राष्ट्रीय चेतना बुला रही है हमें निखरना है,

भारत वर्षोन्नति हेतु, कमर अब कसना है,

जो कुछ उल्टा- पुल्टा था, उसे बदलना है,

भारतीय चेतना का स्वर आरोही करना  है।

भौतिक-चिन्तन  में रंग आध्यात्मिक भरना है,

निज श्रम से उन्नत स्वरुप भारत का गढ़ना है,

सबका विकास व साथ मन्त्र गुञ्जित करना है,

भारतीय चेतना  का  स्वर आरोही  करना  है।

जात पात औ ऊँच- नीच के रंग नहीं भरना है,

नवविकसित,उत्थितदेश को स्थापित करना है,

प्रगति कार्य हेतु निज कर्म सुनिश्चित करना है,

भारतीय चेतना  का  स्वर आरोही करना  है।

टोपी,पगड़ी औ धोती के ना झगड़े करना है,

तिरोहित कर सब स्वार्थ ऊंचा स्वर गढ़ना है,

ओछेपन को यहीं कुचल अब आगे बढ़ना है,

भारतीय चेतना  का  स्वर आरोही करना  है।

भारत- माता मस्तक,जाज्वल्लित करना है,

तेरा मेरा का द्वन्द छोड़ दृढ़ भारत गढ़ना है,

उन्नत भारत भाल पर नव सूर्य चमकना है,

भारतीय चेतना का स्वर आरोही करना  है।

ठसक छोड़,स्नेहिल पथ विकसित करना है,

निज -जड़ता त्याग, रंग दृढ़ता का भरना है।

अनुशासन,तन्मयता से प्रमुदितमन करना है

भारतीय चेतना का  स्वर आरोही  करना  है।

नव चेतनता बुला रही, सत्पथ तय  करना है,

उठो देश के  गुरुओ भारत भाग्य बदलना है,

कालिमाचीर व बढ़ाधीर क्षितिज पर चढ़ना है,

भारतीय चेतना का  स्वर आरोही  करना  है।

स्वर आरोही  करना  है।

आरोही  करना  है।

——-डॉ 0 शिव भोले नाथ श्रीवास्तव

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