धारित जीवन मिलकर शरीर से नवलक्ष्य लाता है। 
पशु एवम् वृक्ष शरीर से लक्ष्य दूभर हो जाता है।
जीवन है जितना ज्ञात सम्पूर्ण चित्र नहीं आता है।
स्थल तुलना में जल का जीवन से गहरा नाता है।।
मानव तन ही ऐसा है लक्ष्य चिन्तन से  आता है।
चिन्तन,मनन,निदिध्यासन मानो जग का त्राता है।
धर्म नहीं अधर्म ही है वह जो झगड़ा ले आता है।
मानव दानव हो जाता है गर विवेक मर जाता है।।
जीवन में सारा दिशाबोध जोश होश से आता है।
अर्थहीन और लक्ष्यहीन, पथ विभ्रम खो जाता है।
ना हो जीवन दिशा हीन, तो सुबोध जग जाता है।
मिटता अँधेरा तामसी सात्विक उजाला आता है।।
जीवनपथ में कटु, मृदु, दुःख, सुख सब आता है।
कोई कहे इसे नाटक कोई शतरंज कह जाता है।
कोई निराशा, हताशा कह, इसमें खोता जाता है।
कोई आशा जिज्ञासा में आनन्द खुशी को पाता है।।
कहे पहेली कोई, चौसर पासे तुलना ले आता है।
कोई इसको मृग तृष्णा कह माया जाल गाता है।
वादविवाद व विश्लेषण सच इसका जग नाता है।
लेकिन तन जीवन खो कर, अर्थ हीन हो जाता है।।
धनधन चिल्लाने वालों का भी निधन हो जाता है।
जीवन साधन भर है जो लक्ष्य रखो सध जाता है।
गर भ्रमित लक्ष्य है नाथ जीवन व्यर्थ हो जाता है।
कार्मिक लेखा से, जीवनपथ मुक्ति तक जाता है।।

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