पिता परम पिता परमेश्वर प्रदत्त अनुपम उपहार है,
बच्चों हित फलदाई वृक्ष और संगिनी का, श्रृंगार है,
सब है गर पिता साथ है बिन पिता जीवन अनाथ है,
पितृहीन बालक लाचार है, माँ का जीवन अंगार है।
बच्चों की खिलखिलाहट व पारिवारिक संस्कार है,
अति विस्तार है उसका वह परिवार की सरकार है,
पारिवारी जनों के लिए वो, दिशाबोधक विश्वनाथ है,
हिचकोले खाती घर नैय्या का वह प्रमुख आधार है।
बेटे बेटियों के स्वप्न पूर्णता का, वही दृढ़ आधार है,
परिश्रम लगन निष्ठा का वह साकार प्रत्यक्षाकार है,
कण्टकाकीर्ण दुरूहमार्ग पर विपत्ति में जो साथ है,
पिता कहा जाता उसे जो त्याग का खास प्रकार है।
दुनियाँ के मरुस्थल में हरियाली का एक प्रकार है,
भय, चिन्ता, असुरक्षा भाव का, वो करता संहार है,
प्रगति समृद्धि बच्चों की उसी का सर्वाधिक हाथ है,
अपेक्षित संस्कार हस्तान्तरण का वह मुख्याधार है।
बच्चों के मन मन्दिर में, जगदीश का जो प्रकार है,
मान, मर्यादा संस्थापना का, वह मुख्य मूर्तिकार है,
वन्दनीय पौरुष जगत का, वह तो मात्र इक पार्थ है,
अधिकार छोड़ कर्तव्यों का बस लगरहा अम्बार है।
निजआदर्शों का आराधक आगत का पालनहार है,
स्वयं के सारे दुःख छिपा सर्वसुख का वह आधार है,
उससे जन्मी जो रचना है, भविष्य में प्रकाशनार्थ है,
हर कृति को सुन्दरतम करना, पितृत्व का श्रृंगार है।