हे कर्म वीरों नमन है तुमको
उजाला लेकर घर आ रहे हो
हमें पता है बहुत कष्ट में हो
मुख पर स्मितभाव ला रहे हो ।
सारा जहाँ तुमसे ही है रोशन
तुम्हीं तो श्रमकण गिरा रहे हो
हम जानते हैं, तुम तप रहे हो
तप स्वर्ण आभा सी ला रहे हो ।
हे श्रम वीरों नमन है श्रम को
श्रम से ही आभा फैला रहे हो
चला कर चक्के उद्योगों के
जीवन को सुन्दर बना रहे हो ।
वर्षा, जाड़े, धूप में डट कर
मेहनत का रंग दिखा रहे हो
अपने सपने छोड़ कर सारे
आगत के सपने सजा रहे हो ।
जिन्दादिली के तुम रहबर हो
सबक मेहनत का सिखा रहे हो
खून, पसीने से सींच के भू को
प्रगति के पथ पर ले जा रहे हो।
मुहब्बत के हो सच्चे मसीहा
पैग़ाम यह ही, फैला रहे हो
उठी जो मानस में हैं दीवारें
सभी को तुम ही ढहा रहे हो।