चन्द्रयान की आँखों से खुद को  निहारकर आया हूँ,

पावन सन्देशा, पृथ्वीवालो साथ मैं अपने लाया हूँ,

निज जीवनवृत्त अनुभव का पुलिन्दा साथलाया हूँ,

बिन  मिष्ठान्न भिजवाने का शिकवा साथ लाया हूँ। 

पृथ्वी बहना तूने अपना संस्कार बिसरा रक्खा है,

मुझको दिखता यहॉं से तेराघर कितना अच्छा है,

दीर्घ – काल तक तुमने सम्बन्धों का मान रखा है,

तेरा भेजा यान सुना है भारत ने भिजवा रक्खा है।

भारत के लोगों सुन लो निजराज बताने आया हूँ,

नहीं छोड़ता शीतलता आकार बदलता आया हूँ,

तुम भी मानव धर्म न छोड़ो तुम्हें जगाने आया हूँ,

पशुता तुममे घर न कर ले तुम्हें उठाने आया हूँ।

कर्म निरन्तर करता अपना ये स्वधर्म में लाया हूँ,

इस निरन्तरता की सौगन्ध तुम्हें दिलाने आया हूँ,

बदले में स्वास्थ्य, सौन्दर्य, समृद्धि सामने लाया हूँ,

वादा करो कर्म का, फल की व्यवस्था कर आया हूँ।

मौसम परिवर्तन में देखो, निर्विकार रह पाया हूँ,

सुख दुःख में समभाव रहो एक लक्ष्य मैं लाया हूँ,

लक्ष्य सन्धान के तुमसबके तेवर जगाने आया हूँ,

तुम्हारी गीता का तुमको ही पाठ पढ़ाने आया हूँ।

चन्द्रमा का सन्देश सुनो युगधर्म निभाने आया हूँ,

विश्वबन्धुत्व धारणा तुम्हारी मैं प्रयोग में लाया हूँ,

“सर्वे भवन्तु सुखिनः” का स्मरण दिलाने आया हूँ,

विश्व के प्रति कर्तव्यों का अवबोध कराने आया हूँ।

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