सितम अपने अन्धड़ का अजमाइएगा,

वादा  खिलाफी  सिल-सिला  पाइएगा।

वो अरमाँ, वो वादे, रुठाए जो तुमने,

हर जगह बस वही सिसकियाँ पाइयेगा।

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।1।

अब खुशियों के वन में धुआँ पाइएगा,

निशाँ जिन्दा होने का,  ना  पाइएगा।

समय के वो हिस्से जिए थे जो हमने,

चन्द वादों में गुम हिचकियाँ पाइयेगा।

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।2।

बहारों  का जंगल न हरा पाइएगा,

वहाँ केवल बस वीरानियाँ पाइएगा।

जहाँ चन्द खुशियाँ टहलती थीं उनमें,

निशाँ अपने कदमों के देख आइएगा,

 अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।3।

इक – दूजे के दाने तो मत खाइएगा,

रौंद कर सब तमन्ना न मुस्काइएगा।

रुदन सिसकियाँ जो प्रगट की हैं तुमने,

उनमें न कभी कोई कमी पाइयेगा।

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।4।

कसम है तुम्हें न कफ़न लाइएगा,

करनी का फल बस देख आइएगा।

फसल स्वार्थ की जो उपजाई मन में,

उपजे तीक्ष्ण कण्टक सहम जाइएगा।   

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।5।

चन्द हसरत जरूरत कुचल जाइएगा,

दुआ है हमारी, बस दुआ पाइएगा।

थोड़ी श्वासें औ सपने चुराए जो तुमने,

सजा उनकी तुम न कभी पाइयेगा।    

अजी चोट देकर कहाँ जाइएगा,

जख्म जो दिए हैं हरे पाइएगा ।6।

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