वक़्त ने करवट बदल कर गुनगुनाया सुर नया,
मन्थर गति से चल समय नया मौसम बुन गया,
तब्दीलियों ने वक़्त की फिर गीत गाया धुर नया,
समय जो हिस्से का था यह नियति है गुम गया।
वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।
विगत का वह घन घनेरा बिना बरसे उड़ गया,
वक़्त के इस सितम से सीख लो कुछ गुर नया,
मैं तुम्हारे बीच से था इसलिए तुम में गुम गया,
स्पन्दन साज खो चला, गाऊँ कैसे मैं सुर नया।
वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।
शिखरपथ गर चाहते हो सीख लो ये गुण नया,
वक़्त से मिल के चल आगत सुनहरा बुन गया,
वक़्त सबके पास था जो रुकगया वो रुकगया,
जो कुशल था नभ चितेरा वही उससे जुड़गया।
वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।
जो भी पीछे रह गया अन्धेरे पथ पर मुड़ गया,
विजयी हुंकार सुन, आतंक सुर अब चुप गया,
सर्वजन के साथ से सरगम का बनता सुर नया,
वक़्त के संग गर चले सफलतम पथ चुन गया।
वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।
ऐसे ही तो आएगा इस धरा पर अब शुभ नया,
अब जड़ता छोड़दो पथ गुम गया तो गुम गया,
त्यागकर अतीत को पथ चुन नया हाँ चुन नया,
जीत के विश्वास से रथ विजयपथ पर मुड़गया।
वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।
मैं वक़्त के संग चलरहा नवगीत मेरा बुन गया,
जो मेरी बाधा बने थे कलुष मन अब धुल गया,
मनस पर जो बोझा पड़ा था धीरे धीरे ढुल गया,
अविरल लघु प्रयास से यह तना बाना बन गया।
वक़्त का पंछी सुनहरा उड़ गया तो उड़ गया।