चटकती जो भी मटकी है,
वो अक्सर फूट जाती है।
ऑ दोस्ती जब दरकती है,
तो भावना टूट जाती है।1।
दामिनी जब कड़कती है,
रौशनी खिल खिलाती है।
घटा जब भी बरसती है,
प्रकृति तब रूप पाती है।2।
महकती जो भी मस्ती है,
जीवन में फूल लाती है।
महफ़िल जब चहकती है,
यादों की गूल आती है।3।
मचलती जो भी कश्ती है,
न संभली डूब जाती है।
माँझी गर ख़ास हस्ती है,
तो किश्ती मंजिल पाती है।4।
गर खुद में चुस्ती फुर्ती है,
तो हौसला घर बनाती है।
आँधियाँ सर पटकती हैं,
तक़दीर सँवरती जाती है।5।
दीवानों में जो मस्ती है,
‘नाथ’ वह पथ दिखाती है।
मंजिलें खुद मचलती हैं,
सफलता मिलती जाती है।6।