सोते जगते हृदयानल का ज्वाल मचलने लगता है,
कोई दानव भारत का भारत को मसलने लगता है,
जान बूझ निज मतलब से यूँ ही बहकने लगता है,
सारे स्वार्थ पूर्ण कर वह हमसे छिटकने लगता है,
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।
जब भी वह आवश्यक है जड़ से उखड़ने लगता है,
देखके उसके बर्तावों को मन ये सिसकने लगता है,
मौका आने पर आदतवश धीरेसे सरकने लगता है,
देश का खा, देश के अन्दर ज़हर उगलने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।
संख्या बल बढ़ा बढ़ा जब लाभ लपकने लगता है,
बारबार समझाने पर जो मानव फिसलने लगता है,
संख्या वृद्धि पर बस अपनों में सिमटने लगता है,
जानबूझ नासमझा बन बस यूँही उछलने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।
कुछ का व्यवहार ही ऐसा है लहू टपकने लगता है,
उनकी बातें ही ऐसी हैं, विश्वास छिटकने लगता है,
पर देश का अन्तर्मन उनके हित तड़पने लगता है,
लेकिन उनकी गद्दारी से ही, लहू उबलने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।
कोई देश के संसाधन खा खुदही चमकने लगता है,
भोलीसी जनता को जला बेबात विहँसने लगता है,
तब उसके प्रति सबका विश्वास तड़कने लगता है,
कर्तव्य निर्वहन बारी पर आँख झपकने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।
गद्दारी की तैयारी कर खुद ही संभलने लगता है,
मज़हब की दीवार बना सर वहाँ पटकने लगता है,
देश के संसाधन को जला लाभ गटकने लगता है,
भारतवंशियों की आँखों में वही खटकने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।
चादर जला विश्वास की, खुद ही तुरपने लगता है,
तब ऐसी कौमों के प्रति विश्वास दरकने लगता है,
अहम् का फूला गुब्बारा फिरसे पिचकने लगता है,
देशहित सिरेसे ठुकरा के बेबात खड़कने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।
कुछ बर्ताव ही ऐसा है आँखों में कसकने लगता है,
बार बार शक बादल फिर पास फटकने लगता है,
उनका ऐसा कारज लख अरमाँ चटकने लगता है,
देश के निर्मल दामनपे जब लहू छिड़कने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।
जब कोई एड़ा बन कर के, पेड़ा झपटने लगता है,
अपनी घर,बस, रेलों को पुरजोर दहकने लगता है,
घाटा क्योंकेवल देश का हो प्रश्न सुलगने लगता है,
तब हम कैसे क्यों शान्त रहें प्रश्न उछलने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।
जब बिन अर्थों के प्रश्नों का अम्बार लगने लगता है,
नकली मासूम कुकर्मों से ये देश सुलगने लगता है,
मानस में आँधी चलती, विश्वास पनपने लगता है,
नाग को नाथ न दूध पिला सबको डसने लगता है।
तब राष्ट्रवादियों के मन में अंगार धधकने लगता है।।