मैं हूँ एक आचार्य देश का

सीधे मन से बोल रहा हूँ।।

आचार्यों की स्थिति क्या है

राज सिरे से खोल रहा हूँ

बात पुरातन की अब क्या है

नए सिरे से सोच रहा हूँ ।1 ।

आज़ादी के काल से सोचो

मैं बिन भाव बिन मोल रहा हूँ

नेताओं इस देश के सोचो

आश्वासन कबसे तौल रहा हूँ ।2 ।

तुमने पाली सारी समस्या

मैं समाधान का घोल रहा हूँ

तुमने भ्रम में डाली तपस्या

मैं बस मारग खोज रहा हूँ ।3।

तुम सारे झगड़े की जड़ हो

मैं बस मट्ठा घोल रहा हूँ

तुम साधन के भारी गढ़ हो

मैं टकरा सर फोड़ रहा हूँ ।4।

तुमने केवल अपनी सोची

मैं दुनियाँ की सोच रहा हूँ

तुमने चमकाई निज कोठी

मैं झोंपड़ सिर मौर रहा हूँ ।5।

शिक्षा मद में खर्च न करते

मैं जन आशा ढोल रहा हूँ

तुम भौतिकता में रत रहते

मैं आदर्शवादी खोल रहा हूँ ।6।

अस्तित्व हमारा सङ्कट में है

सिंहासन कहता सोच रहा हूँ

जीवन रथ अब कण्टक में है

वे कहें सोच के बोल रहा हूँ ।7।  

तुम लक्ष्मी पूजा में रत हो

मैं चिथड़ों को ओढ़ रहा हूँ

न शिक्षा पर शासन कवच है

मैं असहाय सा डोल रहा हूँ ।8।

शिक्षा को बौना कर दोगे

मन की गाँठे खोल रहा हूँ

ना सोचोगे मिट जाओगे

चाणक्य चोटी खोल रहा हूँ ।9।

खुद को नीति नियन्ता कहते

आशय इसका खोज रहा हूँ

तुम अनीति में डूबे रहते

‘नाथ’ मूल्य मैं खोज रहा हूँ ।10।

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