जब गम्भीरता पर विचार करते हैं तब कई शब्द मानस से टकराते हैं जिन्हे इसके आशय के आसपास स्वीकारा जाता है। जैसे अचञ्चलता, गम्भीर होने का भाव, गहनता, गाम्भीर्य, उदात्तता, गहराई, चिन्तनशीलता, सोच विचार का भाव, सन्जीदगी, स्थिरचित्त, स्थिर मनस्कता, उद्वेगहीनता, शान्त चित्तता, अचपलता आदि आंग्ल भाषा के भी कुछ शब्द जेहन में आते हैं जैसे Grimness, Sobriety, Solemnity, Seriousness आदि।

लेकिन सारे शब्दों पर उदारता पूर्ण विचार करने और वाक्यों में प्रयोग करने पर यह स्पष्ट भान होता है कि कोई शब्द दूसरे का वास्तविक पर्याय नहीं हो सकता।

गम्भीरता से आशय (Seriously intended)

      आज गम्भीरता  स्वविवेक बुद्धि  के अनुसार विविध तरीके से व्याख्यायित किया जाता है एक व्यक्ति अपने जीवन काल के अलग अलग खण्डों में इसका अलग अलग अर्थ व्याख्यायित करता है।

    यहां मेरे द्वारा भी अपने बुद्धि विवेक द्वारा इसे जैसा समझा है देने का प्रयास है आपका मत भिन्न हो सकता है उसे आप कमेण्ट में देकर दिशाबोध करा सकते हैं। हम मानते हैं कि ज्ञान अनन्तिम होता है।

साधारणतः कम बोलने वाला, शान्त चित्त, उच्च विवेक स्थिति के कारण सुख दुःख में समभाव रखने वाला अन्तर्मुखी व्यक्ति गम्भीर की श्रेणी में आता है और यही गुण गम्भीरता कहलाता है।

यह स्थिर प्रज्ञता के अधिक निकट है गम्भीरता में हमारा समर्पण श्रेष्ठ ज्ञान के प्रति है श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 54 वें  श्लोक में अर्जुन का प्रश्न और  55  वें में केशव के समाधान से हम अर्थ के नज़दीक पहुँचते हैं। अर्जुन कहते हैं –

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव |

स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥54

हे  केशव! समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिरबुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है? वह स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है, कैसे बैठता है और कैसे चलता है?

भगवन कहते हैं –

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् |

आत्मन्येवात्मना तुष्ट: स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 55||

हे अर्जुन, जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भली भाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही सन्तुष्ट रहता है उस काल में वह स्थिरप्रज्ञ कहा जाता है।

व्यक्ति स्व स्वरुप में स्थिर रहकर स्वाभाविक गाम्भीर्य प्राप्त करता है। अष्टावक्र गीता के ग्यारहवें प्रकरण में अष्टावक्र जी कहते हैं –

यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बन्धनं तदा।

मत्वेति हेलया किञ्चित् मा गृहाण विमु़ञ्च मा ।।8.4

जब तुच्छ पदार्थों से संयुक्त अहंकार नहीं रहता, तभी मुक्ति होती है और बन्धन तब होता है जब तुच्छ अहंकार मन में विकास करे ऐसा मानकर अपनी इच्छा से न कुछ ग्रहण करो और न ही कुछ छोड़ो।

अतः यह स्पष्ट भान होता है कि गम्भीरता श्रेष्ठ ज्ञान लब्धि के बाद का स्वाभाविक स्वभाव है यह कहाँ, कब, किससे कितना विनिमय व क्या यथोचित  करना है का संज्ञान कराता है। चिन्तनशीलता को समाधान तक पहुँचाता है।

गम्भीरता क्या नहीं है ? (What is not seriousness?)

वर्तमान में कठिन प्रतिस्पर्धा व अस्तित्व रक्षा प्रबल आवश्यक कर्मक्षेत्र बनकर उभरे हैं और इस क्रम में मूल्य ह्रास के भी नए प्रतिमान गढ़े गए हैं और गम्भीरता के सम्बन्ध में कुछ मिथ्या धारणाएं बनी हैं। असल में निम्न परिक्षेत्र गम्भीरता नहीं स्वीकारे जाएंगे।

1 – अज्ञान के कारण शान्त स्थिति गम्भीरता नहीं है।

2 – समस्या से भागकर निष्क्रिय होना गम्भीरता नहीं है।

3 – रूढ़ता गम्भीरता नहीं है।

4 – मौन को प्रत्येक प्रश्न का समाधान मानना गम्भीरता नहीं है।

5 – प्रभावी क्रोध व दुराग्रह गम्भीरता नहीं है।

6 – समभाव से विरक्ति गम्भीरता नहीं है।

7 – स्वाभाविक उथलापन गम्भीरता नहीं है।

8 – प्रदर्शनकारी चिन्तनशीलता गम्भीरता नहीं है।

वस्तुतः बहुत सी भ्रान्तियाँ दिग्भ्रमित कर हमें गम्भीरता का वाह्य मुखौटा दिखाती हैं। हमें सजगता से सार्थक गाम्भीर्य का अवलोकन करना होगा।

 गम्भीरता के आधारभूत तत्व (fundamentals of seriousness) –

स्वभाव में गम्भीरता स्वतः आ जाती है किसी के कहने से नहीं स्व में डूबने से, मैं केवल शरीर नहीं के भाव से और हमारे चिन्तन की तीव्रता हमें कब गम्भीर कर देती है पता भी नहीं चलता। हमसे पहले अन्य को इसका अहसास पहले होता है। कुछ कारक भी इसके लिए उत्तरदाई हैं यथा –

1 – यथार्थ स्थिति परिस्थिति

2 – क्षमता आधारित

3 – अद्यतन अर्जित ज्ञान से प्रभावित

4 – विवेक व विश्लेषण शक्ति आधारित

5 – अनुभव आश्रित

गम्भीरता के लाभ (Benefits of seriousness) –

व्यवहार के गम्भीर होने पर स्वतः कुछ लाभ होने लगते हैं यथा

1 – ऊर्जा का समुचित प्रयोग

2 – भटकाव पर नियन्त्रण

3 – दिशाबोध जागृति में अहम्

4 – अनुभूति जागरण

5 – सम्यक ज्ञान प्राप्ति में सहयोगी

यहाँ यह कहना सामयिक होगा की हमारे पास गाम्म्भीर्य युक्त पूर्वजों की एक लम्बी श्रृंखला है विदेह जनक, याज्ञवल्क्य, प्रसिद्द विद्वान् की विदुषी धर्मपत्नी भारती, विद्योत्तमा, प्रभु श्री राम, युधिष्ठर, केशव, कर्ण, महर्षि पाणिनि और वर्तमान उद्यमी,वैज्ञानिक, चिन्तक आदि।

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