अजब अजब रंग लगाने लगे हैं लोग,
एक रंग पर कई रंग चढाने लगे हैं लोग।
प्रेम औ सद्भाव के खो गए हैं बहु रंग,
फ़रेब औ झूठ के रंग दिखाने लगे हैं लोग।
मानस को छोड़ तन को रँगने लगे हैं लोग,
अपनी ही मस्तियों में रमने लगे हैं लोग।
यूँ तो जमाने ने बिखेरे हैं कई रंग,
रंग मतलब के अपने अपने चुनने लगे हैं लोग।
जेबों में कई रंग ले चलने लगे हैं लोग,
फाग में बिरहा का रंग भरने लगे हैं लोग।
मेहनत औ ईमान के खो गए कई रंग,
रंग आलस और प्रमाद का भरने लगे हैं लोग।
जीवन में नया जीवन लाने लगे हैं लोग ,
सुना है नगरों में मुस्कराने लगे हैं लोग।
संस्कार ,प्रेम ,एकता के मिल गए जब रंग,
खुशियों के रंग पाकर इठलाने लगे हैं लोग।