जीवन परिचय (Life introduction) –
रूसो का जीवन बहुत से विरोधाभासों का एक समुच्चय है,वह जेनेवा के एक साधारण कसवे में पैदा हुआ जिसकी माँ बाल्यावस्था में चल बसी और पिता ने उपन्यासों, कल्पना, संवेदना द्वारा उसे अकाल प्रौढ़ता प्रदान कर दी, वह दो वर्ष जेनेवा से बाहर रहा जिसमें उसे प्रकृति के प्रति अनुराग जाग्रत हुआ। उसका निजी जीवन निम्न कोटि का रहा काहिली और बुरी सङ्गति में उसने कई वर्ष व्यतीत किये बाद में जीवन की कृत्रिमताओं ने उसे व्यथित कर दिया लेकिन इन सारी स्थितियों में वह अध्ययन करता रहा वह उसकी निम्न कोटि की नौकरी के कारण जैसा भी रहा। कृत्रिमता के प्रति घृणा का स्तर बढ़ा और प्रतिक्रिया स्वरुप व्यर्थ सामाजिक आदर्श, कृत्रिमता के आवरण में लिपटी चरित्र हीनता को जब उसने जनमानस के समक्ष रखा तो सुषुप्त जनमानस में क्रांतिकारी ज्वार आ गया और वह अकस्मात् प्रसिद्द हो गया। अन्ततः वह एक अच्छे अध्यापक, नाटककार, संगीतज्ञ व लेखक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उसने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सृजित किये।
1 – प्रोजेक्शन फॉर द एजुकेशन ऑफ़ एम० डीसेंट मैरी
2 – डिस्कोर्स ऑन द साइंसेज एन्ड आर्ट्स (1750)
3 – ओरिजिन ऑफ़ इनइक्विलिटी एमंग मैन (1755)
4 – डिस्कोर्सऑन पोलिटिकल इकोनॉमी (1755)
5 – द न्यू हेलाइस (1761)
6 – द सोशल कॉन्ट्रेक्ट (1762)
7 – एमील (1762)
8 – सोशल इनइक्विलिटी(1754)
9 – कॉनफैशन ऑफ़ द विकार ऑफ़ सेवाय
रूसो के अनुसार शिक्षा (Education according to Rousseau)-
1 – शिक्षा एक स्वाभाविक प्रक्रिया
2 – शिक्षा के दो रूप
(a) – सार्वभौमिक शिक्षा -राज्य द्वारा जैसा कि प्लैटो की रिपब्लिक में
(b) – घरेलू शिक्षा – घर द्वारा जैसा कि एमील में वर्णित
3 – आन्तरिक शक्ति का विकास सच्ची शिक्षा
Rousseau –
“True education is something that happens from within the individual. It is an unfolding of his own latent powers.”
“सच्ची शिक्षा वह है जो व्यक्ति के भीतर से होती है। यह उसकी अपनी गुप्त शक्तियों का प्रकटीकरण है।”
4 – शिक्षा सभी के लिए आवश्यक
5 – शिक्षा का परम लक्ष्य – सुव्यवस्थित स्वतन्त्रता
रूसो महोदय के अनुसार –
“वही व्यक्ति स्वतन्त्र है जो उसी बात की कामना करता है जो करना चाहता है और वही करता है जो चाहता है।”
6 – शिक्षा आयु के अनुसार →शैशवावस्था →बाल्यावस्था →किशोरावस्था →युवावस्था
7 – शिक्षा का उद्देश्य मानव को मानव बनाना →रूसो स्वयं कहते हैं कि →
“मैं यह बात स्वीकार करता हूँ कि मेरे पढ़ाने के बाद वह सबसे पहले मनुष्य बनेगा,न्यायाधीश,सैनिक,पादरी बाद में। ”
8 – शिक्षा प्राकृतिक शक्तियों का विस्तार → उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा –
“यह प्राकृतिक शक्तियों का एक विस्तार है न कि सूचनाओं का एक संग्रह। यह स्वयं जीवन है न कि बाल्यजीवन की रुचियों एवं विषमताओं से दूर भावी जीवन की एक तैयारी। ” ((भाषा और भूगोल थोपना गलत)
शिक्षा के उद्देश्य (Aims of education) –
1 – इन्द्रिय प्रशिक्षण (Sense training)
2 – शारीरिक विकास (Physical development)
3 – बुध्दि का विकास (Development of intelligence)
4 – भावात्मक विकास Emotional development)
5 – जीवन कला (Life art)
6 – अधिकार रक्षा (Protection of rights)
7 -व्यक्तित्व विकास (Personality development)
पाठ्यक्रम (Syllabus) →
रूसो महोदय ने पाठ्यक्रम को तीन भागों में बाँटा –
A – प्रकृति सम्बन्धी विषय – प्राकृतिक विज्ञान,भूगोल आदि
B – मनुष्य सम्बन्धी विषय – भाषा,मनोविज्ञान,समाजिकशास्त्र, राजनीति शास्त्र,अर्थशास्त्र,आदि।
C – वस्तु सम्बन्धी विषय – भौतिक शास्त्र और पदार्थ विज्ञान।
जीवन की अवस्थाओं के आधार पर पाठ्यक्रम वितरण →
1 – शैशवावस्था → खेलना, घूमना, ऋतुओं को सहन करना,शारीरिक विकास।
2 – बाल्यावस्था → खेलकूद, नापना, गिनना, तौलना, संगीत, नृत्य, गणित, रेखागणित, भूगोल, प्रकृति अध्ययन,
(पुस्तकीय ज्ञान का अभाव, *निषेधात्मक शिक्षा का प्रतिपादन)
3 – किशोरावस्था → इतिहास,भूगोल,कला,संगीत,दस्तकारी,प्राकृतिक विज्ञान,निश्चयात्मक शिक्षा, सदाचार.
4 – युवावस्था → धर्म, नीति, इतिहास, कला, संगीत, यौन शिक्षा, प्राकृतिक विज्ञान, अर्थ शास्त्र, राजनीति शास्त्र,सामाजिक शास्त्र आदि
नारी शिक्षा हेतु गृह विज्ञान,संगीत,नृत्य,सिलाई,बुनाई,धर्म,नीति आदि ।
*निषेधात्मक शिक्षा – रूसो महोदय के अनुसार -→
“शिक्षा निषेधात्मक होनी चाहिए। निषेधात्मक शिक्षा का अर्थ आलस्य में समय बिताना नहीं है बल्कि जो ज्ञान देने के पूर्व बालक के शारीरिक व मानसिक विकास के द्वारा उसे विचारशील बनाती है वही निषेधात्मक शिक्षा है। इस शिक्षा के द्वारा बालक अपना अच्छा बुरा पहचानने में समर्थ हो जाता है।”
रूसो तत्कालीन व्यवस्था से इतना दुःखी था कि उसे कहना पड़ा -→
“Take the reverse of the accepted practice and you will almost always do right.”
“शिक्षा के जितने प्रचलित सिद्धान्त हैं उसके विपरीत कार्य करो तभी तुम सही काम कर सकोगे।”
शिक्षण विधियाँ (Teaching methods) –
व्यवसाय की शिक्षा तथा हाथों का प्रयोग उसे प्रिय है पुस्तकों में संलग्नता की जगह हाथों का काम उचित है इस हेतु ‘योजना पद्यति’ का एक रूप उसने दिया। करके सीखना, योजना पद्यति का वर्णन उसने व्यवहार वाद से पहले ही कर दिया। केवल भाषण व आदेशात्मक शिक्षा का वह विरोधी था। भ्रमण द्वारा शिक्षा, प्रकृति निरीक्षण व स्व अनुभव द्वारा शिक्षण पर वह बल देता था। उसने स्वयं शोध व उपदेशात्मक शिक्षण विधि को स्वीकार किया।
गुरु शिष्य सम्बन्ध (Teacher-disciple relationship) –
वह बालकेन्द्रित शिक्षा पर अधिक बल देता है, अध्यापक शिक्षा हेतु वातावरण सृजित करे उसकी महती भूमिका परदे के पीछे है। कृत्रिमता से हटाकर प्रकृति सानिध्य में लाने का कार्य अध्यापक का है उसने ऐन्द्रिक विकास हेतु शिक्षक का आवाहन किया और कहा –
“All wickedness comes from weakness, a child is bad because hi is weak, make him strong and hi will be good.”
“सारे दोष कमजोरी से आते हैं बालक कमजोर है इसलिए बुरा है उसे बलिष्ठ बनाओ और वह अच्छा हो जाएगा।”
अनुशासन (Discipline) –
ये बच्चे को समाज से दूर प्राकृतिक वातावरण में रखना चाहते थे इनका मानना था –
“Everything is good as it comes from the hands of the author of nature, men maddle with it and it degenerates.”
“सब कुछ अच्छा है क्योंकि यह प्रकृति के लेखक के हाथों से आता है, पुरुष इसके साथ खिलवाड़ करते हैं और यह पतित हो जाता है।”
इसीलिये इन्होने स्वतन्त्रता का सिद्धान्त व प्राकृतिक परिणामों को स्वीकारने की बात कही।
विद्यालय (School)-
ये चाहते थे की प्राकृतिक वातावरण में विद्यार्थी स्वतन्त्रता पूर्वक अध्ययन करें और अध्यापक उनके सहयोगी के रूप में कार्य करें न कि अनुदेशक के रूप में। बच्चे को प्रेम पूर्वक सिखाएं व अधिकतम स्वतन्त्रता प्रदान करें।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनके कई विचार अर्थहीन हो चुके हैं लेकिन उनका ‘प्रकृति की ओर लौटो‘ का नारा आज भी प्रासंगिक है और बाल केन्द्रित शैक्षिक अवधारणाएं आज भी रूसो के विचारों की प्रदक्षिणा करती दीखती हैं। उन्हें लोकतन्त्र के प्रणेता के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।