प्रकाश का पावन- पर्व आया है ,
रंगोली से आँगन, सजाया है,
नफरतों के जलने से हुई रोशनी
उस रोशनी में प्रेम से नहाया है।
तम का यौवनदर्प तोड़ मुस्काया है,
अमावस को पूनम सा चमकाया है,
अँधेरा कायम रहने की सोच पर,
नव-चिन्तन का बज्राघात आया है।
रजकणों ने मिलके दिया बनाया है,
जीवन-बाती तेल यहाँ की माया है,
सम्बन्धों के खेलों ने भरमाया है,
ऐसा लगता नया-उजाला आया है।
क्या मन ने तम का किया सफाया है,
या तो मन पर अन्धकार का साया है,
कर लो पावन सुन्दर- मौका आया है,
भरलो प्रकाश अवसर ने कहवाया है।
साफ हुआ घर मनका नम्बरआया है,
पूर्व मलिनताओं की लगती छाया है ,
तजो कट्टरता पावस अवसर आया है,
नव- दीवाली, नव -सन्देशा लाया है।
त्यौहारों का गुच्छ बना कर लाया है,
लक्ष्मी स्वागत करो, ये कहलाया है,
मन पर पड़े कहीं से काली छाया है,
आशा दीप चेतन ज्योति लेआया है।
चेतनता का महा-दीप है, ईश्वर ही,
हर चेतन ने प्रकाश वहीं से पाया है,
माया के भ्रम ने हमको भरमाया है,
निज से वार्तालाप नहीं हो पाया है।
जज्बातों का नया सा रेला आया है ,
भारत के हर गाँव में मेला लाया है,
जागो भारत, मौसम भी हर्षाया है,
नवजगमग ने अन्तर्मन हुलसाया है।