झूठ बोलना पाप लिखा है, बाबूजी
सब कुछ अपने -आप लिखा है बाबूजी
देख के बदमाशी, इस सभ्य समाज की
अपने भाग्य में जाप लिखा है, बाबूजी
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।1।
दुष्टों का सत्यानाश लिखा है, बाबूजी
पैसे में छिपा वो पाप लिखा है बाबूजी।
देख समझ मक्कारी उच्च समाज की,
जीवन को अभिशाप लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।2।
ईमानदारी में दाग लिखा है बाबूजी,
जाल जाल में जाल लिखा है बाबूजी।
देख घटिया निर्माण चाल सरकार की,
नेता को माई बाप लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।3।
नदी किनारे साँप लिखा है बाबूजी,
रेता रात में साफ़ लिखा है बाबूजी।
देख समझ ताक़त इन ठेकेदारों की,
उनका कर्जा माफ़ लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।4।
उनका पुण्य प्रताप लिखा है बाबूजी,
श्रम और मजदूरी ख़ाक लिखा है बाबूजी।
श्रम कणो में हिस्सेदारी नाथ बेईमान की,
पूँजी पति का प्रबल प्रताप लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।
सोलह दूनी आठ लिखा है बाबूजी।5।