शिक्षा से आशय उस शिक्षा से है जो मानव का सर्वाङ्गीण विकास कर सके और वह जीवन का परम लक्ष्य धर्म के मार्ग पर चलकर प्राप्त कर सके। इन अर्थों को समाहित करते हुए अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“Education was regarded as a source of illumination and power which transforms and ennobles our nature by the progressive and harmonious development of our physical mental, intellectual and spiritual powers and faculties.”

A.S.Altekar : Education in Ancient India, 1973.p.8

“शिक्षा को ज्ञान प्रकाश और शक्ति का ऐसा स्रोत माना जाता था जो हमारी शारीरिक, मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियों तथा क्षमताओं का उत्तरोत्तर और सामंजस्य्पूर्ण विकास करके हमारे स्वभाव को परिवर्तित और उत्कृष्ट बनाती है।”

यह शिक्षा मूलतः वेदों पर आधारित थी और आध्यात्मिक अलख जगाने वाली अर्थात अन्तर्ज्योति के जागरण व आध्यात्मिक पथ को आलोकित  वाली थी। वेद में शिक्षा का प्रयोग विद्या, बोध, ज्ञान, विनय आदि के लिए किया गया है। इसी लिए कहा था कि

  -“ज्ञानं मनुजस्य तृतीय नेत्रं ”

लेकिन सायण महोदय ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में पृष्ठ 49 पर लिखा है –

“जो स्वर, वर्ण, मात्रा, आदि के उच्चारण  – प्रकार का उपदेश दे, शिक्षा दे वही शिक्षा है।”

वैदिक कालीन शिक्षा के उद्देश्य / Objectives of Vedic period education

वैदिक कालीन शिक्षा में मानव मूल्य उसे इह लौकिक और पार लौकिक ज्ञान प्राप्ति का निर्देश देते थे पर पारलौकिक अर्थात परा विद्या को अधिक महत्तव प्रदान किया जाता था।

1 – नैतिक उन्नयन / moral elevation

2 – चारित्रिक विकास / Character development

3 – आध्यात्मिक मानसिक उत्थान / Spiritual upliftment

4 – व्यक्तित्व का विकास / Personality development

5 – राष्ट्रीय संस्कृति संरक्षण व प्रसार / National Culture Preservation and Dissemination

6 – मोक्ष की प्राप्ति / Attainment of salvation

उक्त विविध तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“Infusion of a spirit of pity and religiousness, formation of character, development of personality, inculcation of civic and social duties promotion of social efficiency and preservation and spread of national culture may be described as the chief aims and ideals of ancient Indian Education.”

“प्राचीन भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों व आदर्शों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है -ईश्वर भक्ति की भावना का एवम धार्मिकता का समावेश, चरित्र का निर्माण, व्यक्तित्व का विकास,सामाजिक कर्त्तव्यों को समझाना, सामाजिक कुशलता की उन्नति व संस्कृति का संरक्षण तथा प्रसार ।”

शिक्षा व्यवस्था /  Organization of education –

वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था को समझने हेतु इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है –

1 – विद्यारम्भ संस्कार / Vidyarambha Sanskar

2 – उपनयन संस्कार / Upanayana ceremony

3 – पाठ्यक्रम / Syllabus

4 – शिक्षण विधि / Teaching Method

5 – शिक्षण अवधि / Teaching period

6 – संस्थान का अध्ययन समय / Institute study time

7 – अवकाश व शिक्षणसत्र / Vacation and academic session

8 – शिक्षण शुल्क व आर्थिक व्यवस्था / Tuition fee and financial system

9 – परीक्षा तथा उपाधियाँ / Exams and degrees

10 – समावर्तन संस्कार / Samavartan Sanskaar

विविध शिक्षाएं / Miscellaneous teachings –

सैन्य शिक्षा

व्यावसायिक शिक्षा

पुरोहितीय शिक्षा

महिला शिक्षा

कला कौशल की शिक्षा

आयुर्वेद की शिक्षा

पशु चिकित्सा

शिक्षण संस्थाओं के विविध रूप / Various forms of educational institutions –

1 – गुरुकुल

2 – ऋषि आश्रम

3 – चरण

4 – परिषद्

5 – सम्मेलन

6 – परिब्राजक उपदेश

प्रमुख शिक्षा केन्द्र /  Major Educational Center –

वैदिक कालीन शिक्षा के केन्द्र सम्पूर्ण भारत में फैले थे दक्षिण भारत में माल खण्ड, तन्जौर, कल्याणी, उत्तर भारत में मिथिला, कन्नौज, धार, तक्षशिला प्रमुख शिक्षा केंद्र थे। कर्नाटक, काञ्ची, काशी, और नासिक में भी शिक्षण कार्य होता था।

वैदिक कालीन शिक्षा का मूल्याङ्कन / Evaluation of Vedic period education –

वैदिक कालीन शिक्षा के मूल्याङ्कन हेतु इसके गुण दोषों पर दृष्टिपात करना आवश्यक होगा इसलिए पहले जानते हैं इसके गुण

वैदिक कालीन शिक्षा के गुण / Virtues of Vedic Period Education –

1 – नागरिकता के उच्च गुणों का समावेशन। Inclusion of high qualities of citizenship

इस सम्बन्ध में अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“The success of educational system in infusing a sense of civic responsibility was also remarkable.”

“नागरिक उत्तरदायित्व की भावना अनुप्राणित करने में शिक्षा प्रणाली की सफलता भी अनूठी थी।”

2 – आध्यात्मिकता को प्रश्रय / support spirituality

3 – चारित्रिक सुगठन / Character formation

इस सम्बन्ध में अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“There is no exaggeration and that the educational system of the country had succeeded remarkably in its ideas of raising the national character to a high level.”

“इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि देश की शिक्षा प्रणाली उच्च स्तर के राष्ट्रीय चरित्र के उत्थान के अपने आदर्श में सफल रही थी।”

4 – व्यक्तित्व का विकास / Personality development

5 – गुरु शिष्य सम्बन्ध / Teacher-disciple relationship

6 – विशेषज्ञ तैयार करने में सफल / Successful in producing experts

अल्तेकर महोदय कहते हैं –

“The educational system did not aim to act imparting a general knowledge of a number of subjects; its ideal was to train experts in different branches.”

“अनेक विषयों का सामान्य ज्ञान देने के कार्य का लक्ष्य इस शिक्षा प्रणाली का नहीं था। इसका आदर्श विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञ तैयार करना था।”

7 – साहित्य व संस्कृति के संरक्षण व प्रसार में सफल / Successful in the preservation and dissemination of literature and culture –

अल्तेकर महोदय का कहना है –

“The ancient Indian system of education has been eminently successful in its aim of the preservation of ancient literary and cultural heritage.”

“प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली प्राचीन साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के अपने उद्देश्य में विशेष सफल रही।”

वैदिक कालीन शिक्षा की सीमाएं / Limitations of Vedic Period Education –

निम्न सीमाएं वैदिक कालीन शिक्षा में दृष्टिगत होती हैं –

1 – धर्म पर अधिक बल / More emphasis on religion

2 – लौकिक विज्ञानों की उपेक्षा। Neglect of cosmic sciences

अल्तेकर महोदय ने कहा –

“Secular sciences like history, economics, politics, mathematics, and astronomy did not receive as much attention as theology, philosophy, ritualism, and sacred law.”

“लौकिक विज्ञानों जैसे इतिहास, अर्थ शास्त्र,राजनीति, गणित और ज्योतिष इतना ध्यान नहीं पा सके थे जितना धर्म शास्त्र, दर्शन, कर्मकाण्ड वाद, और पवित्र कानून। ”

3 – साधारण जनता की प्रगति में असमर्थ / Incapable of progress of the general public

4 – लोक भाषाओँ के प्रति उदासीन / Indifferent to folk languages

अल्तेकर महोदय ने कहा –

“Hindu educational system was unable to promote the education of the masses, probably because of its concentration on sanskrit and the neglect of vernaculars.”

“सम्भवतः हिन्दू शिक्षा प्रणाली जनसाधारण की शिक्षा की उन्नति करने में असमर्थ रही क्योंकि इसका लोक भाषाओँ की उपेक्षा और संस्कृत भाषा पर ध्यान केन्द्रित था।”

5 – नारी शिक्षा की अवहेलना / Disregard for women’s education 

6 – शूद्र शिक्षा की उपेक्षा / neglect of shudra education

एफ ई केई महोदय कहते हैं –

“The Brahmnik educational system become stereotyped and formal and unable to the needs of a progressive civilization.”

“ब्राह्मणीय शिक्षा प्रणाली रूढ़िगत एवं औपचारिक हो गई थी और प्रगतिशील सभ्यता की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में असमर्थ थी।”

उक्त विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया जा सकता है कि तत्कालीन परिस्थितियों के दृष्टिकोण से वैदिक कालीन शिक्षा सर्वोत्तम शिक्षा व्यवस्था थी इसने शिक्षा के क्षेत्र में महान विदुषी महिलाओं व महान विचारकों व शोध पिपासुओं को जन्म दिया तथा उस ज्ञान ज्योति को और अधिक जाज्वल्यमान करने में योगदान दिया इसीलिये एफ ई केई महोदय को लिखना पड़ा कि –

“Not only did the brahman educators develop a system of education which survived the crumbling of empires and changes of society but they also, through all those thousands years, kept aglow the torch of higher learning.” 

“ब्राह्मण शिक्षकों ने एक शिक्षा प्रणाली को केवल विकसित ही नहीं किया जो साम्राज्यों के पतन समाज के परिवर्तनों में जीवित रही वरन उन्होंने हजारों वर्षों तक उच्च शिक्षा की ज्योति को प्रज्ज्वलित रखा।”

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शिक्षा

गम्भीरता (Seriousness)

October 16, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

जब गम्भीरता पर विचार करते हैं तब कई शब्द मानस से टकराते हैं जिन्हे इसके आशय के आसपास स्वीकारा जाता है। जैसे अचञ्चलता, गम्भीर होने का भाव, गहनता, गाम्भीर्य, उदात्तता, गहराई, चिन्तनशीलता, सोच विचार का भाव, सन्जीदगी, स्थिरचित्त, स्थिर मनस्कता, उद्वेगहीनता, शान्त चित्तता, अचपलता आदि आंग्ल भाषा के भी कुछ शब्द जेहन में आते हैं जैसे Grimness, Sobriety, Solemnity, Seriousness आदि।

लेकिन सारे शब्दों पर उदारता पूर्ण विचार करने और वाक्यों में प्रयोग करने पर यह स्पष्ट भान होता है कि कोई शब्द दूसरे का वास्तविक पर्याय नहीं हो सकता।

गम्भीरता से आशय (Seriously intended)

      आज गम्भीरता  स्वविवेक बुद्धि  के अनुसार विविध तरीके से व्याख्यायित किया जाता है एक व्यक्ति अपने जीवन काल के अलग अलग खण्डों में इसका अलग अलग अर्थ व्याख्यायित करता है।

    यहां मेरे द्वारा भी अपने बुद्धि विवेक द्वारा इसे जैसा समझा है देने का प्रयास है आपका मत भिन्न हो सकता है उसे आप कमेण्ट में देकर दिशाबोध करा सकते हैं। हम मानते हैं कि ज्ञान अनन्तिम होता है।

साधारणतः कम बोलने वाला, शान्त चित्त, उच्च विवेक स्थिति के कारण सुख दुःख में समभाव रखने वाला अन्तर्मुखी व्यक्ति गम्भीर की श्रेणी में आता है और यही गुण गम्भीरता कहलाता है।

यह स्थिर प्रज्ञता के अधिक निकट है गम्भीरता में हमारा समर्पण श्रेष्ठ ज्ञान के प्रति है श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 54 वें  श्लोक में अर्जुन का प्रश्न और  55  वें में केशव के समाधान से हम अर्थ के नज़दीक पहुँचते हैं। अर्जुन कहते हैं –

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |

स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥54॥

हे  केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?

भगवन कहते हैं –

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |

आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 55||

हे अर्जुन, जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही सन्तुष्ट रहता है उस काल में वह स्थिरप्रज्ञ कहा जाता है।

व्यक्ति स्व स्वरुप में स्थिर रहकर स्वाभाविक गाम्भीर्य प्राप्त करता है। अष्टावक्र गीता के ग्यारहवें प्रकरण में अष्टावक्र जी कहते हैं –

यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बन्धनं तदा।

मत्वेति हेलया किञ्चित् मा गृहाण विमु़ञ्च मा ।।8.4।

जब तुच्छ पदार्थों से संयुक्त अहंकार नहीं रहता, तभी मुक्ति होती है और बन्धन तब होता है जब तुच्छ अहंकार मन में विकास करे ऐसा मानकर अपनी इच्छा से न कुछ ग्रहण करो और न ही कुछ छोड़ो।

अतः यह स्पष्ट भान होता है कि गम्भीरता श्रेष्ठ ज्ञान लब्धि के बाद का स्वाभाविक स्वभाव है यह कहाँ, कब, किससे कितना विनिमय व क्या यथोचित  करना है का संज्ञान कराता है। चिन्तनशीलता को समाधान तक पहुँचाता है।

गम्भीरता क्या नहीं है ? (What is not seriousness?)

वर्तमान में कठिन प्रतिस्पर्धा व अस्तित्व रक्षा प्रबल आवश्यक कर्मक्षेत्र बनकर उभरे हैं और इस क्रम में मूल्य ह्रास के भी नए प्रतिमान गढ़े गए हैं और गम्भीरता के सम्बन्ध में कुछ मिथ्या धारणाएं बनी हैं। असल में निम्न परिक्षेत्र गम्भीरता नहीं स्वीकारे जाएंगे।

1 – अज्ञान के कारण शान्त स्थिति गम्भीरता नहीं है।

2 – समस्या से भागकर निष्क्रिय होना गम्भीरता नहीं है।

3 – रूढ़ता गम्भीरता नहीं है।

4 – मौन को प्रत्येक प्रश्न का समाधान मानना गम्भीरता नहीं है।

5 – प्रभावी क्रोध व दुराग्रह गम्भीरता नहीं है।

6 – समभाव से विरक्ति गम्भीरता नहीं है।

7 – स्वाभाविक उथलापन गम्भीरता नहीं है।

8 – प्रदर्शनकारी चिन्तनशीलता गम्भीरता नहीं है।

वस्तुतः बहुत सी भ्रान्तियाँ दिग्भ्रमित कर हमें गम्भीरता का वाह्य मुखौटा दिखाती हैं। हमें सजगता से सार्थक गाम्भीर्य का अवलोकन करना होगा।

 गम्भीरता के आधारभूत तत्व (fundamentals of seriousness) –

स्वभाव में गम्भीरता स्वतः आ जाती है किसी के कहने से नहीं स्व में डूबने से, मैं केवल शरीर नहीं के भाव से और हमारे चिन्तन की तीव्रता हमें कब गम्भीर कर देती है पता भी नहीं चलता। हमसे पहले अन्य को इसका अहसास पहले होता है। कुछ कारक भी इसके लिए उत्तरदाई हैं यथा –

1 – यथार्थ स्थिति परिस्थिति

2 – क्षमता आधारित

3 – अद्यतन अर्जित ज्ञान से प्रभावित

4 – विवेक व विश्लेषण शक्ति आधारित

5 – अनुभव आश्रित

गम्भीरता के लाभ (Benefits of seriousness) –

व्यवहार के गम्भीर होने पर स्वतः कुछ लाभ होने लगते हैं यथा

1 – ऊर्जा का समुचित प्रयोग

2 – भटकाव पर नियन्त्रण

3 – दिशाबोध जागृति में अहम्

4 – अनुभूति जागरण

5 – सम्यक ज्ञान प्राप्ति में सहयोगी

यहाँ यह कहना सामयिक होगा की हमारे पास गाम्म्भीर्य युक्त पूर्वजों की एक लम्बी श्रृंखला है विदेह जनक, याज्ञवल्क्य, प्रसिद्द विद्वान् की विदुषी धर्मपत्नी भारती, विद्योत्तमा, प्रभु श्री राम, युधिष्ठर, केशव, कर्ण, महर्षि पाणिनि और वर्तमान उद्यमी,वैज्ञानिक, चिन्तक आदि।

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शिक्षा

Personality Development

October 11, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

व्यक्तित्व विकास 

व्यक्तित्व विकास में मानव का सम्पूर्ण परिकलन छिपा है यह एक दिन में नहीं गढ़ा जा सकता। मानव व्यक्तित्व परिमार्जन उसकी निरन्तर विकास यात्रा का परिणाम है। स्वभाव की चन्द विमाएँ न तो इसका प्रतिनिधित्व कर सकती हैं न स्वयं का आकलन सर्वश्रेष्ठ निर्णय हो सकता है । दुनिया दीर्घकाल में आपको बार बार परख कर आपके व्यक्तित्व पर दृढ विश्वास जमाती है। व्यक्तित्व को दिशा देने वाली पिताश्री के मुख से सुनीं चन्द पंक्तियाँ जेहन में आ रही हैं, जो याद आता है आपकी झोली में रखता हूँ –

 आदमी वह है जो मुसीबत में परेशान न हो

कोई मुश्किल नहीं ऐसी है जो आसान न हो

यह है दुनियाँ यहाँ दिन ढलते ही शाम आती है

सुबह हर रोज लेकर नया पैगाम आती है

यह हमेशा से है इस दौर औ दुनियाँ का चलन

चाँद सूरज को भी लग जाता है इक रोज ग्रहण

जानी बूझी हुई बातों से अनजान न हो

आदमी वह है जो मुसीबत में परेशान न हो .

आज जो कहने जा रहा हूँ, वह बहुत सामान्य है और आपको लगेगा कि आपको पता था यह थोड़ा सा परिवर्तन जीवन का परिवर्तक बिन्दु भी हो सकता है हम सँवर सकते हैं बात किताबी नहीं है बल्कि अनुभव के खजाने के कुछ विचार हैं मुझे लगता है ये व्यक्तित्व को सही आयाम देने में अवश्य सक्षम होंगे .

व्यक्तित्व विकास के आठ उपाय  / Eight tips of personality development –

1 – स्वयम् से प्यार / Love yourself

2 – परिधान /Apparel

3 – सद् सङ्गति / Good fellowship

4 – धैर्य व जोश का समागम / Patience and passion

5 – अद्यतन जानकारी / updated information

6 – सम्प्रेषण कौशल / communication skills

7 – मुस्कराहट का सम्यक प्रयोग / use of smile

8 – व्यापक दृष्टिकोण अभ्युदय / Comprehensive outlook

1 – स्वयम् से प्यार / Love yourself –

सृष्टि ने मानव शरीर के रूप में अद्भुत देन हमें दी है साथ दिया है विचार विश्लेषण में सक्षम मानस। हम विचार सकते हैं कि यह शरीर वह आलम्ब है जो जीवन पर्यन्त कर्म करेगा। अतः इसको व्यवस्थित रखना हमारा परम दायित्व है प्राणायाम, व्यायाम, योगासन, मालिश आदि के द्वारा इसे दीर्घ काल तक सक्षम, सुडौल, सुन्दर, आकर्षक रखा जा सकता है तो फिर क्यों न हम इश्वर प्रदत्त का सर्वोत्तम उपयोग उक्त रूप में करें। स्वयम् से प्यार के प्रतिफल में  चुस्ती, फुर्ती, सक्षमता, के रूप में आकर्षक व्यक्तित्व आपको प्राप्त होगा।

2 – परिधान /Apparel –

अपनी विकास यात्रा के प्रारम्भिक काल में परिधान की आवश्यकता व शक्ति को हमने पहचान लिया था इसीलिये पेड़ की पत्तियाँ, छालें, विभिन्न पशु चर्म के उपयोग से आगे बढ़कर आज के आकर्षक परिधानों तक की यात्रा हमने पूर्ण की है। आज विभिन्न आकार, प्रकार, का आकर्षक रंगों में परिधान उपलब्ध हैं। हमें अपनी कद, काठी, मर्यादा, क्षमता, समय  ध्यान में रखकर अपने अनुरूप चरण से शीर्ष तक परिधान चयनित करने चाहिए। सही चयन आपके व्यक्तित्व को और आकर्षक बना देगा।

3 – सद् सङ्गति / Good fellowship –

यह बहुत बड़े आयाम को अपने अन्दर समेटे है और इसीलिये यह हमें अंदर  बाहर दोनों परिक्षेत्रों में सुदर्शनीय स्थिति में लाती है यह सङ्गति अच्छे आवश्यक साहित्य, अच्छे विचार, सार्थक व्यक्तित्वों, दिशा बोधक वर्तमान व पुरातन प्रेरक प्रसंगों की भी हो सकती है। हमारे यहां के चित्र उपस्थिति सामग्री सभी हमारे व्यक्तित्व पर प्रभाव डालते हैं इसलिए बहुत सावधानी पूर्वक जिन्दगी बितानी चाहिए। याद रखें सद् सङ्गति प्रवृत्तियों को संयमित रखती है और हमारे आचरण व चरित्र का उच्चीकरण करती है और इसी पुनीत भाव से जुडी कुछ पंक्तियाँ आभार सहित प्रस्तुत करता हूँ किसी विशिष्ट व्यक्तित्व की –

श्वाँस खींचने से पूर्व ठीक से विचार लो, कि;

श्वाँस धारने की कौन नीति होनी चाहिए,

मान या गुमान, अभिमान का विधान हो या;

कर्म में मनुष्यता प्रतीत होनी चाहिए,

काँच के खिलौने  सी छुई मुई जिन्दगानी,

बड़ी सावधानी से व्यतीत होनी चाहिए,

और;भूल करना तो स्वभाव है मनुष्य का

पर मूल में तो भावना पुनीत होनी चाहिए।

उक्त सब कुछ सम्भव होगा यदि हम सद् सङ्गति में होंगे।

4 – धैर्य व जोश का समागम / Patience and passion –

याद रखें हमारे दो प्रमुख शत्रु आलस्य और अधैर्य हमें चतुरता पूर्वक गिरफ्त में ले लेते हैं और अच्छा खासा व्यक्तित्व बेचारे की श्रेणी में जा कर खड़ा हो जाता है। होश के साथ जोश हो तो सोने पर सुहागा है। वरना यही कहोगे की वो तो अभागा है। असल में धैर्य वह आलम्ब है जो हमको यथोचित व्यवहार सिखाता है और हम सफलता की सीढ़ियां अपने सही निर्णय के आधार पर चढ़ते जाते हैं। याद रखें धैर्य व जोश का समागम  वह कार्य करा जाता है जिसका अनुकरण करने को दुनिया विवेश होती है।आभार सहित लेता हूँ  पँक्तियाँ जिनमें क्या खूब कहा गया है। –

है वही सूरमा इस जग में जो अपनी राह बताता है,

कोई चलता पद-चिन्हों पर, कोई पद-चिन्ह बनाता है।

मुझे लगता है की यदि  व्यक्तित्व गढ़ना है तो पद चिन्ह बनाने की अपनी सक्षमता सिद्ध करनी ही होगी।

5 – अद्यतन जानकारी / updated information-

समय के साथ चलते हुए यदि उससे आगे निकलना है तो अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी पड़ेगी। इसलिए यह परम आवश्यक है की हम अपनी जानकारी के स्तर को अद्यतन रखें। प्रत्येक समस्या  समाधान में हमारा प्रयास समाधान की ओर ले जाने वाला होना चाहिए उलझाने और लटकाने वाला नहीं। विचार विनिमय, प्रभावशाली विश्लेषण तभी सम्भव होगा जब उसकी अद्यतन जानकारी हमारे पास होगी और तभी हम अपनी या अपने व्यक्तित्व की कोइ छाप छोड़ सकेंगे। त्वरित समस्या को यदि त्वरित समाधान मिल जाए तो समस्या विकराल होने से बच जाती है और यह त्वरित संज्ञान और निदान क्षमता पर निर्भर करती है। अतः अद्यतन जानकारी परम आवश्यक है।

6 – सम्प्रेषण कौशल / Communication skills –

    यहाँ  यह समझना नितान्त आवश्यक है कि सम्प्रेषण बोलकर और लिख कर दोनों तरीके से किया जाता है और यह प्रभावी तब होता है जब यह उस भाषा में हो, जिस तक पहुँचाना है। जिस तरह संस्कृत निष्ठ बाल्मीकि रामायण का जब बाबा तुलसी ने सरल भाषा में प्रस्तुतीकरण किया तो यह सहज सम्प्रेषणीय बन गयी।

जब बुद्ध जी से पुछा गया की ज्ञान किस भाषा में सम्प्रेषित हो तब उनका जवाब था जिस भाषा में समझ में आये।

    सम्प्रेषण की कला जादू सा प्रभाव रखती है और इसमें निपुण जादुई व्यक्तित्व वाला स्वीकार किया जाता है। इन शब्दों और कहने के अन्दाज से बहुत बड़ी जान संख्या को प्रभावित किया जा सकता है। शास्त्री जी, इन्दिरा जी, विनोबाजी, विवेका नन्द जी और वर्तमान में मोदीजी इसी श्रेणी में हैं। एक ही कथा अलग अलग श्री  अलग अलग प्रभाव छोड़ती है। इसीलिये कहा जाता है सफल वक्ता सफल व्यक्तित्व। मेरा कहना हे कि –

प्रेम और सद्भाव का झरना, तब झर-झर बहता जाता,

यदि तथ्य निरूपण में हमको सम्प्रेषण कौशल आता।

7 – मुस्कुराहट का सम्यक प्रयोग / Use of smile –

     मुस्कराहट कई प्रश्नों का जवाब है, इससे कई चिन्ताओं को हवा में उड़ाने की ताक़त मिलती है यदि आपके पास बच्चों सी निस्वार्थ मुस्कान है तो समझिए आप सौभाग्यशाली हैं। मुस्कराहट इसलिए नहीं होती कि जिंदगी में खुशियाँ बहुत हैं बल्कि यह इसलिए होती है कि जिन्दगी में हार न मानने का जज्बा अधिक है। किसी ने क्या खूब कहा है कि –

बाँटो मुस्कुराहट इतनी कि

किसी आँख में पानी न हो।

जियो जिन्दगी जिन्दादिली से

जीत कभी बेमानी न हो।

विषम स्थिति में आपकी मुस्कुराहट आपके बहुत से गुणों की अभिव्यक्ति करती हैं याद रखिये रोते हुए उतने समाधान नहीं मिलते जितने सहज मुस्कान के साथ मिलते हैं। आपकी मुस्कराहट आपके व्यक्तित्व में गजब का इजाफा करती है। आपक व्यक्तित्व खुशनुमा व्यक्तित्व कहलाता है। दूरदर्शन पर रामायण के राम और महाभारत के कृष्ण की मुस्कराहट से आप प्रभावित तो हुए ही होंगे जब कि यह अभिनय था। सत्य कितना प्रभावी होगा।

8 – व्यापक दृष्टिकोण अभ्युदय / Comprehensive outlook-

     वह व्यक्तित्व ज्यादा प्रभावी होता है जो जितने बड़े क्षेत्र के उत्थान में योग देता है और जो केवल अपने लिए नहीं जीता। इस संस्कृत श्लोक में कितने सहजता से यह बात कही गयी है –

अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्

उदारचरितानां तू वसुधैव कुटुम्बकम।

भारतीय दर्शन, अष्टाङ्ग योग इतनी क्षमता रखते हैं की यदि इनका अध्ययन किया जाए तो संकीर्ण दृष्टिकोण विकसित हो ही नहीं सकता। गीताएं, वेद, पुराण इसी क्रम में आते हैं। इसीलिए यथा सम्भव इनका अध्ययन किया जाए।  लोग आपके व्यक्तित्व के कायल हो जाएंगे।

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शिक्षा

PERSONALITY

October 8, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments

व्यक्तित्व

आशय व परिभाषाएं / Meaning and Definitions –

व्यक्तित्व शब्द पुरातन काल खण्ड का एक महत्त्वपूर्ण विषयवस्तु है अथर्ववेद में सतोगुणी, रजोगुणी,और तमोगुणी व्यक्तित्वों के बारे में बताया है यह त्रिगुणी अवधारणा मानव चेतना की यात्रा के अंश हैं सत्व,स्थिरता का रज सक्रियता का तथा तम जड़त्व से सम्बद्ध है। इन्हें आगे चलकर सांख्य दर्शन ने अपनाया। श्रीमद्भगवद्गीता में व्यक्तित्व पर सारगर्भित दिशा निर्देश है। सामान्य अर्थों में व्यक्तित्व को बाहरी सौन्दर्य व सद्गुणों के समाविष्ट स्वरुप के रूप में देखा जाता है।

            पाश्चात्य दृष्टिकोण में व्यक्तित्व आंग्ल भाषा के Personality शब्द का समानार्थी है।यह शब्द लेटिन के परसोना (Persona) से विकसित हुआ जिससे आशय है नकली चेहरा या मुखौटा अर्थात उस काल में शरीर रचना, पोशाक, रंगरूप आदि वाह्यगुण व्यक्तित्व में समाहित स्वीकार किये गए।

            विभिन्न दृष्टिकोणों व मतों के कारण अलग अलग विद्वतजनों ने इसे अलग अलग तरह से पारिभाषित किया उनमें से कुछ यहां द्रष्टव्य हैं यथा –

Allport / आलपोर्ट महोदय के अनुसार

“Personality is the dynamic organisation within the individual of those psychophysical systems that determine his unique adjustment to his environment.”

“व्यक्तित्व, व्यक्ति में उन मनोदैहिक व्यवस्थाओं का संगठन है जो वातावरण के साथ उसका सुसमायोजन स्थापित करता है। ”

munn,N.L के अनुसार

“Personality may be defined as the most characteristic integration of an individual’s structures, modes of behaviour, interests attitudes, capacities, abilities, and aptitudes.”

“व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है।” 

May and Hartshorn महोदय का मानना है कि –

“Personality is that which makes one effective and gives influence over others.”

“व्यक्तित्व, व्यक्ति का वह स्वरुप है जो उसे प्रभावशाली बनाता है और दूसरों को प्रभावित करता है। ”

  Drever महोदय इस सम्बन्ध में कहते हैं –

“Personality is a term used for the integrated and dynamic organization of the physical, mental, moral, and social qualities of the individual, as that manifests itself to other people, in the give and take social life.” 

 “व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग, व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, और सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है, जिसे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान प्रदान में व्यक्त करता है।”

व्यक्तित्व के प्रकार / Types of Personality –

व्यक्तित्व के कोई निश्चित प्रकार नहीं बताये जा सकते इसीलिये विविध विद्वानों द्वारा इन्हें अलग अलग तरह से वर्गीकृत किया गया है।सामान्यतः इन्हें निम्न तीन भागों में बाँटकर अध्ययन करेंगे –

1 – शरीर बनावट के आधार पर (Based on body composition)

2 – समाजशास्त्रीय प्रकार (Sociological type)

3 – मनोवैज्ञानिक प्रकार (Psychological type)

1 – शरीर बनावट के आधार पर (Based on body composition)–

क्रेचमर (Kretschmer) महोदय इन्हें चार भागों में बाँटा है जो इस प्रकार है –

A – मिलनसार (Pyknic) – सामान्य कद काठी के मृदुभाषी व्यक्ति मित्रता, अच्छे स्वभाव और मिलनसारिता के गुण से युक्त होते हैं  ये समाज से मिलकर चलते हैं।

B – एकान्तप्रिय (Leptosome) – ये कमजोर, शर्मीले, चुप रहने वाले, अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के होते हैं।इन्हें एकान्त पसन्द होता है।  

C – चुस्त (Athletic) – इस प्रकार के व्यक्ति का सीना चौड़ा व उभरा, कन्धे चौड़े, मजबूत माँसपेशियाँ, ताक़तवर भुजाएं, हृस्टपुष्ट स्वस्थ शरीर होता है। इन्हे चुस्त(Athletic) व्यक्तित्व वाला कहते हैं।    

D – मिश्रित (Dysplastic) -इस तरह के व्यक्ति लम्बे, चौड़े, मोटे होते हैं और इनमें ऊपर वर्णित प्रकारों का आंशिक सम्मिश्रण होता है।

2 – समाजशास्त्रीय प्रकार (Sociological type)-

स्प्रेंगर / Spranger  महोदय ने अपनी पुस्तक “Types of Men” में 6 प्रकार के व्यक्तित्व बताए हैं –

1 – वैचारिक (Theoretical) – दार्शनिक, आविष्कारक, वैज्ञानिक आदि को इसमें स्थान दिया जाता है।  

2 – आर्थिक (Economic) – ऐसे व्यक्ति धन को अधिक महत्ता प्रदान करते हैं। व्यवसायी, दुकानदार, उद्योगी आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।

3 – सौन्दर्यात्मक (Esthetic) – सौन्दर्य व कला को महत्ता प्रदान करने वाले इस श्रेणी में आते हैं। यथा चित्रकार, साहित्यकार, कलाकार आदि।

4 – धार्मिक (Religious) – ईश्वर में आस्था रखने वाले,सशक्त आध्यात्मिक पक्ष वाले लोग इसमें आते हैं जैसे संत, पुजारी, पादरी, भक्त, मुल्ला मौलवी इसके तहत आते हैं। 

5 – सामाजिक (Social) – सामाजिक हितों व सामाजिक समस्याओं से जूझने वाले लोग इसमें गिने जाते हैं जैसे विनोबाजी, गाँधीजी, नेल्सन मंडेला,दयानन्द सरस्वती आदि। 

6 – राजनैतिक (Political) – सत्ता, नियन्त्रण, प्रभुसत्ता, राज व्यवस्था के दावपेचों से उलझने वाला इस क्षेत्र में आता है जैसे नेता, मन्त्री, आदि।

3 – मनोवैज्ञानिक प्रकार (Psychological type)-

मनोवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर जिन विद्वानों ने व्यक्तित्व का वर्ग विभाजन किया है उनमें C.G.JUNG को सर्वाधिक स्वीकार किया जाता है इनका पुस्तक “Psychological Types” दिया गया विवरण आज भी महत्ता रखता है इन्होने व्यक्तित्त्व वर्गीकरण इस प्रकार किया है –

1 – बहिर्मुखी (Extrovert) – ऐसा व्यक्तित्व बहुत सामाजिक बाहरी दुनिया से मेलजोल बढ़ाने वाला व्यक्तिगत धन या स्वास्थ्य की कम परवाह कर नई परिस्थितियों से सुसमायोजन कर लेता है। इनका आत्मविश्वास बहुत अच्छा होता है, ये विज्ञापन, भाषण कला, प्रकाशन आदि के द्वारा दूसरों को अपने अनुकूल बना लेते हैं यथा शास्त्रीजी, श्रीमति इन्दिरा गाँधी, नरेन्द्र मोदी जी, विवेकानन्द जी आदि को समझा जा सकता है।   

2 – अन्तर्मुखी (Introvert) – ये बहुधा अपनेआप में खोये रहते हैं किताबें पढ़ना, निर्धनता में खुश रहना, सामाजिक व्यवहार निर्वाहन में संकोची, स्वयं के प्रगटन से परे, शीघ्र दुःखी होने वाला, कम लोचपूर्ण दृष्टिकोण, संसार की परवाह न कर स्वपथ पर अग्रसर, कम बोलने वाला, बहिर्मुखी से अधिक कार्य क्षमता वाला होता है।      

3 – उभयमुखी (Ambivert) – ऐसे व्यक्ति किन्ही परिस्थितियों में अन्तर्मुखी व भिन्न परिस्थिति में बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं आपने भी देखा होगा एक अच्छा लिखने वाला और बोलने वाला एकान्त में कार्य करना पसन्द करता है।

जुंग महोदय ने इस सिद्धान्त की आगे और व्याख्या की है जिससे यह बहुत बड़ा हो जाता है उसने अंतर्मुखी व बहिर्मुखी को चार चार भागों में बांटा है –

1 – विचार प्रधान (Ideological)

2 – तर्क बुद्धि प्रधान (Logic minded)

3 – भाव प्रधान (Sentimental)

4 – दिव्य दृष्टि प्रधान (Celestial vision)

        इस प्रकार हम देखते हैं कि व्यक्तित्व को कई प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। क्रो व क्रो ने विभिन्न दृष्टिकोणों की आलोचना  हुए कहा –

“A general criticism of such classifications is the tendency to place emphasis upon one or another phase of development and to deal with extremes rather than with the mediocrity of human nature.”

“इस प्रकार के वर्गीकरणों की एक सामान्य आलोचना यह है कि यह विकास के किसी न किसी पहलू पर बल देते हैं और सामान्य मानव स्वभाव की अपेक्षा उसके उग्र रूपों की व्याख्या करते हैं।” 

व्यक्तित्व विशेषक / Traits of Personality –

व्यक्तित्व का निर्धारण उसकी विशेषता या गुणों के आधार पर होता है। गैरट महोदय कहते हैं –

“Personality traits are distinctive ways of behaving more or less permanent for a given individual. Personality traits are neat short ways of describing the multifold aspects of behaviour.”

“व्यक्तित्व के गुण व्यवहार करने की निश्चित विधियाँ हैं जो प्रत्येक व्यक्ति में बहुत कुछ स्थाई होती हैं। व्यक्तित्व के गुण, व्यवहार के बहुसंख्यक स्वरूपों का वर्णन करने की स्पष्ट और संक्षिप्त विधियां हैं।”

व्यक्तित्व के अंगों को हम दो भागों में विभक्त कर विशेषता बता सकते हैं –

1 – प्रत्यक्ष – शारीरिक विशेषक

2 – अप्रत्यक्ष (क्रिया आधारित) – बौद्धिक, सामाजिक, संवेगात्मक,चारित्रिक व अन्य विशेषक।

उक्त विशेषक भी अपने आप में बहुत से गुण रखते हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित कर सकते हैं।

A – शारीरिक विशेषक (Physical Traits)      B – बौद्धिक विशेषक (Intellectual Traits)

                                                                             सामाजिक विशेषक (Social Traits)

                                                                              संवेगात्मक विशेषक (Emotional Traits)

                                                                              चारित्रिक विशेषक (Character Traits)

                                                                              अन्य विशेषक (Other Traits)

व्यक्तित्व के सिद्धान्त / Theories of Personality –

मनोवैज्ञानिकों हेतु यह परमावश्यक हो गया कि व्यक्तित्व का अध्ययन किया जाए लेकिन सच्चाई यह है कि एक नहीं बहुत से कारक हैं जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं विविध वैयक्तिक धारणाओं के आधार पर विविध सिद्धांतों का उदय हुआ है उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धांत देने का यहां प्रयास है –

मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त – यह मत सिग्मण्ड फ्रायड की देन है फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व का निर्माण इड (Id), इगो (Ego), सुपर इगो (Supar Ego) से हुआ है।

इड (Id) अचेतन मन है इसमें मूल प्रवृत्तियों व प्राकृतिक इच्छाओं का निवास है ये शीघ्र संतुष्ट होना चाहती हैं तृप्ति चाहती हैं।

इगो (Ego) चेतना बुद्धि, तर्क तथा इच्छा शक्ति है।

सुपर इगो (Supar Ego) इसका निर्माण आदर्शों से होता है।

Sigmund Freud  ने ईगो के बारे में कहा –

“Ego is the part of Id which has been modified by its proximity to the external world and the influence the later has on it and which serves the purpose of receiving stimuli and projecting the organism from them ,like the cortical layer with which a particle of living subustance surrounds itself.”

“इगो, इड का वह भाग है जो वाह्य संसार के अनुमान और संभावना से परिष्कृत होता है और उसका कालान्तर में प्रभाव भी पड़ता है, जो प्राणी को उद्दीपन करने एवं उसके इर्द गिर्द जमी परत के अंश के रूप में व्याप्त रहता है।”

Sigmund Freud  ने सुपर ईगो के बारे में कहा –

“Super Ego that expect of the ego which makes possible the processes of self observation and what is commonly called conscience.”

“सुपर ईगो, ईगो का वह पक्ष है जो आत्म निरीक्षण की प्रक्रिया को सम्भव बनाता है जिसे सामान्य रूप से चेतना कहते हैं। ”

Sigmund Freud महोदय का मानना है कि मानव के व्यक्तित्व का निर्माण इन्हीं तत्वों से मिलकर होता है जो विभिन्न रूप में परिलक्षित होते हैं। 

रचना (Constitution) सिद्धान्त –

इस विचार धारा के प्रतिपादक शैलडॉन / SHELDON महोदय हैं इन्होने व्यक्तित्व के प्राथमिक आधारों की संख्या तीन बताई है –

1 – गोलाकृति (Endomorphy) – इस तरह के लोगों का व्यक्तित्व अलग तरह से परिलक्षित होता है इस व्यक्तित्व के मनुष्य गोल गर्दन, माँस पेशियों का पूर्ण विकसित न होना, चर्बी की वृद्धि आदि गुणों से युक्त होते हैं। 

2 – आयताकृति (Mesomorphy) – इस तरह के व्यक्तित्व में मुख्यतः माँस पेशियों व हड्डियों का विकास परिलक्षित होता है।

3 – लम्बाकृति (Ectomorphy) – इस तरह के व्यक्तित्वों में केंद्रीय स्नायु संस्थान के माँस पेशी तन्तु विकसित होते हैं।

    इस मत के अनुसार मूलतः यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है कि इसमें शरीर के विभिन्न अंगों को व्यक्तित्व निर्माण का आधार माना जाता है।

प्रतिकारक (Factorial) प्रणाली सिद्धान्त –

इस मत का प्रतिपादन आर ० बी ० कैटल (R. B. Cattell) महोदय द्वारा किया गया। इन्होने बताया मानव चरित्र अनेक कारकों से युक्त होता है इनके अनुसार निम्न तथ्य प्रतिकारक चरित्र का निर्माण करते हैं –

चरित्र की सुन्दरता (Fitness of Character)

सामाजिकता (Sociability)

भावात्मक एकता (Emotional Integration)

कल्पनाशीलता (Imagination)

अभिप्रेरक (Motivator)

उत्सुकता (curiosity)

लापरवाही (Negligence)

उक्त आधारों पर कैटल महोदय ने कहा –

“Personality is, that permits a prediction of what a person will do in a given situation.”

“व्यक्तित्व वह है जो किसी विशेष परिस्थिति में जो कार्य करता है उसका प्रतिरूप ही व्यक्तित्व है। ”

ऑलपोर्ट (Allport) का सिद्धान्त –

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में गोर्डन डब्ल्यू ऑलपोर्ट (Gordon W. Allport) का सिद्धान्त वंशक्रम वातावरण वैयक्तिक भेद पर अवलम्बित है इन्होने वंशक्रम के द्वारा निर्धारित व्यक्तित्व के जटिल मिश्रण के प्रति न्याय करने ,सामाजिक,स्वाभाविक तथा मनोवैज्ञानिक कारणों के प्रति न्याय करने को कहा है। तथा साथ में विभिन्न सम्प्रदायों तथा व्यक्तित्वों की नवीनता को भी मान्यता देनी चाही है। इन्होने स्पष्टतः स्वीकार किया की प्रवृत्तियों,विशेषताओं तथा वातावरण के प्रति समायोजन से व्यक्तित्व का गठन होता है।

            उक्त सिद्धांतों के अतिरिक्त भी विविध सिद्धांत भी अपनी धमक रखते हैं।  व्यक्तित्व के सिद्धान्तों में विविध दृष्टिकोणों का समावेशन करने पर इसका विशेष वृहत प्रखण्ड प्रस्तुत किया जा सकता है लेकिन इसे यहीं विराम दिया गया है।

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शिक्षा

Dissertation and Viva Voce

October 5, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


लघुशोध और मौखिक परीक्षा

Dissertation या लघु शोध लगभग एम ० एड ० स्तर पर सभी जगह चाहे वहाँ सैमेस्टर प्रणाली लागू हो या वार्षिक परीक्षा हो, पाठ्यक्रम का हिस्सा है। विविध विषयों में परा स्नातक स्तर पर लघु शोध (Dissertation) के साथ ही अस्तित्त्व में है। – लघुशोध और मौखिक परीक्षा (Dissertation and Viva Voce)

आज मुख्यतः इसके प्रभावी ढंग से निष्पादन के विषय में कुछ तथ्य प्रस्तुत किये जाएंगे। यह लघु शोध ही अन्ततः हमारे शोध ग्रन्थ को भी दिशा प्रदान करता है।

लघु शोध आधारित मौखिक परीक्षा को प्रभावी बनाने वाले कारक  

 Factors that make Dissertation Based Viva Effective

सम्पूर्ण रूप में Synopsis(रूप रेखा ), Dissertation(लघु शोध), Research Summary (शोध सार) मिलकर शोध परिक्षेत्र को जाज्वल्यमान बनाते हैं। यही लघु शोध आगे शोध ग्रन्थ लिखने में हमारी मदद करता है और इसीलिए इसकी मौखिक परीक्षा एक वृहद दृष्टिकोण लिए होती है। यही शोध कार्य देश की प्रगति का आधार बनाते हैं। लघुशोध आधारित मौखिक परीक्षा के प्रश्न लघुशोध पर आधारित होते हैं और इन्हे इन बिन्दुओं का आधार लेकर सरलता से साधा जा सकता है –

1 – सामान्य प्रश्न (General question)

2 – समस्या कथन आधारित प्रश्न (Problem statement based questions)

3 – शोध के प्रकार (Types of research)

4 – चर, परिकल्पना, उद्देश्य आधारित तथ्य (Variables, Hypotheses, Objective Based Facts) 

5 – शोध उपकरण व परिकलन आधारित प्रश्न (Research Tools & Calculation Based Questions)

6 – सम्बन्धित साहित्य के अध्ययन पर प्रश्न (Question on study of related literature)

7 – शिक्षा परिक्षेत्र में आपके शोध का लाभ (Benefits of your research in the field of education)

8 – ऐसे शोध के अभाव से देश को नुक्सान (Lack of such research damages the country)

वर्तमान समय में परास्नातक स्तर पर लघु शोध के स्तर में गिरावट देखने को मिली है बहुत कम विद्यार्थी सही ढंग से कार्य कर पा रहे हैं। कारणों का एक मिथ्या पहाड़ है। सुधार हेतु विद्यार्थी, प्राध्यापक, अभिभावक, उच्च शिक्षा  सभी को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। शोधार्थियों की ओर देश की आशाभरी नज़रें हैं। ईमानदारी से कार्य करें, मौखिक परीक्षा स्वतः अच्छी व गरिमामयी होगी।

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शिक्षा

B.Ed. and Viva

October 4, 2022 by Dr. Shiv Bhole Nath Srivastava No Comments


शिक्षा स्नातक और मौखिक परीक्षा

शिक्षण प्रशिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है मौखिक परीक्षा अर्थात VIVA .यद्यपि इसके लिए अंक निर्धारित हैं लेकिन यह ही भविष्य के साक्षात्कार [Interview] का मुख्य आधार है जिस स्तर का VIVA होता है उस स्तर पर आपका कितना अधिकार है और आप सर्वहित में इसका भविष्य में कैसे प्रयोग करेंगे, इसकी झलक इस मौखिक परीक्षा अर्थात VIVA  से मिल जाती है। आइए B. Ed. स्तर पर अन्ततः होने वाले viva को प्रभावशाली बनाने के लिए हमारे लिए क्या आवश्यक है इस पर विचार करते हैं।

बी० एड ० वायवा हेतु आवश्यक कारक

Factors Required for B.Ed. Viva

यद्यपि पूर्व निर्धारित प्रश्नों की कोई व्यवस्था नहीं होती है इसलिए आपके व्यक्तित्व से लेकर अधिगम क्षमता व उनके व्यावहारिक प्रयोग की परीक्षा इसके माध्यम से हो जाती है। इसे प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न तथ्य महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करते हैं।

1- आधारभूत ज्ञान [Basic knowledge]

2- तत्सम्बन्धी फाइलें व आवश्यक सामग्री [Related files and necessary material]

3- स्वनिर्मित फाइल सम्बन्धी जानकारी [Self-contained file information]

4- अप्राप्त ज्ञान की स्व स्वीकारोक्ति [Self confession of unrealized knowledge]

5- झूठ से परहेज [Abstaining from lies]

6- बहानेबाजी व बहस से दूरी [Distance from excuses and arguments]

7- धारा प्रवाहिता [Fluency]

8- आत्म विश्वास [Self-confidence]

मौखिक परीक्षा के असंरचित (Unstructured) होने की वजह से इसका स्वरुप व्यापक हो जाता है लेकिन यह सत्य का एक आवश्यक दर्पण भी होता है यदि गैर पक्षपात पूर्ण और योग्य व्यक्तित्व द्वारा इसका सम्पादन होता है। यह आज की व्यवस्था का अनिवार्य अंग है इसे सहजता से लिया जाना चाहिए यह आपकी परिपक्वता का द्योतक है।

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