हड़बड़ा कर उठ गया था स्वप्न ने क्या रंग दिखाए
जो भी मानस पटल पर थे दृश्य सुन्दर मन रिझाए
कल्पना संजोए उड़ रहा था चित्र बन पाया न पूरा
मनन है अब भी अधूरा, मनन है अब भी अधूरा ।1।
योग की शाला लगी थी शृद्धा तन – मन में भरी थी
पूर्ण सारी हो रही थी, मन में मधुर आशा लगी थी
आशा नहीं वो लालसा थी ज्यों बेल पत्री संग धतूरा
मनन है अब भी अधूरा, मनन है अब भी अधूरा ।2।
यज्ञपूजन चल रहा था यजमान भी सब हवन में थे
मन्त्रोच्चारण हो रहा था पर भाव यूँ ही अनमने थे
मानव सबसे श्रेष्ठ रचना पर ध्यान हो पाया न पूरा
मनन है अब भी अधूरा, मनन है अब भी अधूरा ।3।
यम नियम का भान भी था, ज्ञान का संज्ञान भी था
आसन व प्राणायाम भी था समाधि इन्तजाम भी था
लेकिन फिरभी दिख रहा था धारणा कारज अधूरा
मनन है अब भी अधूरा, मनन है अब भी अधूरा ।4।
ज्वार जैसा उठ रहा था सद् भावनाएं भी प्रबल थीं
समन्दर पूरे उरोज पर था घनघटाएं उमड़ रहीं थीं
चला पूरे जोश में था पर आत्म विश्वास संग फितूरा
मनन है अब भी अधूरा, मनन है अब भी अधूरा ।5।
तन प्रयाण कर रहा था तब साथी सम्बन्धी भी आये
लोक कार्य सब कर चला था मोक्ष के सपने न आए
मृदङ्ग, ढोलक बज रहा था ‘ नाथ ‘ संग था तानपूरा
मनन है अब भी अधूरा, मनन है अब भी अधूरा ।6।