मीठी मीठी यादों को कुरेदकर जगाते हैं।

बीताकल आनेवाली दुनियाँ को बताते हैं।

भारत में विवाह, पावन संस्कार बताते हैं।

पण्डित मन्त्रोच्चारण से अलख जगाते हैं।

विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।

शहनाई बजती है व कुछ रस्में निभाते हैं।

संग साथ प्रिय जन के प्रीति भोज पाते हैं।

सम्बन्धित जन साथ में खुशियाँ मनाते हैं।

वरवधु इकदूजे को जय माल पहनाते हैं।  

विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।

सात सात वचनों से दोनों को बँधवाते हैं।

गठ बन्धन का दीर्घावधि पर्व ये मनाते हैं।

चुहलबाजी चलती है, विदा क्षण आते हैं।

बहुतों के नयनों में दृगबिन्दु भर आते हैं।

विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।

दो भिन्नजीव इक प्रेमडोर से बँधजाते हैं।

दो पथिक एक होकर निजजग बनाते हैं।

धीरे धीरे कर्तव्यपथ पर डग धरे जाते हैं।

शुरूआती वर्ष जाने कब  गुजर जाते हैं।

विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।

इस बीच परिवार में नव सदस्य आते हैं।

नन्हेंमुन्ने नव आगत सभी को भरमाते हैं।

चलने वाले दोनों जीव उनमें खो जाते हैं।

खोनेवाले दोनों जीव माँ बाप कहलाते हैं।

विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।

जिम्मेदारी बढ़ती है सपने रंग दिखाते हैं।

खुद के सपने भूला, बच्चों में रम जाते हैं।

नवशिशु बड़े होकर विद्यालय में जाते हैं।

माता पिता निज दुलार, लाड़ बरसाते हैं।

विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।

धीरे धीरे इन बच्चों के व्यय बढ़ जाते हैं।

मातापिता हिम्मत से कर्म करते जाते हैं।

इस सब व्यवस्था में बच्चे पढ़ते जाते हैं।

बच्चों के सपने, अब अपने बन जाते हैं।

विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।

बैठकर विचार करें गत पृष्ठ यादआते हैं।

धीरे धीरे ही सही इतने वर्ष बीत जाते हैं।

वर्ष पच्चीस बीते इकदिन बच्चे बताते हैं।

नींद जैसे खुल गई हो, हम जाग जाते हैं।

विवाह की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ मनाते हैं।।

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