इतनी सी हो तुम केवल पर कितना याद आती हो।
यादों में और जेहन में, तुम दिन भर मुस्कुराती हो।
मेरी बेटी, मेरी चाहत मेरा वजूद सब तुम से ही है।
हँसाना चाहता जब मैं तुम कितना खिलखिलाती हो।
नन्हें से प्यारे मुखड़े पर, यूँ मासूमियत सजाती हो।
नन्हीं निर्दोष आँखों से समभाव का जादू जगाती हो।
मेरी लाड़ो ,मेरी छुटकी मेरी ये दुनियाँ तुमसे ही है।
ये बाप की विवशता है कि तुम उस से दूर जाती हो ।।
चेन्नम्मा,हजरत महल,लक्ष्मी बाई बनकर आती हो।
भीकाजी, सरोजिनी,सुचेता सा हौसला दिखाती हो।
ये धरती तुमसे वाकिफ है ये अम्बर भी तुम्हीं से है।
तुम भावना, अवनी,मोहना लड़ाकू यान उड़ाती हो।।
कृष्णा,मन्नू,महादेवी बन कलम का जादू चलाती हो।
अरुणा,मेधा,किरण वेदी बनकर चेतना जगाती हो।
लक्ष्मी सहगल और झलकारी ये उजाला तुम्हीं से है।
मैरीकॉम,पूनिया,ऊषा बन खेलों में नाम कमाती हो।।
अबतो गिनना मुश्किल है तुम सबकुछ करजाती हो।
लेखिका, खिलाड़ी, सेनानी बनकर धर्म निभाती हो।
पिता की नजरों में, केवल तुम बेटी ही कहलाती हो।
समाजसेविका,नेता हो,अन्तरिक्ष में तुम छाजाती हो।।
सादाजीवन,उच्चविचार का पर्याय जब बनजाती हो।
तब पिता की चौड़ी छाती में,सिंहों सा बल लाती हो।
क्या क्या बोलूँ बेटी मेरी संसारी मुस्कान तुम्हीं से है।
कर्म की प्रतिमूर्ति तुम,चन्द्रयान से भी जुड़ जाती हो।।