मेरी उम्र के साथी सब
वर्षा आँधी अन्धड़ तब
छिप कर बैठे हैं घर में
करते थे मनमानी सब।
राजा, मन्त्री, रानी सब
डिब्बे के अन्दर हैं सब
रस बचा नहीं खेलों में
लगता बुड्ढे हो गए सब।
खेल खिलाड़ी लाठी सब
कहाँ गए वो साथी सब
बस बैठे हैं कई शहरों में
अपने सपने किस्से अब।
वो दंगल पुट्ठे माटी सब
गेंदें, कन्चे, गिल्ली सब
सब चित्र बसे हैं नेत्रों में
कहाँ गई कहानी सब।
सुबह शाम सुहानी तब
यादों में आती जब तब
नहीं मिले नाथ वर्षों में
यादों के बादल हैं अब।