प्रयोजनवाद को फलक वाद,नैमेत्तिक वाद, व्यवहार वाद आदि नामों से जाना जाता है पाश्चात्य दर्शन की उस विचार धारा को प्रयोजनवाद के नाम से जानते हैं जो मानव के मात्र व्यावहारिक पक्ष पर विचार करती है इसे आँग्ल भाषा में प्रैग्मेटिज्म (Pragmatism) कहा जाता है। यह ग्रीक भाषा के प्रेग्मा (Pragma) अथवा प्रेग्मेटिकोस (Pragmaticos) शब्द से बना है। इसका अर्थ व्यावहारिकता से होता है इसलिए इसे प्रैग्मेटिज्म (Pragmatism) कहते हैं।
प्रयोजन वाद की मीमांसाएँ –
प्रयोजनवादियों का मानव और सृष्टि के सम्बन्ध में जो चिन्तन है उसे समझने हेतु उसकी तत्त्व मीमांसा (Metaphysics), ज्ञान व तर्क मीमांसा ( Episteomology and Logic) तथा मूल्य आचार मीमांसा (Axiology and Ethics) को जानना परम आवश्यक है इसलिए पहले हम उक्त मीमांसाओं को विवेचित करेंगे।
(a) – तत्त्व मीमांसा (Meta Physics)- प्रयोजनवाद का तात्विक विवेचन यह तथ्य स्पष्ट करता है की सत्य निर्धारण की स्थिति में रहता है कोइ पूर्व निर्धारित सत्य नहीं हो सकता,यह परिवर्तनशील होता है। इसे मानवतावादी प्रयोजनवाद (Humanistic Pragmatism) कहते हैं कुछ प्रयोजनवादी उसे ही सत्य स्वीकारते हैं जो प्रयोग की कसौटी पर खरा उतरे इसे प्रयोगवादी प्रयोजन वाद(Experimental Pragmatism) कहा जाता है कुछ प्रयोजनवादी ऐसे भी हैं जो अनुभव को प्रमाण मानते हैं अनुभव सिद्ध ज्ञान का आधार ले ये कहते हैं कि तथ्य आधारित सत्यता भाषा भिन्न होने पर भी सामान परिणाम देती है इसलिए अलग अलग भाषा होने पर भाषा पर नहीं बल्कि परिणाम पर ध्यान दिया जाना चाहिए इसे नाम रूपी प्रयोजनवाद ( Nominalistic Pragmatism) कहा जाता है।
प्रयोजनवादियों का एक समूह केवल उसी को सत्य स्वीकारता है जो मानव की जीव वैज्ञानिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं इन्हें जीव विज्ञानी प्रयोजनवाद (Biological Pragmatism) का समर्थक कहा जाता है। कार्य साधन सम्बन्ध के आधार पर तात्विक विवेचना इसे साधनवाद, नैमित्तिकवाद कहने में नहीं हिचकिचाती। डीवी का उपकरण वाद (Instrumentalism) प्राणी को उपकरण मानने के कारण चर्चा में रहा।
(b) – ज्ञान व तर्क मीमांसा (Episteomology and Logic) – इनके अनुसार ज्ञान ज्ञान के लिए नहीं है बल्कि यह सुख पूर्वक जीवन जीने का आधार है जीवन को सुखमय बनाने वाले साधन के रूप में ये ज्ञान को स्वीकारते हैं सामाजिक गतिविधियों में क्रिया कर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है ज्ञान और कर्म की इन्द्रियाँ ही वह माध्यम हैं जो ज्ञान, मस्तिष्क, बुद्धि का आधार हैं।
(c) –मूल्य व आचार मीमांसा (Axiology and Ethics) – चूँकि ये सत्य को शाश्वत मानते ही नहीं इसलिए कोई पूर्व निर्धारित मूल्य या आचरण सार्व कालिक हो ही नहीं सकता। यह मानते हैं कि बच्चों में सामजिक कुशलता का गुण विकसित कर हर परिस्थिति में उसकी जीविकोपार्जन क्षमता, समायोजन क्षमता, समाधान क्षमता को निरन्तर परिमार्जनशीलता से जोड़े रखना चाहते हैं जिससे परिस्थिति अनुसार मूल्य व आचरण नया रूप धारण कर सके।
प्रयोजनवाद की परिभाषाएं (Defenitions of Pragmatism) – प्रयोजनवाद के विविध रूप हैं इसी कारण परिभाषाओं में भी इसी विविधता के दर्शन होते हैं कुछ परिभाषाएं दृष्टव्य हैं जेम्स बी. प्रेट (James B Prett) के शब्दों में –
”Pragmatism offer as a theory of meaning, a theory of truth of knowledge and theory of reality.”
”प्रयोजनवाद हमें अर्थ का सिद्धान्त, सत्यता का सिद्धान्त, ज्ञान का सिद्धान्त एवं वास्तविकता का सिद्धान्त प्रदान करता है।”
रॉस (Ross) महोदय कहते हैं। –
”Pragmatism is essentially a humanistic philosophy maintaining that man creates his own values in course of activity, that reality is still in making and awaits its part of the completion from the future. -Ross
”प्रयोजनवाद निश्चित रूप से एक मानवतावादी दार्शनिक विचारधारा है इसकी यह मान्यता है की मनुष्य कार्य करने के दौरान अपने मूल्यों का स्वयं निर्माण करता है, सत्य अभी निर्माण की अवस्था में है जिसके शेष भागों की पूर्ति भविष्य में होगी।”
प्रयोजनवाद के बारे में विलियम जेम्स (William James) महोदय कहते हैं। –
”Pragmatism is a temper of mind, an attitude, it is also a theory of the nature of ideas and truth and finally, it is a theory about reality.”
फलकवाद मस्तिष्क का एक स्वभाव है, एक अभिवृत्ति है यह विचार और सत्य की प्रकृति का सिद्धान्त है और अन्ततः यह वास्तविकता के बारे में सत्यता का सिद्धान्त है।”
रमन बिहारी लाल ने प्रयोजन वाद की कई विचार धाराओं को समाहित करते हुए इस प्रकार पारिभाषित किया –
” प्रयोजन वाद पाश्चात्य दर्शन की वह विचारधारा है जो इस ब्रह्माण्ड को विभिन्न तत्वों और क्रियाओं का परिणाम मानती है और यह मानती है कि भौतिक संसार ही सत्य है और इसके अतिरिक्त कोई आध्यात्मिक संसार नहीं है।”
प्रयोजनवाद और शिक्षा(Pragmatism and Education ) –
प्रयोजनवाद का शिक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ा इस वाद के प्रमुख दार्शनिकों में विलियम जेम्स, जॉन डीवी, किल पैट्रिक, मिलर आदि का नाम आता है इसके प्रभाव ने शिक्षा के उद्देश्यों व इसके अंगों पर परिवर्तनकारी छाप छोड़ी है। जिन्हें इस प्रकार अधिगमित किया जा सकता है।
प्रयोजनवाद के मूल सिद्धान्त (Fundamental Principles of Pragmatism) –
1- ब्रह्माण्ड अनेक तत्त्वों व क्रियाओं का फल
2 – भौतिक जगत मात्र का अस्तित्व
3 – पदार्थजन्य क्रियाशील तत्त्व आत्मा
4 – सहज सामाजिक प्रक्रिया का सोपान मानव विकास
5 – सांसारिक सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव
6 – सुखपूर्वक जीवन यापन मानव उद्देश्य
7 – सुखपूर्वक जीवन यापन व सामाजिक विकास परस्पर निर्भर
8 – सामाजिक विकास का आधार सामाजिक कुशलता
9 – राज्य एक सामाजिक संस्था
प्रयोजनवाद और शिक्षा के उद्देश्य (Pragmatism and Aims of Education ) –
प्रयोजनवादी शिक्षा के निश्चित उद्देश्यों को ही स्वीकार नहीं करते पर्यावरण व मूल्य निरन्तर परिवर्तित हो रहे हैं इस आधार पर डीवी महोदय कहते हैं –
”शिक्षा के अपने में कोई उद्देश्य नहीं होते, उद्देश्य तो व्यक्तियों के होते हैं और व्यक्तियों के उद्देश्यों में बड़ी भिन्नता होती है, जैसे जैसे व्यक्तियों का विकास होता जाता है उनके उद्देश्य भी बदलते जाते हैं।”
यह शिक्षा के उद्देश्यों की जगह शिक्षा से बालकों की योग्यताओं में निम्न अभिवृद्धि की आशा करते हैं। –
1 – सामाजिक वातावरण व पर्यावरण से अनुकूलन
2 – गतिशीलता
3 – सामाजिक कुशलता
4 – लोकतान्त्रिक अभिवृत्ति
प्रयोजनवाद और पाठ्यक्रम (Pragmatism and Curriculum)- ये उद्देश्यों की तरह स्पष्ट विषय विभाजन की जगह पाठ्यक्रम हेतु उन सिद्धांतों को बढ़ावा देना चाहते हैं जो इनके अनुसार बालक हेतु आवश्यक हैं ये कहते हैं समयानुसार सिद्धांतों के अनुसार विषयों की आवश्यकता होगी। इनके अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण हेतु निम्न सिद्धांतों का अवलम्बन लेना होगा।
1 – उपयोगिता का सिद्धान्त (Principle of Utility)
जेम्स महोदय ने कहा है –
”It is true because it is useful.”–William James
”किसी वस्तु की सत्यता उसकी उपयोगिता के आधार पर निर्धारित की जा सकती है।”
2 – रूचि का सिद्धान्त (Principle of Interest)
3 – अनुभव का सिद्धान्त (Principle of Experience)
”विद्यालय समुदाय का अंग है। इसलिए यदि ये क्रियाएं समुदाय की क्रियायों का रूप ग्रहण कर लेंगी तो ये बालक में नैतिक गुणों और पहल कदमी तथा स्वतन्त्रता के दृष्टिकोणों का विकास करेंगी। साथ ही ये उसे नागरिकता का प्रक्षिशण देंगी और उसके आत्मानुशासन को ऊँचा उठाएंगी।”
4 – एकीकरण का सिद्धान्त (Principle of Integration)
5 – सत्य की परिवर्तनशील प्रकृति (Nature of truth is changeable)
”The truth of an idea is not a stagnant property inherent in it, truth happens to an idea.”-William James
जेम्स महोदय के अनुसार –
”सत्य कोई पूर्ण निश्चित एवम् अनन्त सिद्धान्त नहीं, प्रत्युत वह सदा निर्माण की अवस्था में रहता है।”
जेम्स महोदय पुनः कहते हैं –
”सत्य किसी विचार का स्थाई गुण धर्म नहीं है। वह तो अकस्मात् विचार में निर्वासित होता है।”
6 – क्रिया प्रमुख, ज्ञान द्वित्तीयक (Action main, Knowledge Secondary)
प्रयोजनवाद और शिक्षण विधियां (Pragmatism and Methods of Teaching) –
ये सीखने हेतु किसी शिक्षण विधि का समर्थन करने की जगह व्यावहारिक विधियों के चयन हेतु प्रेरित करते हैं।
रॉस महोदय कहते हैं –
”यह (प्रयोजनवाद) हमें चेतावनी देता है की हम प्राचीन और घिसीपिटी विचार क्रियाओं को अपने शैक्षिक व्यवहार में प्रमुख स्थान न दें और नई दिशाओं में कदम बढ़ाते हुए अपनी विधियों में नए प्रयोग करें।”
- – उद्देश्य पूर्ण शिक्षण विधि(Purposive Process of Learning) –
ये चाहते हैं कि अध्यापक ऐसी विधि का अनुसरण करे जिससे बालक अपनी इच्छा रूचि और प्रवृत्ति के अनुसार अपने आप ज्ञान लब्ध करे।
रॉस के शब्दों में – ”सीखने की प्रक्रिया उद्देश्य पूर्ण होनी चाहिए।”
- – क्रिया विधि से सीखना (Learning by Doing ) –
प्रयोजनवादी बालक को रटाने की जगह क्रिया द्वारा सीखने पर बल देते हैं ‘करके सीखना’ से आशय मात्र ‘व्यावहारिक कार्य’ को तरजीह देना नहीं है बल्कि उसे ऐसा बनाना है जो हर परिस्थिति से तारतम्य बना सके।
- – प्रोजेक्ट विधि (Project Method) –
प्रोजेक्ट पद्धति, समस्या समाधान पद्धति, स्वक्रिया पद्धति, स्व अनुभव पद्धति,सह सम्बन्ध पद्धति, परीक्षण पद्धति ,प्रयोग पद्धति पर इन्होंने विशेष ध्यान केन्द्रित किया। इन्हें प्रोजेक्ट पद्धति का जनक कहा जाता है जिसमें उक्त सभी विधि तो सम्मिलित हैं ही साथ में निम्न तथ्य समाहित करने पर जोर दिया।
1 – बालक की रूचि के अनुसार शिक्षा प्रदान की जाए।
2 – ज्ञान प्राप्ति हेतु स्वतन्त्रता प्रदान की जाए।
3 – वैयक्तिक भिन्नता का ध्यान रखा जाए।
4 – सामाजिक भावना का विकास किया जाए।
5 – बालकों के शब्दों से अधिक कार्यों पर ध्यान दिया जाए।
प्रयोजनवाद और अध्यापक (Pragmatism and Teacher) –
प्रयोजनवादियों का मानना है कि शिक्षक बालक को समाजोन्मुख करने वाला प्रमुख व्यक्ति है समाज के प्रतिनिधि के रूप में उसे निरीक्षण करने सहयोग देने व बालक को उत्साहित मात्र कराने का अधिकार है उस पर अपने विचार लादने का नहीं। शिक्षक को अपनी परिष्कृत बुद्धि परिमार्जित व्यक्तित्व द्वारा बालकों के ज्ञान तथा समाज हेतु तैयारी के आधार पर बालकों की सहायता करनी चाहिए।
प्रयोजनवाद और अनुशासन (Pragmatism and Discipline) –
डीवी व अन्य प्रयोजनवादी अनुशासन को प्रजातान्त्रिक ढंग से स्व अनुशासन, रूचि व सहयोग पर आधारित करना चाहते हैं।
हैरोल्ड जी 0 शैन ने डीवी से प्रभावित होकर कहा –
”जहाँ तक अनुशासन का सवाल है, डीवी के मानदण्ड उच्च श्रेणी के थे आवश्यकता हो तो अध्यापकों पर कठोर नियन्त्रण रखने से लेकर, छात्रों की परिपक़्वता के साथ आत्मानुशासन के महत्त्व को स्वीकारने तक।”
प्रयोजनवाद और विद्यालय (Pragmatism and School) –
प्रयोजनवादी विद्यालय को समाज के लघु रूप में स्वीकारते हैं और विद्यालयों में शिल्पों पर बल देकर शिक्षा को जीविकोपार्जन हेतु उपयोगी बनाना चाहते हैं।
डीवी ने कहा – ” विद्यालय अपनी चहारदीवारी के बाहर से बहुत कुछ समाज की प्रतिच्छाया है।”
ये जीवन के सर्वोत्तम ढंग को सिखाना चाहते हैं।
डीवी ने कहा – ” विद्यालय सामाजिक प्रयोगों की प्रयोगशाला होनी चाहिए, जिससे बालक एक दूसरे के साथ रहकर जीवन यापन के सर्वोत्तम ढंगों को सीख सकें।”
प्रयोजनवाद का मूल्यांकन (Estimate of Pragmatism) – मूल्याङ्कन हेतु आवश्यक हे कि इसके गुण दोषों का अध्ययन किया जाए।
प्रयोजनवाद के गुण (Merits of Pragmatism) –
1 – बाल केन्द्रित शिक्षा
2 – क्रिया आधारित शिक्षा
3 – लोकतन्त्रीय शिक्षा
4 – सामाजिक व्यवहारिक शिक्षा
5 – प्रोजेक्ट पद्धति का प्रयोग
6 – शिक्षा में सकारात्मक परिवर्तन
7 – विचारों को व्यवहार के अधीन लाना –
रस्क महोदय ने कहा –
”प्रयोजनवाद का वह रूप जिसने अपना सर्वाधिक प्रभाव डाला है, यह है की उसने शिक्षा के क्षेत्र में विचारों को व्यवहारों के अधीन कर दिया है।”
प्रयोजनवाद के दोष (Demerits of Pragmatism) –
1 – सत्य सम्बन्धी धारणा अनुचित
2 – आध्यात्मिकता को तिलाञ्जलि
3 – उपयोगिता निर्णयन दुष्कर
4 – निश्चित उद्देश्य का अभाव
5 – पाठ योजना बनाना कठिन
6 – बुद्धि के महत्त्व में कमी
7 – सांस्कृतिक अवमूल्यन
8 – अतीत की उपेक्षा
9 – एकत्व वाद के सापेक्ष बहुवाद पर अधिक बल
उपरोक्त विवेचन में भले ही दोष, गुण की तुलना में अधिक दिखते हों लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किय जा सकता कि इसने शिक्षा जगत में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं। रस्क (Rusk) महोदय ने कहा –
”It is merely a stage in the development of a new Idealism that will do full justice of reality, reconcile the practical and the spiritual values, and result in a culture which is the flower of efficiency.”
”प्रयोजनवाद, नवीन आदर्श वाद के विकास में एक चरण मात्र है। यह नवीन आदर्शवाद ऐसा होगा, जो सदैव जीवन की वास्तविकता का ध्यान रखेगा और व्यावहारिक और आध्यात्मिक मूल्यों का समन्वय करेगा। इसके साथ ही, यह ऐसी संस्कृति का निर्माण करेगा, जो कुशलता का पुष्प होती है।”