अब यमराज विविध रूप में आते हैं,
नएनए रूप रंग महफ़िल में भाते हैं,
वैधानिक चेतावनी हँसी में उड़ाते हैं,
सामान वे मौत का किश्तों में लाते हैं।1
कभी जड़ कभी चेतन रूप में आते हैं,
ये दोनों ही, सक्रिय भूमिका निभाते हैं,
इन्हें लेने में प्रबुद्धजन भी न लजाते हैं,
गलत के समर्थन में नए बहाने लाते हैं।2
खाद्य व अखाद्य के, भ्रमजाल में आते हैं,
घातक खा अन्ततः अस्पताल में जाते हैं,
ये विविध – रोग नई पीढ़ी में लगाते हैं,
ये समस्त अन्ततः रागिनी रोग गाते हैं ।3
विरुद आहार भी ना समझ में आते हैं,
बिना सोचे समझे ये सब पेट में जाते हैं,
अतिथि को भी यही भोग हम लगाते हैं,
साथ साथ अतिथि देवो भव भी गाते हैं ।4
कथनी – करनी अन्तर नजर में आते हैं,
फलतः नज़रें अपनी रसातल में पाते हैं,
एवम भारतीय मूल्यों को हम गिराते हैं,
धूम्रपान जनहित में हम समझ न पाते हैं।5
सुरा को निगल हम मति भ्रम में आते हैं,
मति भ्रम से विविध पाप कर्म में जाते हैं,
विविध त्रास ,रोगों को हम गले लगाते हैं,
कौन, किसको पी गया समझ न पाते हैं ।6
अब यमराज विविध रूपों में आते हैं