अब नागपञ्चमी आई है
नागों को दूध पिलाते हैं
शब्दों पर ही मत जाओ
भावों का राग सुनाते हैं ।।
ये सावन की अंगड़ाई है
शिव का साज सजाते हैं
बेबात मत बाहर जाओ
मानस के भाव जगाते हैं ।।
बारिश की बूँदें आईं हैं
घनी घटा को बुलाते हैं
इन बूँदों पर मत जाओ
घनघोर बारिश लाते हैं ।।
बहना की राखी आई है
भावों में भीग के गाते हैं
कीमत पर यूँ मत जाओ
ये पावन भाव जगाते हैं।।
पावस पर्व ऋतु आई है
सब ही तो इन्हें मनाते हैं
अरे कहीं पर मत जाओ
हर वर्ष तो आते जाते हैं।।
ये साल कोरोना लाई है
आऐं इसको निपटाते हैं
चीनी शै पर मत जाओ
ये त्रासद गीत सुनाते हैं।।
अब नागपञ्चमी आई है
नागों को दूध पिलाते हैं….