होलिका दहन में ही दग्ध करलो चिन्ता का,
मन में सदभावों का संचरण होना चाहिए।
रंग फैंकने से पूर्व आप भी विचार लो,
कि रंग डालने की कैसी रीति होनी चाहिए।
जोर जबरदस्ती की भावना प्रधान हो,
या गरिमा युक्त भाव का स्थान होना चाहिए ।
भावना का समन्दर है आदमी की जिन्दगी,
किसी की भावना को न ठेस लगनी चाहिए।
आस्था में रंग जाना तो स्वभाव है इन्सान का,
पर आस्था के साथ भी अनुशासन होना चाहिए।
होली तो त्यौहार है प्रेम का सद्भाव का,
इसलिए खुद का ही मन पर प्रशासन होना चाहिए।
गुझिया पापड़ दही बड़ा है आकर्षण त्यौहार का,
पर तन का अपने आप ही ख्याल रखना चाहिए।
बुरा न मानो होली है ये नारा है इस पर्व का,
अपने व बेगानों को शुभ कामना देना चाहिए।
जी हाँ ये त्यौहार है हँसी का ठिठोली का,
पर मूलतः तो भावना पवित्र होनी चाहिए।
जी भर रंग खेलना परम्परा है भारत की,
पर फाग में भारतीयता प्रधान होनी चाहिए।
Nice sir
Dhanywaad 🙂