शिक्षा वह उपागम है जो इसे धारण करने वाले व्यक्तित्व हेतु प्रकाश स्तम्भ का कार्य करता है। इसके माध्यम से हमें वह दिशा मिलती है जो हमारे जीवन के उद्देश्य तय करने और उन्हें प्राप्त करने में हमारा सहयोग प्रदान करती है। विविध विद्वानों ने शिक्षा के कार्य सम्बन्धी अपने विचारों की शब्द माला का गुम्फन इस प्रकार किया है।
जॉन ड्यूवी महोदय कहते हैं –
“शिक्षा का कार्य असहाय प्राणी के विकास में सहायता पहुँचाना है, जिससे वह सुखी, नैतिक व कुशल मानव बन सके।”
“The work of education is to help in the development of a helpless creature so that it can become a happy, moral and efficient human being.”
डॉ जाकिर हुसैन महोदय का कहना है –
“शिक्षा का कार्य बालक के मस्तिष्क को शुद्ध, नैतिक और बौद्धिक मूल्यों का अनुभव करने में इस प्रकार सहायता प्रदान करना है कि वह मूल्यों से प्रेरित होकर उनको सर्वोत्तम प्रकार से अपने कार्य और अपने जीवन में प्राप्त करें।”
“The function of education is to help the child to perceive pure, moral and intellectual values in his mind in such a way that he is inspired by these values to achieve them in the best possible way in his work and his life.”
रमन बिहारी लाल महोदय कहते हैं –
“सच बात तो यह है कि शिक्षा के अपने में कोई कार्य नहीं होते। कोई व्यक्ति, समाज अथवा राज्य शिक्षा के द्वारा जो प्राप्त करना चाहता है वे ही शिक्षा के उद्देश्य होते हैं और इन उद्देश्यों की पूर्ति करना ही शिक्षा के कार्य होते हैं।”
“The truth is that education does not have any functions in itself. What a person, society, or state wants to achieve through education are the objectives of education, and fulfilling these objectives is the function of education.”
शिक्षा के प्रमुख कार्यों का वर्गीकरण / Classification of major functions of education –
विविध परिभाषाओं का अध्ययन और विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा को तत्कालीन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कुछ कार्य करने ही होते हैं जिन्हे इस प्रकार विवेचित किया जा सकता है –
A – व्यक्तिगत तथा सामाजिक विकास / Individual and Social Development
(a) व्यक्तिगत विकास
(1) -उत्तम चरित्र की प्राप्ति
जर्मन विचारक हर्बर्ट महोदय कहते हैं –
“शिक्षा अच्छे नैतिक चरित्र का विकास है।”
“Education is the development of good moral character.”
(2) – व्यावसायिक कुशलता
स्पेन्सर महोदय कहते हैं कि –
“किसी भी व्यवसाय के लिए तैयार करना हमारी शिक्षा का मुख्य अंग है। ”
“Preparation for any vocation is a core part of our education.”
(3) – व्यक्तित्व विकास
फ्रेडरिक ट्रेसी के अनुसार –
“सम्पूर्ण शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य व्यक्तित्व के आदर्श की पूर्ण प्राप्ति है। यह आदर्श संतुलित एवम समग्र व्यक्तित्व है। ”
“The real aim of all education is the complete attainment of the ideal of personality. This ideal is a balanced and holistic personality.”
(4) – वातावरण से समायोजन
टॉमसन महोदय के अनुसार –
“वातावरण शिक्षक है और शिक्षा का कार्य है छात्र को उस वातावरण के अनुकूल बनाना जिससे कि वह जीवित रह सके और अपनी मूल प्रवृत्तियों को संतुष्ट करने के लिए अधिक से अधिक संभव अवसर प्राप्त कर सके।”
“Environment is the teacher and the function of education is to adapt the student to that environment so he may live and get the maximum possible opportunities to satisfy his basic instincts.”
(5) – आत्म निर्भरता
डॉ ० राधा कृष्णन महोदय कहते हैं –
“छात्रों को जीविका उपार्जन करने में सहायता देना शिक्षा का एक कार्य है।”
“To help the students to earn a living is one of the functions of Education.”
(6) – मानसिक विकास
रमन बिहारी लाल महोदय के अनुसार –
“मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी है। शिक्षा के द्वारा उसका शारीरिक और मानसिक विकास होना ही चाहिए। ”
“Man is a psycho-physical being. He must have physical and mental development through education.”
(7) – आध्यात्मिक चेतना का विकास
डॉ ० राधा कृष्णन महोदय के अनुसार –
“शिक्षा का उद्देश्य न तो राष्ट्रीय कुशलता है, न सांसारिक एकता अपितु व्यक्ति को यह अनुभूति कराना है कि उसके पास बुद्धि से भी परे एक तत्त्व है जिसे तुम चाहो तो आत्मा कह सकते हो।”
“The aim of Education is neither national efficiency nor world solidarity, but making the individual feel that he has something deeper than intellect, call it spirit if you like.’’
(8) – जन्मजात शक्तियों का विकास
जर्मन शिक्षाशास्त्री पेस्टालोजी के अनुसार –
“शिक्षा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक, सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील विकास है।”
“Education is a natural, harmonious, and progressive development of man’s innate powers.”
(9) – समृद्धता –
ड्यूबी महोदय का विचार है –
“जीवन का मुख्य कार्य है प्रत्येक पग पर अपने अनुभवों द्वारा जीवन को समृद्ध करना।”
“The main task of life is to enrich life with your experiences at every step.”
(b) सामाजिक विकास
1 – सामाजिक नियन्त्रण
2 – सामाजिक परिवर्तन–
रमन बिहारी लाल महोदय के अनुसार –
“शिक्षा मनुष्यों में अपनी भाषा, रहन सहन, खानपान एवं व्यवहार की विधियों और रीतिरिवाजों में अपने अनुभवों के आधार पर आवश्यक परिवर्तन एवं विकास की क्षमता पैदा करती हैं और वे इन सबमें निरन्तर परिवर्तन एवं विकास करते हैं। इसे समाजशास्त्रीय भाषा में सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।”
“Education inculcates in human beings the capacity for necessary change and development in their language, living conditions, food and behavior methods, and customs on the basis of their experiences, and they continuously change and develop in all these. This is called the social change in sociological language.”
3 – सामाजिक सुधार
4 – संस्कृति का संरक्षण, हस्तान्तरण व विकास
5 – राष्ट्रीय लक्ष्य प्राप्ति
6 – सामाजिक सकारात्मक भावना
एच ० गार्डन महोदय के अनुसार –
“शिक्षक को यह जानना आवश्यक है की उसे सामाजिक प्रक्रिया को उन व्यक्तियों को समझाना चाहिए, जो इसे समझने में असमर्थ हैं।”
“It is necessary for the teacher to know that he should explain the social process to those persons who are unable to understand it.”
B – सांस्कृतिक विरासत का सम्प्रेषण / Transmission of cultural heritage
शिक्षा वह साधन है जिसके माध्यम से यह महत्त्व पूर्ण कार्य सम्पादित होता है इस हेतु वह इन कार्यों को करती है –
1 – संरक्षण / Protection
2 – विकास / Development
3 – हस्तान्तरण /Transfer
4 – सांस्कृतिक विलम्बन में कमी /Reduction of cultural lag
5 – गतिशीलता / Mobility
6 – विविध संस्कृतियों से समायोजन / Adjusting to Diverse Cultures
C – कौशलों का अर्जन / Acquisition of skills – आज प्रतिस्पर्धा का युग है और इसमें ठीके रहने के लिए यह परम आवश्यक है कि स्वप्रगति के सुनिश्चयीकरण हेतु कौशलों का निरंतर अर्जन किया जाए। शिक्षा इन कौशलों का सुदृढ़ीकरण हेतु इन कौशलों को अर्जित कराने का कार्य करती है –
1 – भाषाई कुशलता / Linguistic Proficiency
2 – सृजनात्मक कुशलता / Creative skills
3 – व्यावसायिक कुशलता / Professional skills
स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार –
“केवल पुस्तकीय ज्ञान से काम नहीं चलेगा। हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है, जिससे कोई व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके।”
“Mere bookish knowledge will not do. We need that education by which a person can stand on his own feet.”
4 – सामाजिक कुशलता / Social skills
5 – प्रतिस्पर्धात्मक कुशलता / Competitive Proficiency
D – मानव मूल्यों का अर्जन व उत्पादन / Acquisition and generation of human values
आज विविध परिक्षेत्र में मानवीय मूल्यों का अवनमन दीख पड़ता है अतः शिक्षा को निम्न कार्य अवश्यमेव सम्पादित करने होंगे। –
→ सामाजिक मूल्य / Social values
→ आर्थिक मूल्य / Economic values
→ राजनैतिक मूल्य / Political values
→ सांस्कृतिक मूल्य / Cultural values
E – अवकाश हेतु शिक्षा /Education for leisure
→ स्वास्थ्य व्यवस्थापन / Health Management
→ भविष्य व्यवस्थापन / Future Management
→ सशक्त सम्बन्ध स्थापन / Strong Relationship Establishment
→ मनः रञ्जन / Entertainment
→ आत्मनिरीक्षण / Introspection
F – सामाजिक एकजुटता / Social Cohesion
→ सहिष्णुता विकास / Tolerance development
→ सह अस्तित्व बोध / Coexistence sense
→ प्रगति उन्मुखता / Progress orientation
→ सामाजिक निष्ठा बोध / Social loyalty
→ लोचशीलता / Flexibility
G – राष्ट्रीय एकता हेतु शिक्षा / Education for National Integration
1 – पाठ्य सहगामी क्रियाओं द्वारा / Through co-curricular activities
2 – आध्यात्मिक चेतना विकास / Spiritual consciousness development
3 – अधिकार व कर्त्तव्य ज्ञान / Rights and duty knowledge
4 – राष्ट्रीय लक्ष्य बोध / National vision
5 -सामाजिक कर्त्तव्य बोध / Sense of social duty
6 – परिवर्तन ग्राह्यता / Change susceptibility
7 – धार्मिक सहिष्णुता / Religious tolerance
8 – भावात्मक एकता विकास / Emotional integration development
जवाहर लाल नेहरू ने कहा –
” भावात्मक एकता से अभिप्राय, अलगाव की भावना का दमन तथा मस्तिष्क एवं ह्रदय की एकता से है।”
“By Emotional integration, I mean the integration of our minds and hearts, the suppression of the feelings of separation.”
H – अन्तर्राष्ट्रीय समझ हेतु शिक्षा / Education for Inter-National understanding
अन्तर्राष्ट्रीय परिक्षेत्र में शिक्षार्थियों की समझ में अभिवृद्धि हेतु शिक्षा को निम्न कार्यों को यथायोग्य गुणवत्ता पूर्ण ढंग से करना होगा जिसके प्रभावी परिणाम देखने को मिलेंगे।
1 – अन्तर्राष्ट्रीय पहचान रखने वाले व्यक्तित्वों से परिचयी करण / Introduction to personalities having international identity – जन्मदिन, निर्वाण दिवस, विशिष्ट कार्य सम्पादन दिवस मनाकर / By celebrating Birthday, Nirvana Day, Special Work Achievement Day
2 – विशिष्ट अन्तर्राष्ट्रीय व्यक्तित्वों के ऑडियो वीडिओ क्लिप द्वारा / By Audio video clips of eminent international personalities.
3 – अन्तर्राष्ट्रीय क्रीड़ा प्रतिस्पर्धा का आयोजन / Organization of international sports competition
4 – अन्तर्राष्ट्रीय साझा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन / Organizing International Shared Cultural Program
5 – भ्रमण द्वारा / by excursion
6 – शैक्षिक आदान प्रदान / – Academic Exchange
7 – शिक्षण विधि में सम्यक परिवर्तन / Due change in teaching method
8 – विविध भाषा में शोध परिणाम अनुवाद / Translation of research results in various languages
I – मानव संसाधन हेतु शिक्षा / Education for Human Resource Development –
आज भारत व चीन अधिक जनसँख्या वाले देशों की श्रेणी में आते हैं लेकिन जब अधिसंख्य जनसँख्या उत्पादक कार्यो से जुड़ जाती है तो यही जनसंख्या मानव संसाधन के रूप में देश को विकसित करने में योग देती है और शिक्षा मानव संसाधन के विकास में योग की दर को बढ़ाने का श्रेष्ठतम साधन है इसके द्वारा ही विविध कार्यों हेतु कौशल सिखाए जाते हैं। आज के तमाम प्रशिक्षण कॉलेज इस पावन कर्म में लगे हैं। मानव संसाधन का जितना अच्छा प्रयोग जो देश करेगा वह उतनी तीव्रता से प्रगति करेगा। प्राइवेट और सरकारी दोनों परिक्षेत्रों को इस दिशा में तीव्र प्रयास करने होंगे।
उक्त परिक्षेत्रों के अतिरिक्त आज और बहुत से कार्य शिक्षा के गिनाये जा सकते हैं और इनमे बदलते सामाजिक उद्देश्यों के साथ परिवर्तन होता रहेगा।