अब नहीं कोई मेरा साथ दो परमात्मा
धर्मपथ नहीं सूझता हाथ दो धरमात्मा
ना दीखता कुछ यहाँ, गहन अन्धकार है
साथ गर ना मिले, होगा सारा खात्मा।1।
कुछ नहीं सूझे बस, साथ दो जीवात्मा
आत्मबल है टूटता साथ दो दिव्यात्मा
चेतना ना सुध रही सघनतम विकार है
विकारों के साथ, कैसे बनूँ पुण्यआत्मा।2।
इच्छा संग लालसा क्या मैं हूँ दुरआत्मा
आसक्ति युक्त मन है लय है बस आत्मा
लोभ मोह लालच है मानस पर जाल है
जाल में उलझे रहे कैसे हो शुभ आत्मा ।3।
प्रभु ऐसा ज्ञान दो अध्यात्म ले ध्रुवआत्मा
अब नहीं भटके पथ जान ले चिर आत्मा
चैतन्य हो मनस, छंट जाए तम प्रसार है
मिले दिव्य प्रकाश तेज युक्त हो आत्मा ।4।
सच है मृत शरीर है, ना कि मृत आत्मा
तृप्ति होती इच्छा है न होती तृप्त आत्मा
वैराग्य गर न जगे आसक्ति अन्धकार है
आसक्ति के साथ न होगी मुक्त आत्मा ।5।
लोभ मोह क्षणिक हैं सत्य है सत् आत्मा
विकार सारे तन के हैं शुद्ध दिव्यआत्मा
ये जीवन अनन्त यात्रा का इक प्रकार है
आसक्ति नाथ मिटेगी मिलेगा परमात्मा ।6।