क्रोधाग्नि से तजकर सुधबुध मानस तम में खो जाता है,
तम का जब बढ़ता प्रभाव सारा विवेक ही सो जाता है,
साँसे तेजी से चलने लगतीं, मुख रक्त वर्ण हो जाता है,
तामस तत्व क्रोध कहलाता मृदु भावों को खो आता है।
क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।1।
गुस्सा अहम प्रभाव बढ़ाता तन मन वहमी हो जाता है,
क्रोध ज्वाल रिश्ते नाते खा बस बीज नाश बो जाता है,
सारे सम्बन्ध तिरोहित होते जग अन जाना हो जाता है,
संसार खोखला सा लगता क्रोध जब हावी हो जाता है।
क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।2।
दुर्वासा सा स्वभाव होता मन सम्मोहन में खो जाता है,
स्मृति भ्रम तब होने लगता हरण बुद्धि का हो जाता है,
कारण पतन का बुद्धिभ्रम प्राण का संकट हो जाता है,
आनन्द मार्गी स्रोतों का मृदुजल कहाँ पर खो जाता है।
क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।3।
तन क्रोध का कारण बनता खो क्रोध ऋषि हो जाता है,
क्रोध नियन्त्रित हो जाने पर मन शीतल सा हो जाता है,
शीतलता भाव बढ़ते जाने से सौम्य स्वभाव हो जाता है,
मृदु सौम्यभाव प्रगति पाने से, अहंकार ही खो जाता है।
क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।4।
क्रोधानल में घी ना पड़ता जागरण विवेक हो जाता है,
प्यार पे गुस्सा नहीं पौढ़ता, प्यार में गुस्सा खो जाता है,
क्रोधी आवरण खो जाने से देवत्व अंकुरण हो जाता है,
सरल आचरण हो जाता, सम्पूर्ण क्रोध ही खो जाता है।
क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।5।
शुभ चिन्ह प्रगट होते सत हावी रज तम पे हो जाता है,
आवेग आनन्दम बढ़ जाता क्रोध तिरोहित हो जाता है,
बढ़ता जब सत का प्रभाव सर्वत्र आनन्दम हो जाता है,
कलुष सभी मानस के मिटते चरित्र निर्मल हो जाता है।
क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर क्यों यह हो जाता है।6।
जीवन जब सम्यक तपजाता क्रोध किधर खो जाता है,
गुण न गरल का तब बढ़ता पुरुषोत्तम तन हो जाता है,
मर्यादा की भावना बढ़ती, विनयशील मन हो जाता है,
पतन का कारण होता ज्ञात सत का उद्भव हो जाता है।
क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर यह क्यों हो जाता है।7।
गुस्से का विप्लवी भाव ऐसा पथ लहूलुहान हो जाता है,
मानव जब गुस्सा खो देता वह मन मोहक हो जाता है,
वैराग्य विनय वो कारण है कलुषित मानस धो जाता है,
क्षरित क्रोध होने से ‘नाथ’ पावस अन्तस्तल हो जाता है।
क्रोध पतन है ज्ञात सभी को फिर यह क्यों हो जाता है।8।