व्यक्तित्व वह है जो हैरान परेशान न हो,
छोटीछोटी बात पर कोई घमासान न हो,
चन्दा सूरज में भी लगे है इक बार ग्रहण,
सोच को बदलती चाल से नुकसान न हो।
सोच गुलजार रहे उस में शमशान न हो,
जो प्रगति शील न हो ऐसा उनवान न हो,
यूँ विभीषण ने भी ली थी इक बार शरण,
हो सब हो मगर बौद्धिक अवसान न हो।
किसी बेगैरत पर, यूँ ही मेहर बान न हो,
और याद रहे जरूरतमन्द परेशान न हो,
याद आते, ऐसे लोग जिन्दगी में हर क्षण,
भले ही उनके पास एक भी मकान न हो।
शब्द मधुर ही रहे भाषा बदजुबान न हो,
ईमान कायम रहे व्यवहार बेईमान न हो,
यूँ आम हो चला है बद नीयती का चलन,
नर्क न बने जीवन, इस लिए गुमान न हो।
सोच बदलो, बे बात ही हलकान मत हो,
चिन्तनद्वार खोलो अगर रोशनदान न हो,
बदलती रहती है दुनियाँ तो क्षणप्रतिक्षण,
व्यक्तित्व है तब गर सोच बियाबान न हो।
पल न गुजरें ऐसे,अधरों पर मुस्कान न हो,
काम अच्छे करो, भले जान पहचान न हो,
गुजर जाने पर रात, आती सूर्य की किरण,
नाथ लगे रहना अनवरत नाम हो या न हो।
व्यक्तित्व वह है जो हैरान परेशान न हो ।
छोटीछोटी बात पर कोई घमासान न हो ।