पीड़ा जिसकी थाती है वो भूख के गीत सुनाते हैं,
अहसास उन्हें ये होता है, भूखे कैसे सो पाते हैं।
भूख कहीं दयनीयदृष्टि तो कहीं क्रूर बन जाती है,
भरे पेट जो हो न सका, भूख यूँ ही कर जाती है।
क्षुधापूर्ति हित भूखे भू से झूठे टुकड़े खा जाते हैं,
दुष्ट इसे हथियार बना, भूखों को नाच नचाते हैं।
वो जो ना करना चाहें हाँ वो ही सब करवाते हैं,
उनकी लाचारी को वे आजीवन विवश बनाते हैं।
क्षुधा ज्ञान जो पा न सके वो भी विद्वान कहाते हैं,
नेता राज नीति समझें पर भूख समझ ना पाते हैं।
अच्छे-बुरे का भान नहीं सब कुछ ही खा जाते हैं,
भूख के कारण ही सुन लो रोगों को गले लगाते हैं।
लानत है शासन पर गर, भूख से लोग मर जाते हैं,
क्या रीतिनीति मर्यादा है जो मृत्युभोज करवाते हैं।
भरेहुए कुछ पेटों को क्यों हम फिर से जिमवाते हैं,
यह सब कुछ करके क्यों हम भूखों को तरसाते हैं।
भूख के कारण सबला से, वो अबला हो जाते हैं,
क्षुधा के कारण ही सुन लो भाव गन्दे हो जाते हैं।
इसी विवशता को दुर्जन फिर खूब भुनाने आते हैं,
जीवन संकट में जिनका उनके तन लूटे जाते हैं।
आखिर कैसे इस धरती पर, वो खुशहाली आएगी,
रत्न प्रसविनी ये वसुधा फिर ऐसा कब कर पाएगी।
वसुन्धरा तो सुनलो अब भी प्रचुर अन्न उपजाती है,
वर्तमान व्यवस्था ऐसी है, जो सही बाँट ना पाती है।
सोच समझ कर कहो कि सद ज्ञानों से क्या होगा,
दानी संस्थाएं दानवीर और धनवानों से क्या होगा।
यदि भूख के कारण मित्रो ये, तरुणाई मर जाएगी,
तब नीतिनियन्ता शक्तिमान सिद्धान्तों से क्या होगा।
जी हाँ सारी धरा जगे औ इसी लक्ष्य पर काम करे,
जो भी भू पर जीवन धारे क्षुधा से बिल्कुल नहीं मरे।
सारी मानवता मिलकर इस ओर अगर बढ़ पाएगी
सचमानो इस बाधा से हमको निज़ात मिल जाएगी।