लगता है मुकद्दर सिर ओढ़ कर सो गया,
तक़दीर की चाभी गिर गयी, वो रो गया।
बारबार असफल हो मन उदास हो गया,
हारा जब हिम्मत, घोर अवसाद हो गया।
जब मेरे जानिब सघन अन्धकार हो गया,
कौन अपना है, इसका अहसास हो गया,
जब मेरे हर सिम्त प्यारा उजाला हो गया,
किसने किया उजाला कोई माँ कह गया।
संघर्ष,लगन,हिम्मत द्वारा प्रकाश हो गया,
भाग्यफल, मुकद्दर से बड़ा, कर्म हो गया।
सफलता का अम्बार, सुखद अश्रु दे गया,
कुछ ऐसा हुआ गज़ब समस्त गम ले गया।
संघर्षों का ताना बाना इक रास्ता दे गया,
तू नहीं खुद के लिए यह इशारा कर गया।
जाते जाते कर्म क्षेत्र, वृहताकार कर गया,
अपने उन्नत सपनों को साकार कर गया।
जो एक बुलबुला था, वो हनुमान हो गया,
प्राकृतिक सशक्ति का, अनुमान हो गया।
ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का, परम ज्ञान हो गया,
मानो आत्मा परमात्मा, प्रतिमान हो गया।
क्या है असली जिन्दगी यह भान हो गया,
परमपिता से सम्बन्धों का संज्ञान हो गया।
सच्ची हवन समिधा की,पहिचान हो गया,
अध्यात्म की महत्ता का सद्ग्यान हो गया।
नव वर्ष में नव- आशा का सञ्चार हो गया,
आशाजनित विश्वास से अवसाद खो गया।
रात का होता प्रभात, आत्मबल कह गया,
आत्महीनता दुष्प्रभाव, जीवट से खो गया।