प्रत्यक्षीकरण से आशय / Meaning of perception-
ज्ञानात्मक मानसिक क्रिया को प्रत्यक्षीकरण कहा जाता है इसके द्वारा ज्ञान चक्षुओं द्वारा किसी की भी उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है कुछ विचारक संवेदी उत्तेजना व परिणामी संवेदना के बीच प्रयुक्त चर को प्रत्यक्षीकरण स्वीकार करते हैं।
चैपलिन (19750) महोदय कहते हैं –
“Perception is an interviewing variable inferred from the organism’s ability to discriminate among stimuli.”
“प्रत्यक्षीकरण एक मध्यवर्ती चर है जिसका अनुमान उत्तेजनाओं के बीच प्राणी द्वारा भेदीकरण की योग्यता से होता है।”
वास्तव में प्रत्यक्षीकरण वह है जिसका इन्द्रियों द्वारा बोध होता है इसी से एक विशेष दृष्टिकोण का निर्माण या विकास होता है और हम कोई राय को बनाते हैं।
यह स्वीकार करना भी तर्क संगत होगा कि –
प्रत्यक्षीकरण = संवेदना + अर्थ + सोच + स्मृति
यह परिस्तिथि का अपरोक्ष बोध कराने वाली मानसिक प्रक्रिया है इसक अर्थ संवेदनाओं के व्याख्या करने से भी लिया जा सकता है।
सामाजिक प्रत्यक्षीकरण / SOCIAL PERCEPTION –
सामाजिक प्रत्यक्षीकरण के प्रत्यय का विकास समय 1940 स्वीकारा जाता है कुछ मनोवैज्ञानिक ऐसे भी हुए जिन्होंने व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण को ही सामाजिक प्रत्यक्षीकरण स्वीकार किया। हीडर (1958) महोदय ने कहा कि –
“We shall speak of thing perception as non social perception when we mean the perception of inanimate objects, and of person perception when we mean the perception of another person.”
“निर्जीव वस्तुओं के प्रत्यक्षीकरण को गैर सामाजिक प्रत्यक्षीकरण व व्यक्तियों के प्रत्यक्षीकरण को सामाजिक प्रत्यक्षीकरण कहते हैं।”
बैरोन व बिर्ने (1969) महोदय के अनुसार –
“Social perception is the process through which we seek to know and under land other persons.”
“सामाजिक प्रत्यक्षीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम दूसरे व्यक्ति को जानने समझने का प्रयास करते हैं।”
उक्त परिभाषाएं यह कहने में सक्षम हैं कि
(A) – सामाजिक प्रत्यक्षीकरण से समाज व व्यक्ति दूसरे समाज व व्यक्ति को समझने का प्रयास करता है।
(B) – इससे एक दूसरे के प्रति धारणा बनाने में मदद मिलती है।
(C) – व्यक्ति स्वयं को भी उस सामाजिक परिवेश में समझने का प्रयास करता है।
प्रत्यक्षीकरण के निर्धारक / Determinants of perception –
प्रत्यक्षीकरण के अन्तर्गत व्यक्ति प्रत्यक्षीकरण, स्व प्रत्यक्षीकरण, सामाजिक प्रत्यक्षीकरण की विवेचना की जाती है। वर्तमान के विविध विद्वानों के विचार विश्लेषण के आधार पर प्रत्यक्षीकरण निर्धारकों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है :-
1 – उत्तेजना कारक (Stimulus Factors) – उत्तेजना कारक से आशय उन व्यक्ति सम्बन्धी कारकों से है जिनके आधार पर एक दूसरे का विश्लेषण कर राय का निर्धारण किया जाता है। उदाहरणार्थ – एक दूसरे से होने वाला प्यार बहुत कुछ उत्तेजना कारकों पर निर्भर करता है। यह विविध निर्णयों का आधार बनाता है। उत्तेजना कारकों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है –
अशाब्दिक संकेत / Nonverbal cues – जब हम किसी को प्रत्यक्षतः देखते हैं तो इस प्रत्यक्षीकरण में सामने वाले की शरीर रचना व शील गुणों का प्रभाव प्रथम दृष्टिवा पड़ता है इसीलिये विभिन्न विद्वतजन शरीर रचना व व्यक्तित्व संगठन के बीच गहन सम्बन्धों की स्वीकारोक्ति देते हैं। देखने को मिलता है कि इस आधार पर लोग राय बना लेते हैं और निर्णय तक पहुंचते हैं लेकिन इस धारणा निर्माण की प्रक्रिया में बहुत से मध्यवर्ती चर भी सक्रिय हो जाते हैं। क्रेशमर (Kretchmer,1925) कहते हैं –
“मोटे तथा नाटे शरीर वाले लोग सुस्त,खुशमिजाज,मिलनसार,तथा आरामतलब होते हैं। दुबले, पतले तथा लम्बे शरीर वाले लोग सक्रिय, चिड़चिड़े, तथा क्रोधी होते हैं। सुगठित शरीर वाले लोग सामाजिक, सन्तुलित तथा फुर्तीले होते हैं।”
a – शारीरिक हावभाव व मुद्रा (Body gesture and posture) – अलग अलग संस्कृतियों के लोगों के शरीर विविध हाव भाव व मुद्रा प्रदर्शित करते हैं। जिनमें अन्तर दीख पड़ता है। यथा चुम्बन लेना, आलिङ्गन करना, हाथ मिलाना, स्पर्श करना आदि।
शरीर मुद्रा से वैर भाव, तनाव, व विभिन्न संवेगों का परिचय मिलता है विविध अध्ययनों ने भी शारीरिक मुद्राओं और उसके विभिन्न शील गुणों के बीच सम्बन्धों के प्रमाण दिए हैं।
b – मुखाकृति / Facial Expressions –
यह भी एक अशाब्दिक संकेत स्वीकार किया जाता है तथा विभिन्न विद्वानों ने इसके आधार पर भी अपना विवेचन प्रस्तुत किया है। सेकर्ड 1945 के अनुसार – काले मोटे चमड़े वाले लोगों को वैरपूर्ण, घमण्डी, बेईमान,आदि समझा जाता है।
एक अन्य अध्ययन में सेकर्ड तथा मुथार्ड 1955 के अनुसार –
मोटी त्वचा वाले व्यक्तियों को प्रायः घटिया, गँवार व असंवेदनशील समझा जाता है। ऊँची पेशानी को तीव्र बुद्धि का संकेत माना जाता है।
उक्त अध्ययनों के आधार पर कहा जा सकता है की मुखाकृति प्रत्यक्षीकरण का एक प्रमुख कारक है।
c – आवाज – इसे उत्तेजना कारकों में गिना जाता है। व्यक्ति की बोल चाल व प्रभावशीलता के आधार पर बहुत से निर्णय लिए जाते हैं। बोलने की गति, लहजा, उच्चारण, तथ्य प्रस्तुतीकरण से विविध तथ्यों यथा उसका समुदाय, परिवार, संस्कार आदि का पता चलता है।
d – पहनावा व रहन सहन – अशाब्दिक प्रत्यक्षीकरण का महत्त्वपूर्ण उपागम पहनावा व रहन सहन है इसके आधार पर महिला, पुरुष, हिन्दू, मुस्लिम, सिख आदि को पहचाना जा सकता है। वर्दी देखकर अलग अलग सुरक्षा संवर्ग के लोगों को पहचाना जा सकता है। रहन सहन के अंदाज भी प्रत्यक्षीकरण में सहयोग करते हैं।
2 – प्रत्यक्षीकरणकर्त्ता निर्धारक / Perceiver Determinants –
यह अक्षरशः सत्य है कि प्रत्यक्षीकरण करने वाले का दृष्टिकोण तत्सम्बन्धी धारणा के गठन में महत्त्वपूर्ण है एक ही व्यक्ति किसी का भाई, किसी का पिता, किसी का बेटा, किसी का प्रेमी और किसी का पति, रूप में देखा जाता है। प्रत्यक्षीकरण की इस विभिन्नता का कारण वह व्यक्ति नहीं बल्कि प्रत्यक्षीकरण करने वाले लोग हैं। प्रत्यक्षीकरणकर्त्ता निर्धारकों को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है।
a - संज्ञानात्मक योग्यता /Cognitive ability –
प्रत्यक्षीकरण करने वाले की संज्ञानात्मक योग्यता का सीधा असर प्रत्यक्षीकरण पर पड़ता है यह सर्व विदित है की अधिक बुद्धिमान व्यक्ति का प्रत्यक्षीकरण स्तर कम बुद्धिमान व्यक्ति से अच्छा व सटीक होगा। अपनी योग्यता के कारण वह तुलनात्मक रूप से श्रेष्ठ धारणा निर्माण में सक्षम होगा।
b - संज्ञानात्मक प्रणाली/Cognitive system -
व्यक्ति के व्यवहार में सैद्धान्तिक व व्यावहारिक आधार पर अंतर देखने को मिलता है एक व्यावहारिक परिक्षेत्र में रहने वाला सैद्धांतिक की तुलना में अच्छा प्रत्यक्षीकरण कर सकेगा। ऐसा बहुधा देखने को मिलता है। व्यावहारिक क्षमता वाले व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ जाती है इस लिए वह प्रत्यक्षीकरण व निर्णयन में अधिक सक्षम हो जाता है।
C-संज्ञानात्मक जटिलता/cognitive complexity - संज्ञानात्मक जटिलता अधिक होने पर बारीकी से और विशेष ध्यान पूर्वक प्रत्यक्षीकरण की क्रिया को अंजाम दिया जाता है। बीरी (1955) के अनुसार -
निरीक्षक की संज्ञानात्मकता जटिलता का निश्चित प्रभाव व्यक्ति के प्रति उसके प्रत्यक्षीकरण पर पड़ता है।
d - उदारवाद व रूढ़िवाद/Liberalism and conservatism-
यह दोनों ही प्रत्यक्षीकरण को प्रभावित करते हैं। ये दोनों ही हठधर्मिता को प्रश्रय देते हैं इससे सही प्रत्यक्षीकरण मुश्किल हो जाता है,
चैपलिन (1975) के अनुसार -
उदारवादी व्यक्ति की अपेक्षा रूढ़िवादी व्यक्ति के निर्णय पर पुराने मूल्यों तथा परम्परावादी उन्मुखता का प्रभाव अधिक देखा जाता है।
मैक क्लोस्की(1958) ने अपने अध्ययन के परिणाम स्वरुप पाया कि –
रूढ़िवादी लोग अपने प्रत्यक्षीकरण व निर्णय में दृढ़, असहनशील, अटल, तथा जिद्दी होते हैं।
e – पूर्व धारणा / Prejudice–
कोई भी पूर्व धारणा प्रत्यक्षीकरण पर अनुकूल प्रभाव नहीं डालती। प्रजातीय, धार्मिक, जातिगत, यौन, सम्प्रदायगत पूर्व धारणाएं निष्पक्ष प्रत्यक्षीकरण की बाधा बनती हैं। यह बाधा प्रत्यक्ष भी हो सकती है और अपत्यक्ष भी। हम अपने समुदाय, वर्ग, धर्म, जाति का जो प्रत्यक्षीकरण करते हैं वैसा दूसरे समुदाय,वर्ग, धर्म, जाति का नहीं अर्थात पूर्व धारणा का प्रभाव प्रत्यक्षीकरण पर स्पष्ट रूप से पड़ता है।
f – यौन भिन्नता / Sex difference –
दैनिक जीवन के विविध अनुभवों व विविध अध्ययन ये स्पष्ट करते हैं कि प्रत्यक्षीकरण पर यौन भिन्नता का प्रभाव दृष्टिगत होता है। कभी इस आधार पर निर्णय में देरी होती है मैं 28 अक्टूबर 2022 को दैनिक जागरण, मुरादाबाद की एक खबर की और आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहूँगा जिसमें कहा गया कि –
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए महिला और पुरुष क्रिकेटरों को सामान मैच फीस देने का फैसला किया है। बीसीसीआइ सचिव जय शाह ने यह घोषणा की।
g – आयु /Age – विविध अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि आयु का प्रभाव प्रत्यक्षीकरण पर पड़ता है अधिक आयु के व्यक्ति की मनोवृत्ति, आवश्यकता, आकांक्षा, सपने और युवा आयु की सोच और प्रत्यक्षीकरण में अंतर स्वाभाविक है। परिपक्वता, बुद्धिमत्ता, अनुभव जो आयु बढ़ने के साथ मिलते हैं प्रत्यक्षीकरण पर प्रभाव डालते हैं। कई अध्ययन इस बात को प्रमाणित करते हैं कि कम उम्र की अपेक्षा अधिक उम्र के लोग मानवजातीय पूर्वधारणाओं पक्षपातों से अधिक पीड़ित होते हैं।
इसके अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे कारक हैं जो प्रत्यक्षीकरण को प्रभावित करते हैं इस पर स्थान, समय, सत्ता सभी का प्रभाव पारिलक्षित होता है। यह संस्कृति, संस्कार, परिवेश, चिन्तन आदि कारकों से भी प्रभावित होता है। यह व्यक्ति व्यक्ति व सामाजिक भिन्नताओं में भी अलग अलग होता है।