कैसा है ये काल चक्र ये कैसा खेल दिखाता है
कितनी भी करें व्यवस्था चक्रव्यूह बन जाता है
शिक्षार्थी को शिक्षा दें ,वह सब ऐसा संघर्ष करें
चक्रव्यूह का भेदन हो अंतिम द्वार पर नहीं मरें।1।
स्वदेश उन्नति की खातिर सैनिक जान गंवाता है
वो शहीद हो जाता है क्या हमसे कुछ हो पाता है
खुद को यूँ तैयार करें कि हम नहीं शर्म से मरें
आन हित सब जूझें सैनिक सा कर्त्तव्य करें ।2।
ज़रा हम अपने से पूछें क्या हमसे निभ पाता है।
देश प्रेम के जज्बे संग व्यवस्थापन बन पाता है।
इस देश प्रेम के हित में उन सब में जज्बात भरें।
देश से हम सब प्यार करें और दायित्व निर्वाह करें ।3।
आचार्य अस्तित्व रक्षण शासन समझ ना पाता है।
मूल्य सम्वर्धन का दायित्व आचार्यों पर आता है।
देश निज दायित्व मान शिक्षक को मज़बूत करे।
गुरु भी अस्तित्व की न सोचे नीति में सहयोग करे ।4।
हम सब की रक्षा में रक्षक क्यों कर मर जाता है।
क्या हमको जन की खातिर मरना नहीं आता है।
आओ आचार्यों राष्ट्र में तैयार अनोखी नस्ल करें।
कोई करे बलिदान तो प्रथम वरण हम मृत्यु करें ।5।
मृत्युवरण गर नहीं करे तो इतना कर सकता है।
आचार्य देशप्रेमियों की पौध खड़ी कर सकता है
चाणक्य को हम याद करें भारत का उत्कर्ष करें।
इस उत्कर्ष की खातिर, ‘नाथ’ सभी संघर्ष करें ।6।