आज
सावन के समय में नयन छलके
लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है।
बचपने में साथ रहकर साथ पढ़ते
यादों की बारात फिर से आ गई है।
उस समय हमसब बहुत मदमस्त रहते
वह याद धुँधली सी जेहन पर छा गई है।
आज सावन के समय में नयन छलके
लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।1।
याद है तुमको कि हम आपस में लड़ते
लड़ झगड़ कर मिलन बेला आ गई है।
मिलन बिछुड़न बन गया है ताप सहते
बन तपन जलवाष्प बारिश आ गयी है।
आज सावन के समय में नयन छलके
लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।2।
मौसमों की मार को चुपचाप सहते,
याद गुजरे मौसमों की आ गई है।
खेल बचपन में जो खेले गिरते पड़ते
उन सभी की याद क्यूँ कर आ गई है।
आज सावन के समय में नयन छलके
लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।3।
गरमियों के मौसमों में लू को सहते
उन दिनों की याद भी पथरा गई है।
आज बारिश देखकर फिर याद बन के
कोई बदली जिस्म जाँ पर छा गई है।
आज सावन के समय में नयन छलके
लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।4।
बचपने में, साथ में जब पेंग भरते
झूले, चितवन यादें फिर से छा गई हैं।
गात पर बिन रंग के जो रंग दिखते
वही रंगत अब असर दिखला गई है।
आज सावन के समय में नयन छलके
लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।5।
आज अरसा हो गया बादल को बनते
याद की सिहरन नयन बरसा गई है।
जिन्दगी की शाम में ये क्या हैं लखते
क्यों तुम्हारी याद फिर से भा गई है ?
आज सावन के समय में नयन छलके
लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।6।
काश हरियाली में तुम ये देख सकते
अब बिखरी जुल्फों में सफेदी आ गई है।
फिर भी रहे हैं हम तुम्हे ख़्वाबों में तकते
प्यास जन्मों की लबों पर आ गई है।
आज सावन के समय में नयन छलके
लो तुम्हारी याद फिर से आ गई है ।7।