बलिदानों की मिट्टी से रज-कण चन्दन हो जाता है,
शीश गिरे जब सीमा पर माँ का वन्दन हो जाता है,
चढ़े जभी अरिछाती पर,अरिघर क्रन्दन हो जाता है,
वरण हमें जय करती है,माँ अभिनन्दन हो जाता है।
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