पितृ पक्ष, सद्भाव ठहरे हैं,
स्मृति मनस भाव गहरे हैं।
श्रद्धा के कितने चेहरे हैं,
उनमें से कुछ हमें घेरे हैं,
पितृ पक्ष श्रद्धा का घर है,
बाकी सब इनके फेरे हैं।
पितृ पक्ष, सद्भाव ठहरे हैं,
स्मृति मनस भाव गहरे हैं।।
लोक में पहरे पर पहरे हैं,
श्रद्धा भाव शान्त ठहरे हैं,
भारत को श्रद्धा का वर है,
दिव्य पुरुष हमको घेरे हैं।
पितृ पक्ष, सद्भाव ठहरे हैं,
स्मृति मनस भाव गहरे हैं।।
तर्पित जल, पितृ ठहरे हैं,
आस्था के मनस पहरे हैं,
श्रद्धा से मानस पूर्णतर है,
संरक्षाहित प्रबुध्द ठहरे हैं।
पितृ पक्ष, सद्भाव ठहरे हैं,
स्मृति मनस भाव गहरे हैं।।
आनन्द मय मन लहरें हैं,
कर्म काण्डों हेतु पहरे हैं,
मानसपूजा सर्व श्रेष्टतर है,
सामाजिक संघात गहरे हैं।
पितृ पक्ष, सद्भाव ठहरे हैं,
स्मृति मनस भाव गहरे हैं ।।