जब मेरा जन्म हुआ तब तक मेरा परिवार निर्धनता की श्रेणी में आ चुका था पिताजी उस समय एक शुगर फैक्ट्री में फिटर की हैसियत से कार्य रहे थे मेरे पढ़ने के लिए वहाँ 12वीं तक विद्यालय था जिसे पूरा कर आगे पढ़ाना हालाँकि चार बच्चों वाले परिवार में विलासिता जैसा था लेकिन मेरे माता पिता ने जीवटता का परिचय दे आगे पढ़ाने का निश्चय किया। अपने स्नातक अध्ययन के दौरान कुछ धनार्जन कर परिवार का सहयोग करने की इच्छा बलवती हुई। तमाम प्रयास के बाद कोई आय का निश्चित साधन नहीं बन पा रहा था।
एक दिन मैं अत्याधिक चिन्ता से व्यथित फैक्ट्री कालोनी में अपने दरवाजे पर मूढ़ा डाले बैठा था अचानक मुझे अपने एक परिचित का ध्यान आया जो गलत तरीके से चोरी, डकैती व ठगी के माध्यम से पैसे कमा रहा था और हमेशा उसकी जेब रुपयों से भरी रहती थी मैं उसके साथ काम करने के लिए उससे बात करने की सोचने लगा तभी मेरे से एक घर पहले रहने वाले मेरे इण्टर मीडिएट वाले प्रधानाचार्य जी आ गए उन्होंने मुझे चिन्तामग्न देखकर अपने पास बुलाया और परेशानी का कारण जानना चाहा मैंने सच सच जो मेरे मन में आ रहा था सब बता दिया। उन्होंने मुझे अपनी बैठक में बैठने का आदेश दिया।
मैं स्वचलित यन्त्र सा उनके समक्ष बैठा था उन्होंने धीमी प्रभावशाली आवाज में मुझसे कहा कि तुम्हारे भविष्य की बहुत सकारात्मक सम्भावनाएं मुझे दीख पड़ती हैं मैंने तुममें एक अच्छे वक्ता और कवि के लक्षण देखे हैं मेर विद्यालय में तुम 7 वर्ष पढ़े हो,जहां तक मैं समझता हूँ तुम एक मेधावी छात्र हो और जिन लोगों के बच्चों को तुम आजकल पढ़ा रहे हो वो सब तुम्हारी तारीफ़ करते हैं क्या तुम किसी दूसरे का धन छीन सकोगे किसी अन्य को दुखी करके खुद सुख प्राप्त कर सकोगे किसी अन्य की मेहनत की रोटी छीनकर स्वयम् खा सकोगे।
मैं अवाक रह गया किंकर्त्तवय विमूढ़ता की स्थिति में मैंने सुना वे मुझसे पूछ रहे थे यदि तुम्हें कहीं जाने के लिए टिकट खरीदना हो और दो जगह से टिकट मिल रहे हों एक जगह लगभग तीन सौ लोग लाइन में हों और दूसरी जगह तीन तो किससे टिकट लेना पसन्द करोगे। मैंने शान्तिपूर्वक उत्तर दिया जहाँ तीन लोग खड़े हैं उन्होंने तुरन्त पुछा, क्यों ? मैंने कहा वहाँ जल्दी नम्बर आएगा और दूसरी जगह से तो टिकट मिलते मिलते ट्रेन छूट भी सकती है।
प्रधानाचार्य जी मुस्कुराए और बोले यहाँ चोरों, डकैतों, ठगों, भ्रष्टाचारियों, बेईमानों और दुष्टों की बहुत लम्बी लम्बी पंक्तियाँ लगी हैं यदि उस लाइन में लग गए तो इस जन्म में तुम्हारा नंबर आ पाएगा इसमें संशय है दूसरी ओर सत्यनिष्ठ, ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ लोगों की लाइन बहुत छोटी है जहां तुम सच्चाई और लगन से अपनी पहचान बना सकते हो।
उन्होंने बताया एक बार इन्दिरा गाँधी ने भी कहा था -“मेरे दादाजी ने एक बार मुझसे कहा था कि दुनियाँ में दो तरह के लोग होते हैं वो जो काम करते हैं और जो श्रेय लेते हैं,उन्होंने मुझसे कहा कि पहले समूह में रहने की कोशिश करो वहाँ बहुत कम प्रतिस्पर्धा है।”
प्रधानाचार्य जी की बातों ने मेरी तन्द्रा तोड़ दी थी मुझे लग रहा था की किसी ने झकझोर कर मुझे जगा दिया था उसी दिन से मैंने सच्चाई और कर्त्तव्य परायणता का जो पाठ सीखा उसी की बदौलत आज कई विषय में स्नातकोत्तर, एम० एड० ,नेट पीएच डी आदि करके एक प्रतिष्ठित पी ० जी ० महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर हूँ और मेरी कवितायें व वादविवाद परिक्षेत्र में जीता गया स्वर्णपदक मुझे अपने प्रधानाचार्यजी द्वारा बताई सच्चाई की राह पर चलने की अनवरत प्रेरणा देता है।