देखो,देखो नवजात शिशु स्वप्न में मुस्कुरा रहा है,

लगता है सोते अबोध को कोई लोरी सुना रहा है,

कोई शिशु जन्म की खुशी मंगल- गीत गा रहा है,

परिवार को मिला नवीन वारिस समझ आ रहा है

 

जन्म की जनवरी है, नव मासूम खिलखिला रहा है,

पढ़ने को जिन्दगी का अध्याय विद्यालय जा रहा है,

सहपाठियों संग जीवन का राग,विकास पा रहा है।

जीवन  है खुशियों का खेल, यह समझ आ रहा है।

 

समय द्रुतगामी पंख लगा कर उड़ता ही जा रहा है,

अल्हड़ सा जीवनरस का आनन्द बढ़ता जा रहा है,

संगी साथी संग खेल बचपन का आनन्द आ रहा है,

जीवन तरंग का अद्भुत, कौतूहल नज़र आ रहा है

 

लड़कपन अब किशोरावस्था में बदलता जा रहा है

जीवन का नवीन राग मदमस्त नव फाग गा रहा है,

नशा मस्ती का, युवाओं के सिर पर चढ़ा जा रहा है,

नव यौवन संग चिर यौवन का भ्रम साथ आ रहा है।

 

आ गया गर्म मौसम तपिश से कुछ सिखला रहा है,

जीवन यथार्थता का व्यावहारिक दर्शन करा रहा है,

खिलौने छीनकर जिम्मेदारियों का पाठ पढ़ा रहा है,

बदला बदला सा जीवनसार का मन्जर नज़र रहा है।

 

जिन्दगी का व्यावहारिक  यथार्थ, समझ आ रहा है,

जिम्मेदारियों का अजबबोझ है बढ़ता ही जा रहा है,

प्रातः,दोपहर,शाम मध्य जीवन ढलता ही जा रहा है,

दायित्वबोध की अकुलाहट में मन उलझ जा रहा है।

 

जीवन की कैनवास पर, अनुभव का रंग आ रहा है,

अनुभव की प्राप्ति में समस्त जीवन खपा जा रहा है,

घरपरिवार की जिम्मेदारी में अध्यात्म खो जा रहा है,

समस्याओं के अन्धड़ में जीवनमूल्य उड़ा जा रहा है।

 

चेहरे पर झुर्रियाँ बालों में, सफेद सा रंग आ रहा है,

ना चाहते हुए भी दवाओं पर खर्च बढ़ता जा रहा है,

दाँतों की हुई विदाई चश्मे का नवनम्बर आ रहा है,

अब तो यह, लगता है उम्र का दिसम्बर आ रहा है।

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