कैसी दुनियाँ जन्म से पहले, कैसी होगी मृत्यु के बाद
प्रश्न आदि से अनसुलझा है उत्तर नहीं सही से याद
ज्ञानधारणा मिल अज्ञान से नित्य खड़ा करती प्रतिवाद
चर्चा होती रहती प्रतिदिन फिर लगते मिथ्या सम्वाद।
क्या होता है जन्म से पहले, क्या होता मृत्यु के बाद।
जिज्ञासा मानस की कहती बाधाएं करती बरबाद
बाधाएं माया का जाल हैं ना दिखता जीवन के बाद
जीवन मृत्यु के दो कूलों में फँस जाता है प्रकृतिवाद
झंझावातों से टकराकर नित्य खड़ा होता अवसाद।
क्या होता है जन्म से पहले, क्या होता मृत्यु के बाद।
बाधा बनती कभी मृत्यु, कभी जन्म और भाषावाद
इन सारे चक्कर में उलझा प्रश्न बना रहता आबाद
गुत्थमगुत्था होते विचार उलझन को मिलता पानी खाद
यह रहस्य की वह दुनियाँ है जहाँ दफन होते सम्वाद।
क्या होता है जन्म से पहले, क्या होता मृत्यु के बाद।
क्या अज्ञेय रहेंगे सदा मिथ्या विज्ञान व अध्यात्मवाद
नहीं बता सकते हमको तर्कों को गढ़ तज मिथ्यावाद
क्या हो सकती पूर्ण साधना या प्रश्न रहेगा चिर आबाद
मध्य मार्ग चुनने की कह, सिद्ध कर रहे पलायन वाद।
क्या होता है जन्म से पहले, क्या होता मृत्यु के बाद।
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा क्या कर्मों का नहीं हिसाब
जो जस करहिं सो तस फल चाखा,नहीं दिखाता प्रत्यक्षवाद
प्रश्न वहीं का वहीं खड़ा है अनर्गल होते रहे विवाद ।
क्यों विज्ञों की टोली चुप है नहीं सूझता सही जवाब।
क्या होता है जन्म से पहले, क्या होता मृत्यु के बाद।