बचपन, जवानी, बुढ़ापे का एक क्रम है और ये इस क्रम में ही आता है लेकिन हमारी जीवन शैली बुढ़ापे को शीघ्र निमंत्रण दे हमें निष्क्रिय कर रही है जबकि थोड़ा सा सचेत रहकर न हम बुढ़ापे को पीछे धकेल सकते हैं बल्कि बुढ़ापे में भी जवानों जैसे सक्रिय रह सकते हैं। आइये इसके कारण,निवारण पर विचार करते हैं।
1 – जल का सेवन –
जल का यथोचित सेवन होना चाहिए कुछ लोग कम सेवन करते हैं और इसके नुकसान शीघ्र परिलक्षित होने लगते हैं जो कब्ज,किडनी समस्या,ऊर्जा स्तर में कमी ,त्वचा का रुखापन,सिर दर्द आदि के रूप में सामने आता है। जब की अधिक जल का सेवन किडनी का कार्य भार बढ़ा देता है वात, पित्त, कफ के असन्तुलन का भी यह प्रमुख कारण है अधिक पानी के नुकसान बुढ़ापे को करीब लाने में मदद करते हैं।
अतः ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ को ध्यान में रखकर शरीर की मांग के अनुरूप पानी पीना चाहिए। जल घूँट घूँट कर बैठकर ही पीना चाहिए उकड़ूँ बैठकर पीएं तो सबसे अच्छा। फ्रिज के अधिक ठन्डे पानी से बचें। सदा सामान्य ताप युक्त जल का सेवन करें। पानी की स्वच्छता का ध्यान रखा जाए। कहीं का भी पानी न पीने लगें अच्छा होगा अपने साथ स्वच्छ जल रखें। दिन के पूर्वार्ध में अधिक और उत्तरार्ध में अपेक्षाकृत कम जल का सेवन करें।
2 – निद्रा –
संयमित निद्रा शरीर को व्यवस्थित रखने का एक उपक्रम है। आज लोगों को सोने का कार्यक्रम दुष्प्रभावित हुआ है कुछ लोग रात्रि में जागरण करते हैं और दिन में सोते हैं या देर तक सोते रहते हैं। कुछ दिन और रात दोनों में सोने की आदत विकसित कर लेते हैं रात्रि जागरण सम्पूर्ण दिनचर्या बिगाड़ बुढ़ापे को जल्दी बुलाने में मदद करता है,शरीर हर समय थका थका महसूस करता है।
हमारा शरीर रात्रि विश्राम व सूर्योदय के साथ जागृत रहकर कार्य करने में सुगमता महसूस करता है,जल्दी सोना और जल्दी जागना कई रोगों का उपचार है। इसीलिये सुबह को अमृत बेला गया है। त्वचा की चमक या आज वृद्धि का इससे सीधा सम्बन्ध है।
3 – गरिष्ठ भोजन व अधिक नमक –
गरिष्ठ व अधिक नमक वाला भोजन सीधा झुर्रियों को निमन्त्रण पत्र है,नमक की अधिक मात्रा कोशिकाओं को शीघ्र बूढ़ा करती है जबकि नमक का कम सेवन कोशिकाओं की आयु में वृद्धि करता है। गरिष्ठ भोजन स्वाद में आपको अच्छा लग सकता है पर है वो धीमा जहर ही।एक तो गरिष्ठ और दूसरे काम चबाने से दाँतों का काम भी आँतों को करना पड़ता है जो कब्ज, अम्लता,उदर रोग, मोटापा, अजीर्ण को खुला आमन्त्रण देता है। आजकल जंकफूड और फास्ट फ़ूड ने सेहत का बेड़ा गर्क कर रखा है।शरीर को युवा और दीर्घकालिक क्रियाशील रखने के लिए सहज सुपाच्य व ताजा भोजन खूब चबा चबाकर करना चाहिए।
4 – व्यायाम –
व्यायाम, प्राणायाम, योगासन, खेलकूद, दंगल, दौड़ आदि वह साधन हैं जिससे शरीर मानसिक रूप से अधिक युवा रहने हेतु तैयार होता है। ब्रह्म मुहूर्त की जादुई हवा तनमन को स्फूर्तिवान रखती है। और इनका अभाव हमें बुढ़ापे की और तेजी से बढ़ाता है।
5 – प्रवाह अवरुद्धन –
हमें मल, मूत्र के आवेग को बल पूर्वक नहीं रोकना चाहिए। शरीर पर अनावश्यक दवाब रखना उचित नहीं। छींक आदि के समय सामान्य ही रहना चाहिए।प्राकृतिक आवेग को रोकने से किडनी व आँतों पर अनावश्यक दवाब पड़ता है। और सम्पूर्ण शरीर इस व्याधि के नुक्सान झेलता है।
6 – नशा –
सबको पता है होश में रहना परमावश्यक है लेकिन होश खोने वालों की कतार भी छोटी नहीं है। पता नहीं क्यों लोग नशा करते हैं व अपनी जिन्दगी को छोटा और रोग ग्रस्त कर लेते हैं और जवानी में बुढ़ापे का शिकार हो जाते हैं। हमारा सारा चयापचय बिगड़ जाता है। प्रतिरक्षा तन्त्र ध्वस्त हो जाता है अपने साथ परिवार को गर्त में जाता देख नशेड़ी अवसादग्रस्त हो जाता है मस्तिष्क सोचने समझने की शक्ति खो तेजी से बुढ़ापे की और अग्रसर होता है।
प्रारम्भ से ही सचेत रहें, किसी के नशा करने के आमन्त्रण को सिरे से ठुकरा दें नहीं तो वही बात हो जाएगी मौत आई तो नहीं पर घर तो देख गयी। चिन्ता,परेशानी, समस्या प्रत्येक के जीवन में आती है सम्यक विमर्श करें स्वास्थ्य वर्धक चीजों का सेवन करें। सत्सङ्ग करें कुसंग से बचें। नशा किसी भी रूप में शरीर में प्रवेश न करे हमारा शरीर खुद इसको व्यवस्थित रखने का प्रयास करता है। श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय में कितना सुन्दर मार्ग सुझाया है –
युक्ताहार-विहारस्य युक्त-चेष्टस्य कर्मसु
युक्त-स्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःख-हा ॥ १७ ॥
7 – प्रदूषण –
जल, वायु, ध्वनि के अलावा तमाम अन्य प्रदूषण मानव के जीवन को शीघ्र बुढ़ापे की और खींच कर ख़तम कर रहे हैं जबकि इन पर अंकुश लगाना,परिशोधन करना हमें आता है। मास्क का प्रयोग कोरोना ने हमें सीखा दिया जो दोपहिया वाहन चलाते हुए हेलमेट जितना ही आवश्यक है। प्रदूषण से बचने के यथा शक्ति प्रयास हमें दीर्घकालिक युवा रख सकता है निर्मल जल, वायु, आकाश अपरिहार्य है किसी ने सचेत किया –
हमीं गर्क करते हैं जब अपना बेडा तो बतलाओ फिर नाखुदा क्या करेंगे
जिन्हें दर्दे दिल से ही फुर्सत नहीं है फिर वो दर्दे वतन की दवा के करेंगे।
सचेत रहें,हर संभव बचाव का प्रयास करें।
08 – बुढ़ापा दिमाग की खिड़की से आता है। –
मानव मन अद्भुत है और सर्वाधिक सशक्त हैं विचार ,पहले हमारे मन में किसी भी वस्तु,क्रिया,सिद्धान्त को वरण करने का विचार आता है तत्पश्चात हमारी चेष्ठा उसे हमसे सम्बद्ध कर देती है यहाँ तककि हमारे शरीर पर हमारी सोच का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है यदि हम सकारात्मक सोच के हामी हैं तो व्यक्तित्व पर उसका प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। हम अलग लोगों को अलग अलग मिजाज का देखते हैं यह स्वभाव मानव मन की तरंग दिशा से ही निर्धारित होता है कुछ लोगों को युवावस्था में बुढ़ापे का और कुछ वयो वृद्धों को वृद्ध होने पर भी युवावस्था का आनन्द लेते देखा जा सकता है।
गलत चिन्तन, कामुक चिन्तन, नकारात्मक चिन्तन वह कारक है जो हमें अन्दर से खोखला कर कहीं का नहीं छोड़ता। हम वीर्य,ओज, तेज, स्फूर्ति खो बुढ़ापे के दुष्चक्र में फँस जाते हैं। सकारात्मक सोचें जिन्दादिली को व्यक्तित्व का हिस्सा बनाएं। याद रखें –
‘जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं।’