करो ये खाई मत चौड़ी, सभी उस प्रभु के जाए हैं।
बनाया है तुमको जिसने उस प्रभु ने हम बनाए हैं।
तुम्हारा और मेरा सूरज घर क्या अलग से आता है।
सँभल करके चलो यारो यह अन्तर खुद के जाए हैं।
चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।1।
जितने भी झगड़े जहाँ के हैं वो सब हमने कराए हैं।
धरम की गलत व्याख्या से वह निकल कर आये हैं।
इस तन का तेज हो या खूँ, सभी समता दिखाता है।
बताओ ये फिर कहें कैसे, कि अन्तर प्रभु बनाए हैं।
चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।2।
करें हैं जो करम हम ने, सब फल वैसे ही आये हैं।
गर बबूल बोये हमने फिर आम की क्यों इच्छाएं हैं।
जो तुम सब को जगाता है, वही हम को जगाता है।
तुम और हममें अन्तर क्या ये भ्रम किसने बनाए हैं।
चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।3।
सब पुष्प पौधे और ये जीव, सभी चेतनता लाये हैं।
कहीं हैं वल्लरी फूलीं कहीं अजब पेड़ों के साये हैं।
प्रकृति का हर एक मौसम सुनो समता सिखाता है।
दुःख में हैं सब दुःखी होते, खुशी में सब हरषाये हैं।
चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।4।
चाहे पशु हो या फिर पक्षी सभी प्रकृति के जाए हैं।
प्रेम सबको सुखद लगता फिर भी घृणा के साए हैं।
जो हम सब को श्वासें देता, वही सबको जिलाता है।
फिर चेतन,चेतन में अन्तर क्यों, क्यों ये वर्जनाएं हैं।
चलो सोचो सँभलो फिरसे शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।5।
शरीर के सारे पुर्जों की, समझो एक सी ऊर्जाएं हैं।
जो अन्तर हैं मूल्यों के, नव सोच की नव विमाएँ हैं।
चलो अन्तर मिटाते हैं जागो अब नव तेज आता है।
‘नाथ’ सबसे ही यह कहता, प्रगति शुभकामनाएं हैं।
चलो सोचो सँभलो फिर से शुभ मङ्गल कामनाएं हैं।6।