आचार्य कहता नहीं कि मैं भी रुकना जानता हूँ,
क्योंकि अपने शिष्य का, हर एक सपना जानता हूँ।
उसके सपनों में है शामिल हैं उसकी आशाएं सभी,
उसकी आशाओं में गहरा, रंग भरना जानता हूँ।
ये बता सकता नहीं, कि थकना कहते है किसे
लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।1।
हर चमक से दूर रहकर, मैं सिमटना जानता हूँ,
एक कछुए की तरह मैं खुद को ढकना जानता हूँ।
मेरे बच्चों को लगे ना इस जमाने की हवा,
विष भरी हर एक हवा को मैं कुचलना जानता हूँ।
ये बता सकता नहीं, कि थकना कहते है किसे
लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।2।
इस जहाँ की गन्दगी से और फिसलन से बचा
लेके जाना है जहाँ पर, मैं वह रस्ता जानता हूँ।
पाश्चात्य की कोशिश है ये, अपनी लय में ले बहा
कच्चे मन पे शिष्य के सद्कर्म लिखना जानता हूँ।
ये बता सकता नहीं, कि थकना कहते है किसे
लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।3।
संस्कृति के पतन से, मूल्य इन्सानी बचा
योग है परिवार का जो, मैं बताना जानता हूँ।
देखकर सारी विकृतियाँ मैं भी घायल हो गया
की कहाँ गलती जहाँ ने, ये दिखाना जानता हूँ।
ये बता सकता नहीं, कि थकना कहते है किसे
लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।4।
छा रहा परिवार – वादी, भाव अब नेतृत्व में
मैं जहाँ की स्वार्थपरता लूट फितरत जानता हूँ।
बच्चों के अरमान पर जो छा रहीं हैं अब घटा
उस घटा को मैं हटाकर साफ़ करना जानता हूँ।
ये बता सकता नहीं, कि थकना कहते है किसे
लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।5।
क्यों बनी जालिम परिस्थिति क्या है उलझन आपकी
कौन है निर्दोष कितना, मैं यह सब कुछ जानता हूँ।
मोड़ कर गर्दन कलम की, दिग्भ्रमित जिसने किया
काली स्याही फेंकने का, सारा चक्कर जानता हूँ।
ये बता सकता नहीं, कि थकना कहते है किसे
लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।6।
स्वार्थ परता का दहन हो, हो सृजित निष्ठा का मन
श्रम का प्रतिफल मैं युवा को यूँ दिलाना जानता हूँ।
स्वार्थ की भट्टी बुझाकर सम्मान श्रम को मिल सके
श्रम कणों का मूल्य हो क्या ‘नाथ’ हूँ यह जानता हूँ।
ये बता सकता नहीं, कि थकना कहते है किसे
लक्ष्य पर पूरा समर्पण और मिटना जानता हूँ ।7।