परमात्म ने अनगढ़ पात्र में प्रेम रस उलीचा है,
पथ है यह कण्टकाकीर्ण या सुन्दर गलीचा है ?
प्रेमान्जलि है मातापिता की या सम्बन्ध रीता है?
जगत मध्य अवतीर्ण होना माया का पलीता है।
सम्बन्धों की परिणय बेल माया जनित थाती है,
बुद्धि को हमारी, मिथ्या संसार में उलझाती है,
जीवन है मृगतृष्णा अथवा वासनायुक्त पाती है?
जीवन सुख दुःख है पीड़ा है या मुक्ति बाती है ?
जीवन सुन्दर तनमन संगम या वैरागी साथी है?
गुच्छा है अभिलाषा का या फिर मुक्तिदात्री है ?
भौतिक आशा सञ्चय है या विरक्त सहयात्री है?
ये दलदल है जगती का या दिव्यात्म प्रजाती है?
कालचक्र परिभ्रमण हेतु जीवन नौका जाती है,
रहस्य है ये अनसुलझा कौन दिया को बाती है?
मिट्टी से बनती है काया मिट्टी में मिल जाती है,
काल की अवधारणा विचित्र जाल बिछवाती है।
जीवन धरण की मार्मिकताअबूझ हुई जाती है,
समाधान के विविधमार्ग दार्शनिकता बनाती है।
मृत्यु को तलाशना क्या जीवन की गहनरात्रि है?
या फिर जीवन में तलाशना ईष्ट अभी बाकी है?
जीवन विगत से आगत सम्बन्ध की परिपाटी है,
आशय की तलाश, प्रकृति पुरुष तक जाती है।
क्यों सरल जीवन यथार्थता समझ नहीं आती है?
जीवन सहज यात्रा है,परमात्मा से मिलवाती है।