मानव स्वयम को जगत का सर्वोत्कृष्ट प्राणी मानता है। विभिन्न सन्त,महन्त,धर्म गुरु इस खिताब को मानव के पक्ष में रख कर श्रेष्ठ तन के रूप में व्याख्यायित करते हैं लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य के जघन्यतम अपराध यही मानव तो कर रहा है ऐसी स्थिति में कुछ महत्वपूर्ण सवाल चिन्तन को झकझोरते हैं प्रस्तुत प्रारम्भिक चार पंक्तियों में जो सवाल मानसिक द्वन्द ने खड़े किये शेष पंक्तियों में भारतीय परिवेश में समाधान देने का प्रयास है,रखता हूँ आपके पावसआँगन में:-