कल के चक्कर में हम, आज क्यों गँवाते हैं,
जो भी हमें अच्छा लगे चलो राधेराधे गाते हैं,
दुनिया उत्थान को ही,साध्य गर हम पाते हैं,
तो हम नव दधीचि हैं चलो हड्डियाँ गलाते हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः का राग फिर से गाते हैं,
अपनी हड्डियों से इक अमोघ वज्र बनाते हैं,
वृत्तासुर भुवन बीच विस्तार करता जाता है,
अतः नवदधीचियों संग्राम बड़ा हो जाता है।
घने अँधेरे में, अलमस्त सुबह लिखनी होगी,
जो अब तक ना हुई वही पहल करनी होगी,
देखो मत कालिमा कब तक ये यूँ फैलाएगा,
हुँकारभरो औ वारकरो निश्चित मारा जाएगा।
आगेबढ़ने हेतु अब मौलिक चिन्तन लाते हैं,
अपना दीपकबाती औअपना तेल जलाते हैं,
छोड़ द्वेष भावना भारत जय में लग जाते हैं,
देशविरोधी तत्वों को मिलकर मारभगाते हैं।
अधिकारछोड़ कर्त्तव्यओढ़आगे को बढ़ते हैं,
स्वार्थ,कामना,लोभ छोड़ सत्कर्मों पे डटते हैं,
श्रम का संयुक्त रूप ही नया उजाला लाएगा,
कर्म जब स्वधर्म बनेगा नवसूरज उग जाएगा।
सुन लो, भारत वासी देर करी अन्धेर मिलेगा,
तन-मन भारत पर वारोगे, तो उद्धार मिलेगा,
जाति-पाँति के बन्धन तोड़ो विकास तय होगा,
सनातनीउन्नयन से जग में भारत वन्दन होगा।