अध बुना था स्वपन अधबना रह गया
सिलसिला जो रुका, तो रुका रह गया।
वक़्त ने तंग दिल चाल कुछ ऐसी चली
जो रुका जिस जगह वह वहीं रह गया।
मैंने चलने की पुर जोर कोशिश करी
क्या करूँ पीछे पर काफिला रह गया।
आँधिया यादों की क्यों कर भारी पड़ीं
तब मैं ज्यों बुत बना त्यों बना रह गया।
तेरी स्मृति में, अँखियाँ भी पथरा गयीं
जिस जगह पे पड़ा था अड़ा रह गया।
मेरे मन की तपन हर दम बढ़ने लगी
मेरा सबकुछ जला बस धुआँ रह गया।
मिलन की भावना, प्रणय सीढ़ी चढ़ीं
तन तो, सारा जला पर मनस रह गया।
बेरुखी ने, सितम का शिखर छू लिया
नाथ जड़वत खड़ा था, खड़ा रहगया।